कश्मीर पर सवाल कई, पर जवाब स्पष्ट नहीं


on kashmir too many questions but not a single answer

 

कश्मीर में भारी संख्या में सैनिकों को तैनात क्यों किया जा रहा है? कश्मीर से सैलानियों और अमरनाथ यात्रियों को लौटने के लिए क्यों कहा जा रहा है? जिस तरह के हालात बन रहे हैं, अब यह कोई नहीं जानता कि इसके बाद कश्मीर किस ओर बढ़ेगा.

कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने राज्यपाल सत्यपाल मलिक से शनिवार को मुलाकात की. मुलाकात के बाद उन्होंने फकत इतना कहा, “कश्मीर मामले में राज्यपाल की टिप्पणियों को आखिर नहीं माना जा सकता है. हमें दिल्ली से आश्वासन चाहिए.”

हालांकि यह उमर अब्दुल्ला की विफलता रही कि जब कुछ दिन पहले वह नरेंद्र मोदी से मिले थे तो उन्होंने पीएम से किसी भी तरह के आश्वासन की मांग क्यों नहीं की.

शुक्रवार 2 अगस्त को उन्होंने ट्वीट किया, “मेरे पास कई सारे सवाल हैं लेकिन जवाब एक भी नहीं. मैं छह सालों तक कश्मीर का मुख्यमंत्री रहा हूं. जम्मू-कश्मीर मामलों के बड़े ओहदे पर बैठे सभी लोगों से मैं मिल चुका हूं. उनमें से कोई भी कुछ भी बताने में सक्षम नहीं. इससे कश्मीरियों की दुर्दशा के बारे में सोचा जा सकता है जिन्हें कुछ अंदाजा नहीं है कि वो किस पर यकीन करें.”

उमर की ही तरह शुक्रवार को महबूबा मुफ्ती, पीपल्स कॉन्फेरेंस के नेता सज्जाद लोन और अन्य कई नेताओं ने राज्यपाल से इस मामले में स्पष्टता से चीजों को जानना चाहा लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा.

द टेलीग्राफ लिखता है कि अगर घाटी के नेता खुद ही मान चुके हैं कि सरकार सख्त कदम उठाने के लिए जमीन तैयार कर रही है, चाहे संविधान से अनुच्छेद 35ए को निरस्त करना हो या राज्य को जम्मू, कशमीर और लद्दाख में बांट देना हो, सरकार बस उन्हें इस तरह बेबस देख कर खुश हो रही है.

कश्मीर में भारी संख्या में सैनिकों का तैनात करना, अमरनाथ यात्रियों को लौटने के लिए कहना, आतंकवादी हमले की शंका जताकर हाई अलर्ट का एलान करना, गृह मंत्री अमित शाह का कश्मीर दौरे पर जाना, इतना सबकुछ हो रहा है फिर भी राज्यपाल कहते है कि शांति बनाए रखें क्योंकि चिंता की कोई बात नहीं है.

एक सेवानिवृत्त अधिकारी ने कहा, “मुझे याद नहीं है कि जब इतना सब कुछ हुआ और इसकी छोटी सी वजह बताया गई हो.”

उन्होंने कहा, “उन्हें एक मट्टी से सनी बंदूक मिलती है और शायद कुछ गोला-बारूद और इस वजह से उन्होंने इतनी बड़ी संख्या में सेना को बुला लिया. इससे हम क्या समझें, कि इतनी छोटी सी घटना से सरकार और सभी शक्तिशाली लोग घबरा गए. और हमें यह मानने के लिए कहा जा रहा है कि घाटी में आतंकी हमला होने की पुख्ता जानकारी मिली है. यह घाटी के रोज का हाल है, कुछ नया नहीं है. क्या सिर्फ यही वजह है कि इतना सबकुछ किया जा रहा है कि सैनिकों को लाया जा रहा है और यात्रियों को वापस भेजा जा रहा है.”

कश्मीर में संविधान के अनुच्छेद 35ए नहीं हटाए जाने की शर्त पर देश के अभिन्न अंग का दर्जा दिया गया. पर क्या नई दिल्ली से उसे कभी वो दर्जा मिला. तमाम अनिश्चितताओं के बीच माना जा रहा है कि कश्मीर इस वक्त एक ऐसे मकाम पर खड़ा है जहां कुछ भी तय नहीं.


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