मुख्य सूचना आयुक्त की वरीयता और वेतन में कमी का प्रस्ताव


new DoPT draft downgrade CIC and ICs cut their tenure and pay

 

सूचना का अधिकार अधिनियम में संशोधन के बाद मुख्य सूचना आयुक्त ओर सूचना आयुक्तों के कार्यकाल और वेतन पर कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने प्रस्ताव तैयार किया है.

जानकारी के मुताबिक राज्यों के मुख्य सूचना आयुक्तों को भारत सरकार के सचिव या राज्यों के मुख्य सचिव के अनुरूप ही वेतन और भत्ता आदि दिया जाएगा. वहीं राज्यों के सूचना आयुक्तों को भारत सरकार के अतिरिक्त सचिव के समान वेतन और भत्ता दिया जाएगा.

जबकि सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के मुताबिक मुख्य सूचना आयुक्तों का कार्यकाल, वेतन और भत्ता मुख्य चुनाव आयुक्त के समान होना चाहिए.

इसका अर्थ ये है कि अब वरीयता के क्रम में ये मुख्य चुनाव आयुक्त, सीएजी और यूपीएससी के चेयरमैन के समान नहीं होंगे और क्रमवार ये भारत सरकार के सचिव के बराबर होंगे.

वरीयता क्रम गृह मंत्रालय द्वारा जारी होने वाली एक प्रोटोकोल सूची है. जिसमें अधिकारियों का उनके पदों के अनुरूप वर्गीकृत किया जाता है.

मोदी सरकार ने सत्ता में आने के कुछ ही महीनों के भीतर जुलाई में आरटीआई अधिनियम में संशोधन किया. संशोधन के बाद अब सरकार को मुख्य सूचना आयुक्त और केंद्र एवं राज्यों के सूचना आयुक्तों का कार्यकाल निर्धारित करने और सेवा से संबंधित नियम आदि बनाने का अधिकार मिल गया है.

कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के प्रस्ताव के मुताबिक मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का तीन साल का निश्चित कार्यकाल होगा. फिलहाल पांच वर्ष का निश्चित कार्यकाल होता है.

विभाग की मुहर लगने के बाद प्रस्ताव को प्रधानमंत्री की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा, जो विभाग के प्रभारी मंत्री हैं.

मुख्य सूचना आयुक्त का कार्यालय पद को सीईसी के समान ही रखने की मांग कर रहा है.

जुलाई 2019 में संसद ने केंद्र और राज्यों के केंद्रीय सूचना आयुक्तों और सूचना आयुक्तों को लेकर नियमों में बदलाव के लिए आरटीआई अधिनियम के धारा 16 और 13 में संशोधन को पारित किया था. सूचना का अधिकार संशोधन अधिनियम के मुताबिक वेतन, भत्ता के संबंध में नियम भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित होंगे. साथ ही इनका कार्यकाल भी भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित होगा.


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