डॉक्टरों की कमी और घटिया ऑपरेशन थियेटर से जूझते नए एम्स


New AIIMS: Report on doctors' deficiency and poor operation theater

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देश के छह अलग-अलग शहरों में चल रहे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) अपने नाम को बट्टा लगा रहे हैं. नई दिल्ली स्थित एम्स के तर्ज पर खुले ये केन्द्र डॉक्टरों की कमी, दोषपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर और घटिया ऑपरेशन थियेटर से जूझ रहे हैं.  साल 2012 में सेन्टर ऑफ एक्सलेंस के सपनों के साथ देश में नए एम्स खोले गए थे.

भोपाल, भुवनेश्वर, जोधपुर, पटना, रायपुर और ऋषिकेश स्थित एम्स में स्वास्थ्य सेवाओं के निरीक्षण के लिए संसदीय स्थायी समिति का गठन किया गया था. समिति ने अपनी जांच में नए खुले एम्स में ‘मानव संसाधनों की घोर कमी’ पाई है.  संसदीय समिति ने चेताया है कि पर्याप्त मानव संसाधन के अभाव में इंफ्रास्ट्रक्चर का कोई मतलब नहीं रह जाता है.

अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ के मुताबिक, छह एम्स में करीब आधे पद खाली हैं. यहां डॉक्टरों के 884 पद भरे नहीं गए हैं. निओनाटोलॉजी, सर्जिकल गैस्ट्रोनॉमी और ट्रॉमा मैनेजमेंट जैसी सुपर स्पेशलिटी सेवाओं के लिए अब तक डॉक्टरों की बहाली नहीं हो पाई है.

गैर फैक्लटी पदों पर हालात और भी खराब हैं. इसके कुल 22,656 पदों में 13,788(60 फीसदी) पद खाली हैं.

समिति के मुताबिक, डॉक्टर और मरीज के अनुपात में अंतर की वजह से यहां  डॉक्टर भारी दबाव में काम करने को मजबूर हैं.

डॉक्टरों के मामले में एम्स, ऋषिकेश की हालत थोड़ी बेहतर है. लेकिन यहां स्थानीय मेडिकल कॉलेज के डॉक्टरों से काम करवाया जा रहा है. इस वजह से उत्तराखंड के अस्पतालों में डॉक्टरों और फैक्लटी कम पड़ गए हैं. समिति ने एम्स ऋषिकेश में ऑपरेशन थियेटर में गड़बड़ी भी पाई है.

जानकारों के मुताबिक, एम्स जैसी संस्था स्थापित करने के लिए सिर्फ बिल्डिंग खड़ी करना काफी नहीं होता है. इसके लिए गंभीर और समर्पित फैकल्टी की जरुरत होती है. आबादी के अनुपात में हर क्षेत्र में एम्स जैसी संस्थाओं की जरुरत है, ताकि लोगों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा मिल पाए.

समिति ने अपनी जांच में एम्स बिल्डिंग के डिजाइन को भी दोषपूर्ण पाया है. एम्स जैसी संस्था में मेडिकल गैस पाइप लाइन और सीवर लाइन तक की व्यवस्था नहीं की गई है. समिति ने कहा है कि एम्स की बिल्डिंग बनाते वक्त बेसिक सिविल इंजीनियर को भी नजरअंदाज किया गया है.

समिति ने पाया कि जोधपुर स्थित एम्स में एक भी मॉड्युलर ऑपरेशन थियेटर(ओटी) काम नहीं कर रहा था. एम्स पटना में साठ फीसदी फैक्टली पद खाली हैं. संसदीय समिति ने अपनी जांच में यहां उपकरणों की खरीद में भी अनियमितता पाई है.

एम्स पटना ने ट्रॉमा और आपातकालीन सेवा शुरू करने का दावा किया था. लेकिन समिति ने पाया कि यहां के सभी पद खाली हैं. रिपोर्ट में पटना एम्स के बारे में कहा गया है, “पटना एम्स का ट्रॉमा और आपातकालीन सेवा चलाने का दावा पूरी तरह से झूठ है.”

पटना एम्स ने हैंण्ड ड्रिल, माउथ गैग, हुक जैसी आमतौर पर उपयोग में  लाए जाने वाले उपकरणों के भारतीय संस्करण बाजार में उपलब्ध नहीं होने की गलत जानकारी दी. इतना ही नहीं, म्यूजियम जार और 42 इंच के 48 टीवी सेट की खरीद में भी अनियमितता बरती गई.

छह एम्स खोलने के बाद केन्द्र सरकार ने एम्स जैसी 14 संस्थाएं खोलने का एलान किया है. ये संस्थाएं पश्चिम बंगाल के कल्याणी, असम, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, पंजाब और तमिलनाडु में स्थापित किया जाएगा.

जानकार मानते हैं कि नए एम्स की दिक्कतों को समझकर ही आगे बढ़ा जाना चाहिए.

स्वास्थ्य नीति, बायो इथिक्स और ग्लोबल हेल्थ के शोधार्थी अनंत भान कहते हैं, “इन संस्थाओं को सेंटर ऑफ एक्सलेंस बनाया जाना था- लेकिन फैक्लटी की कमी से इलाज और मेडिकल शिक्षा दोनों की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि देश में एम्स जैसी संस्थाओ की जरुरत है, लेकिन नई संस्थाओं के साथ हमारा अनुभव बताता है कि गुणवत्ता को पूरा करने के लिए ईमानदार कोशिश नहीं हुई है.”


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