‘स्वच्छ भारत अभियान’ से अस्वच्छ हो रहा वातावरण: अध्ययन


Only 26% of rural toilets use twin-leach pits, finds survey

 

मोदी सरकार का दावा रहा है कि ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के तहत देश के लगभग हर घर में दो गड्ढों वाले शौचालय (ट्विन-पिट सिस्टम) का निर्माण हो गया है.

हालांकि खुद सरकार द्वारा किया गया एक हालिया सर्वेक्षण ही इस दावे का खंडन कर रहा है. इस सर्वेक्षण का निष्कर्ष है कि सिर्फ एक-चौथाई ग्रामीण शौचालयों ही में दो गड्ढे वाले सिस्टम का इस्तेमाल हो रहा है.

यानी की बहुतायत शौचालयों से निकलने वाला मल-मूत्र खुले में जा रहा है जो स्वास्थ्य और पर्यावरण की चुनौतियों को और बढ़ा रहा है. यहां तक कि इन शौचालयों से निकलने वाला कचरा नई पीढ़ी को हाथ से मैला निकालने की प्रथा में धकेल रहा है.

अंग्रेजी अखबार द हिंदू ने ‘द नेशनल एनुअल रूरल सैनिटेशन सर्वे 2018-19’ के आंकड़ों का विश्लेषण कर यह निष्कर्ष दिया है.  इस सर्वेक्षण से पता चलता है कि सिर्फ 26.6 फीसदी ग्रामीण परिवार अपने शौचालयों से मल-मूत्र का निपटान करने के लिए ट्विन-पिट सिस्टम का उपयोग करते हैं.

ट्विन-पिट सिस्टम के तहत दो गड्ढों को मधुमक्खी के छत्ते की बनावट जैसी दीवारों के साथ जमीन में खोदा जाता है. इनका उपयोग बारी-बारी से किया जाता है. जब एक गड्ढा भर कर बंद हो जाता है तो अपशिष्ट प्रवाह को दूसरे गड्ढे में स्थानांतरित कर दिया जाता है. इससे पहले गड्ढे का कचरा एक या दो साल बाद खाद में बदल जाता है.

वैसे शौचालयों के लिए सेप्टिक टैंक सबसे लोकप्रिय विकल्प होते हैं. लेकिन पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल में ट्विन-पिट सिस्टम को बढ़ावा दिया है. तर्क ये रहा है कि इस सिस्टम में मल-मूत्र या मैला निकलने के बजाय खाद का निपटान करना पड़ता है. इससे मैला ढोने से जुड़े सामाजिक और जातीय पूर्वाग्रह अपने आप खत्म हो जाते हैं.

सर्वेक्षण से सरकार के एक और दावे की विसंगति सामने आई है. सरकार कहती रही है इस सिस्टम वाले शौचालयों का निर्माण बीते दो वर्षों से हो रहा है. लेकिन असल में दो गड्ढों वाले शौचालयों की संख्या उन राज्यों में सबसे ज्यादा है जहां हाल में शौचालयों का निर्माण पूरा हुआ है.

सर्वेक्षण में सामने आया है कि झारखंड में लगभग 58 फीसदी शौचालयों को दो गड्ढों से जोड़ा गया है. जो सूची में दूसरे स्थान पर है. राज्य को पिछले साल के अंत में खुले में शौच मुक्त (ओडीएफ) घोषित किया गया था.

राज्य की स्वच्छता सचिव आराधना पटनायक ने कहा, “हमारा ध्यान गुणवत्ता निर्माण और ट्विन-पिट तकनीक पर था.” वहीं, उत्तर प्रदेश में 64 फीसदी शौचालयों को दो गड्ढों से जोड़ा गया है. वह इस सूची में सबसे ऊपर है.

लेकिन बिना दो गड्ढों वाले शौचालयों की कुल संख्या 70 फीसदी है, जिसकी वजह से पर्यावरण और मल-निपटान की चुनौती नए स्तर पर पहुंच गई है.

सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट ने 2018 में उत्तर प्रदेश के 30 शहरों और कस्बों के सर्वेक्षण में पाया था कि 87 फीसदी शौचालयों के कचरे को जल निकायों और खेत में फेंक दिया जाता है.


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