एनडीए सरकार ने औद्योगिक क्षेत्रों में पर्यावरणीय मंजूरी की प्रक्रिया में ढील दी


NDA has simplified the process of granting Environmental Clearances - Official Data

 

पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) के दिसंबर 2014 से जनवरी 2019 के बीच के आधिकारिक दस्तावेजों के संकलन के मुताबिक एनडीए सरकार ने औद्योगिक क्षेत्रों में पर्यावरणीय मंजूरी की प्रक्रिया में ढील दी है.

बीते मंगलवार को पर्यावरण मंत्रालय के प्रकाशित दस्तावेजों के मुताबिक औद्योगिक घरानो ने नियमों में दी गई ढील का स्वागत किया था. पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रक्रिया में पारिस्थितिकी संबंधी चिंताओं की अनदेखी की गई है.

10 अगस्त 2018 को पर्यावरण मंत्रालय ने कोयला खनन, लोहा और इस्पात प्लांट्स, औद्योगिक संपदा, नदी घाटी और पनबिजली परियोजनाओं सहित 25 औद्योगिक क्षेत्रों के लिए पर्यावरण मंजूरी का मानक निर्धारित किया था. इसके तहत पर्यावरण मंजूरी के कामों में तेजी लाना था.

पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि सभी औद्योगिक क्षेत्रों के लिए समान स्वरूप होने की वजह से हर एक परियोजना से जुड़ी अहम पारिस्थितिक चिंताओं को नजरअंदाज किया गया है.

15 मार्च 2016 को मंत्रालय ने पहली बार स्थानीय जिला मजिस्ट्रेट या जिला कलेक्टर को इस तरह की मंजूरी के लिए प्राधिकृत किया. मामूली खनिजों के लिए 5 हेक्टेयर व्यक्तिगत खनन और समूहों में 25 हेक्टेयर तक पर्यावरणीय मंजूरी देने के अधिकार इस प्राधिकरण को सौंपे गए.

इस निर्णय को ग्रीन ट्रिब्यूनल में चुनौती दी गई थी. विशेषज्ञों का कहना था कि जिला अधिकारकियों के पास खनन से होने वाले पर्यावरणीय प्रभावों का आकलन करने में निपुणता की कमी होती है.

20 मार्च 2015 को पर्यावरण मंत्रालय ने आधिकारिक ज्ञापन जारी करते हुए कहा कि प्रस्तावित परियोजना को खनन के लिए नई पर्यावरण मंजूरी की जरुरत नहीं है, अगर उसे पहले ही मंजूरी दी जा चुकी है.

अप्रैल 2016 को मंत्रालय ने परियोजनाओं को पहले दी गई मंजूरी के आधार पर वैधता को भी बढ़ा दिया. मार्च 2017 में थर्मल पावर प्लांट्स को मानदंडों से राहत दे दी गई थी.

आधिकारिक ज्ञापन में कहा गया है कि 4,000 मेगावॉट से ज्यादा बिजली पैदा करने वाली अल्ट्रा मेगा पावर प्लांट को बिना पर्यावरण का निरीक्षण किए पर्यावरण मंजूरी दे दी गई थी. इसके अलावा इससे जुड़े कोयला ब्लॉक के लिए स्टेज-1 जंगल कटाई की अनुमति दे दी गई थी.

उसी साल पर्यावरण मंत्रालय ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत उन परियोजनाओं को जिनका काम बिना आवश्यक पर्यावरणीय मंजूरी के शुरू हो गया था, एक अधिसूचना जारी की थी.

पर्यावरणविदों ने ईआईए के 2016 के संशोधन की आलोचना की थी. एनजीटी ने संशोधन पर रोक लगाने का आदेश दिया था, लेकिन, मंत्रालय आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया था.

सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में कानूनी शोधकर्ता कांची कोहली के अनुसार, “तीन सेट पैटर्न हैं जो इन आधिकारिक ज्ञापन में उभरते हैं, ये अधिसूचना के दायरे से काफी समझौता करते हैं.

पहला, पर्यावरण मंजूरी या सार्वजनिक सुनवाई या दोनों की आवश्यकता से छूट है. दूसरा, सभी डिफॉल्टरों को अपने परिचालन के किसी भी खतरे को रोकने के साथ “पोस्ट फैक्टो” अनुमोदन प्राप्त करने की अनुमति देना. तीसरा, पर्यावरणीय परिस्थितियों का मानकीकरण है जो सुरक्षा उपायों को परिभाषित करने के लिए साइट-विशिष्टता का कम अवसर देता है.”

उद्योग जगत के अधिकारियों ने भी माना है कि पिछले पांच सालों में सरकार ने पर्यावरण मंजूरी पाने के प्रणाली को आसान बनाया है.


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