चुनाव प्रक्रिया में धूमिल होती ‘NOTA’ की छवि


nota is losing it's sheen

 

विकल्प के रूप में अपनी मौजूदगी की शुरुआत से अब तक ‘NOTA’ भारतीय लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर अपना कोई खास असर डालने में असफल रहा है. इस बारे में वेबसाइट फैक्टली ने एक विस्तृत अध्ययन प्रकाशित किया है.

‘NOTA’ यानी कि ‘इनमें से कोई नहीं’ मतदान प्रक्रिया के दौरान मतदाताओं के लिए एक विकल्प के तौर पर मौजूद होता है. जो मतदाता अपने क्षेत्र के किसी भी प्रत्याशी को पसंद नहीं करते वे इस विकल्प को चुन सकते हैं. इसकी शुरुआत 2013 में हुई थी.

ईवीएम में जब से नोटा का प्रावधान किया गया है. तब से अब तक कुल 37 विधानसभा और एक लोकसभा चुनाव हुए हैं. लेकिन इस दौरान सिर्फ दो बार ऐसा हुआ है जब नोटा पर दो फीसदी से अधिक वोट पड़े हैं.

नोटा को पूरे देश में एक समान महत्व नहीं मिला है. ये सिर्फ छत्तीसगढ़, बिहार और पुडुचेरी में ही दो फीसदी के पार जा सका है.

इसके अलावा छह राज्य हैं, जहां इसका मत फीसदी 1.5 से 2 के बीच रहा है. 10 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एक से एक दशमलव पांच फीसदी के बीच रहा है. जबकि हरियाणा में सबसे कम 0.37 फीसदी रहा है.

जब से नोटा का प्रावधान ईवीएम में आया है तब से अब तक सभी राज्य चुनाव प्रक्रिया से गुजर चुके हैं. अब तक कुल 38 चुनावों में से 16 में नोटा को मिलने वाले वोट एक फीसदी के पार नहीं जा सके हैं. और 20 चुनावों में ये आंकड़ा एक से दो फीसदी के बीच रहा है.

दूसरे शब्दों में कहें तो 95 फीसदी चुनाव ऐसे रहे हैं जहां नोटा पर पड़े वोट दो फीसदी से कम रहे हैं. और ऐसा सिर्फ एक बार हुआ है जब नोटा को तीन फीसदी से अधिक वोट मिले हैं. छत्तीसगढ़ में 2013 में हुए चुनाव में नोटा पर कुल के तीन फीसदी मत पड़े थे.

छत्तीसगढ़ में 2013 में और बिहार में 2015 के चुनाव में एक तिहाई विधानसभा क्षेत्रों में नोटा को 5,000 या इससे अधिक वोट मिले थे.

पिछले लोकसभा चुनाव में 54 निर्वाचन क्षेत्रों में नोटा को बीस हजार से ज्यादा वोट मिले थे. ये इन सीटों पर पड़े कुल मतों का करीब 10 फीसदी थे.

नोटा की लोकप्रियता में समय के साथ ठहराव भी आता रहा है. उदाहरण के रूप में 2016-17 में हुए किसी भी चुनाव में नोटा विकल्प पर पांच फीसदी वोट नहीं पड़े.

हालांकि 2018 के चुनावों में छत्तीसगढ़ में चार और राजस्थान में एक सीट पर नोटा को कुल मतों का पांच फीसदी हिस्सा मिला. लेकिन ये संख्या इन्हीं राज्यों में 2013 के चुनाव से कम थी.


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