सरकार के फैसले से बढ़ सकती हैं दवाओं की कीमत
भारत सरकार ने दवाओं की कीमत निर्धारित करने के लिए नीति आयोग में एक कमिटी गठित करने का फैसला लिया है. यह फैसला दवाओं पर नियंत्रण के लिए पहले से बनाई गई नेशनल फर्मास्युटिकल प्राइसिंग ऑथॉरिटी (एनपीपीए) की भूमिका को सीमित कर देने वाला है और इससे अनिवार्य दवाओं की कीमत में बेतहाशा वृद्धि हो सकती है.
इसके लिए फर्मास्युटिकल विभाग ने सोमवार को एक स्टैंडिग कमिटी के गठन की घोषणा की है. नीति आयोग के विनोद पॉल इस कमिटी के अध्यक्ष होंगे.
इस कमिटी में एनपीपीए के अध्यक्ष या सदस्यों को नहीं रखा गया है जबकि यह कमिटी एनपीपीए को दवाओं की कीमत को लेकर निर्देश देंगी.
फिलहाल एनपीपीए एक स्वायत्त संस्था है और दवाओं की कीमत के निर्धारण का फैसला स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से निर्धारित दवाओं पर स्वतंत्र रूप से लेती है.
स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से तैयार की गई सूची को अनिवार्य दवाओं की राष्ट्रीय सूची (एनएलइएम) कहा जाता है. हालांकि एनपीपीए स्वास्थ्य मंत्रालय का हिस्सा नहीं है लेकिन यह फर्मास्युटिकल विभाग से संबंधित है.
इस फैसले पर ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क (एआईडीएएन) का मीडिया से बातचीत में कहना है कि यह दवाओं की कीमत निर्धारण की प्रक्रिया को निष्प्रभावी बनानी के एक कोशिश हो सकती है.
एआईडीएएन का कहना है, “इस फैसले का सीधा असर यह होगा कि नई कमिटी को एनपीपीए के किसी भी फैसले में दखल देने का अधिकार होगा और यह दवाओं की कीमत निर्धारण की प्रक्रिया को निष्प्रभावी कर सकता है.”
उचित कीमत पर दवाएं लोगों को मुहैया हो, इसे लेकर एआईडीएएन अदालत में केस लड़ रही है.
दवाओं को जीवन की अनिवार्य जरूरत मानते हुए इसकी कीमत को नियंत्रित रखने का ख्याल रखा जाता रहा है जो अब इस फैसले से नीति आयोग के ऊपर निर्भर करेगा कि वो कौन सी दवाओं की कीमत नियंत्रण में रखना चाहेगा और कौन सी नहीं.