मोदी सरकार के कार्यकाल में मैली ही रही गंगा


nda govt faild to keep its promise of clean ganga by 2019

 

मोदी सरकार जब सत्ता में आई थी तो उसने गंगा की सफाई के लिए बहुत जोर-शोर से महत्वाकांक्षी योजना बनाई. लेकिन इस मामले में उसके कार्यकाल में कितनी प्रगति हुई, इसका पता केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और सीएजी की रिपोर्टों से चलता है.

पिछली सरकारों ने भी गंगा एक्शन प्लान के तहत गंगा की सफाई के ओर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश की थी, लेकिन प्रोग्राम को उस स्तर पर प्रचार और फंडिंग नहीं मिली थी जैसा कि एनडीए सरकार में हुआ.

बीजेपी की ओर से गंगा सफाई अभियान का प्रचार करना इसलिए भी मायने रखता है क्योंकि हिंदुओं के लिए गंगा का धार्मिक महत्त्व है.

गंगा उत्तराखंड में गंगोत्री से निकलकर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से होते हुए बंगाल की खाड़ी में जा मिलती है. गंगा किनारे बसे 40 करोड़ लोगों का जीवन इससे प्रभावित होता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2014 चुनाव प्रचार के दौरान गंगा सफाई पर विशेष जोर दिया था. सत्ता में आने के बाद उन्होंने वादा किया था कि 2019 तक गंगा सफाई अभियान पूरा कर लिया जाएगा. कुछ समय पहले इसकी समय-सीमा बढ़ाकर 2020 कर दी गई, हालांकि अब हालात ये हैं कि एक साल के भीतर परियोजना को पूरा करना संभव नहीं.

एनडीए सरकार ने कार्यकाल के दौरान जल संसाधन मंत्रालय के अंतर्गत एक अलग विभाग का भी गठन किया और प्रधानमंत्री ने खुद राष्ट्रीय गंगा परिषद की अध्यक्षता की. नमामि गंगा परियोजना के जरिए एनडीए सरकार ने राज्य सरकारों और केंद्रीय मंत्रालयों को साथ लाने का प्रयास किया.

मिंट में छपी खबर के मुताबिक केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की हालिया रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि गंगा की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं हुआ है. तीन चरणों में उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल से लिए गए गंगा के पानी के जैविक नमूनों की जांच से पता चला है कि गंगा की गुणवत्ता में साल 2014 से साल 2018 के बीच कोई अंतर नहीं आया है.

हालांकि सरकार ने आलोचना की है कि ये आंकड़ें गुणवत्ता के स्तर पर लिए गए थे. उनका कहना है कि दूसरे मानकों पर जांच के बाद पता चला है कि गंगा में प्रदूषण के स्तर में कमी आई है.

लेकिन रिपोर्ट्स बताती हैं कि अन्य मानकों पर भी गंगा का प्रदर्शन चिंताजनक रहा है. इसका एक उदाहरण गंगा में मल के बैक्टीरिया की मौजूदगी है.

सीपीसीबी की हालिया रिपोर्ट बताती है कि गंगा में 61 में से केवल 13 जगहों पर ही लोग नहा सकते हैं. जबकि सरकार दावा करती रही है कि गंगा किनारे बसे 4 हजार से ज्यादा गांव खुले में शौच से मुक्त हैं.

नमामि गंगे परियोजना की असफलता के पीछे फंड का सही इस्तेमाल नहीं होना एक बड़ी वजह रही है. परियोजना के लिए 20 हजार करोड़ रुपये का फंड घोषित किया गया था. जबकि अब तक इसका बेहद छोटा हिस्सा ही खर्च किया गया है. वहीं गंगा सफाई के लिए जल संसाधन मंत्रालय ने अलग से नौ हजार करोड़ रुपये (चार वर्षों के लिए) के फंड की घोषणा की थी. साल 2017 में सीएजी की रिपोर्ट में सामने आए ये आंकड़े बताते हैं कि जमीनी स्तर पर इस फंड का आधे से भी कम हिस्सा खर्च किया गया है.

रिपोर्ट में नमामि गंगे परियोजना में मौजूदा परेशानियों की ओर इशारा करते हुए प्रबंधन की नाकामियों और स्टाफ की कमी को जिम्मेदार ठहराया गया था.

रिपोर्ट के अनुसार, प्रबंधन की कमी की वजह से हर रोज 300 करोड़ लीटर सीवेज गंगा में बिना ट्रीटमेंट किए ही बहा दिया जाता है. फिलहाल केवल 20 करोड़ लीटर (कुल सीवेज का 32 फीसदी) सीवेज ट्रीटमेंट के बाद गंगा में जाता है.

सीपीसीबी रिपोर्ट, 2018 के मुताबिक, गंगा के किनारे कुल 961 औद्योगिक कारखाने हैं, जिसमें से 211 कारखाने नियमों का उल्लंघन करते हुए खराब पानी गंगा में छोड़ रहे हैं.

इस सभी चिंताजनक आंकड़ों के बीच गंगा के बहाव में आई कमी भी एक गंभीर समस्या का रूप ले सकती है. एक अध्ययन के मुताबिक 1970 के बाद से अलग-अलग जगहों पर गंगा के ऊपर बने बांधों की वजह से नदी की बहाव की रफ़्तार में लगातार कमी आई है.

इसके कई गंभीर पर्यावरणीय प्रभाव हो सकते हैं.

गंगा में मछलियों की 140 और 90 जीवों की प्रजातियां रहती हैं, जिसमें से कई अब संकटग्रस्त प्रजातियों की श्रेणी में आ गई है.


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