रॉयटर्स के दो पत्रकारों को म्यांमार ने डेढ़ साल बाद रिहा किया


Myanmar frees Reuters journalists for reporting on Rohingya Muslims

 

न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के दो पत्रकारों को म्यांमार ने लगभग डेढ़ साल बाद जेल से रिहा कर दिया है. दोनों पत्रकारों को म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ हो रही नस्लीय हिंसा पर रिपोर्टिंग के चलते गिरफ्तार किया गया था.

33 वर्षीय वा लोन और 29 विर्षीय कया सू की गिरफ्तारी 2017 को दिसंबर में हुई थी. उन दोनों पर  ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट के उल्लंघन का आरोप था. इसके बाद से ही दोनों रंगून के इंसीन जेल में कैद थे. मंगलवार 7 अप्रैल को राष्ट्रपति विन माएंट ने दोनों पत्रकारों की रिहाई 6,520 कैदियों को मिली आम माफी के तहत की.

इंसीन जेल के प्रमुख अधिकारी ने दोनों की रिहाई की पुष्टि की. रॉयटर्स के मुख्य संपादक स्टेफेन जे एडलर ने कहा कि उन्हें बेहद खुशी है कि म्यांमार ने उनके साहसी पत्रकारों को आजाद कर दिया है. उन्होंने कहा कि उनकी गिरफ्तारी के बाद से वे दोनों विश्व भर में प्रेस की स्वतंत्रता के प्रतीक बन चुके हैं.

एक साल से इस मामले में दोनों पत्रकारों को कानूनी सहायता देने वाली वकील अमल क्लूनी ने कहा कि दोनों साहसी पत्रकारों को न्याय दिलाने के लिए रॉयटर्स बड़ी हिम्मत के साथ खड़ा रहा है. उन्होंने कहा, “यह बेहद प्रेरणादायक है कि एक समाचार संस्थान अपने निर्दोष पत्रकार और पत्रकारिता की सुरक्षा के लिए इतना प्रतिबद्ध है.” उन्होंने कहा, “मुझे उम्मीद है कि उनकी रिहाई ने म्यांमार में प्रेस स्वतंत्रता की प्रतिबद्धता का संकेत दिया है.”

म्यांमार में ब्रिटिश राजदूत डैन चुग ने न्यायिक विफलताओं पर प्रकाश डाला जिसके कारण दोनों पत्रकारों को जेल जाना पड़ा था.

उन्होंने कहा, “दोनों पत्रकारों को ऐसे मामले में दोषी बनाया गया जिसमें उचित प्रक्रिया का पालन हुआ ही नहीं था.”

उन्होंने कहा, “सुप्रीम कोर्ट के अन्तिम निर्णय के कुछ ही दिनों बाद दोनों पत्रकारों को रिहा करने के फैसले को लेकर म्यांमार सरकार ने पहले की न्यायिक प्रक्रियाओं की कमियों को पहचान लिया था.”

गिरफ्तारी के समय दोनों पत्रकार अगस्त 2017 में म्यांमार की सेना द्वारा रखाइन राज्य में रोहिंग्या मुस्लिमों के खिलाफ की गई क्रूर हिंसा की रिपोर्टिंग के लिए गहन जांच कर रहे थे. उस समय  700,000 से अधिक रोहिंग्या मुस्लिमों को बांग्लादेश भागने के लिए मजबूर किया, जिससे म्यांमार पर नरसंहार का आरोप भी लगा.

वा लोन और कया सू दोनों ही म्यांमार के नागरिक हैं. वे दोंनों अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी के लिए काम करते हैं.

उन्होंने अपने बयान में कहा था कि पुलिस ने जान-बूझकर उनके खिलाफ सबूत बनाए. दोनों पत्रकारों को सितंबर में सात साल की कैद की सजा सुनाई गई थी.

म्यांमार के राष्ट्रपति ने पत्रकारों की रिहाई अंतरराष्ट्रीय सरकारों, राजनयिकों, मानवाधिकार संगठनों और यहां तक ​​कि धार्मिक हस्तियों के बढ़ते दबाव के 16 महीने के बाद की है. म्यांमार की नोबेल पुरस्कार विजेता आंग सान सू की ने भी अमेरिकी उपराष्ट्रपति माइक पेंस जैसे लोगों को पत्रकारों की रिहाई के संबंध में बार-बार फोन करके फटकार लगाई थी. साथ ही म्यांमार के भीतर भी दोनों पत्रकारों के प्रति थोड़ी सहानुभूति थी.


ताज़ा ख़बरें