‘बदजुबानी’ पर कार्रवाई में हुई देरी: पूर्व चुनाव आयुक्त


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पूर्व चुनाव आयुक्त ने चुनाव प्रचार के दौरान ‘बदजुबानी’ पर चिंता जाहिर की है. पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा कि सियासी नेताओं की विवादास्पद बयानबाजी के शुरुआती मामलों में निर्वाचन आयोग की ओर से कार्रवाई में थोड़ा विलंब हुआ है.

रावत ने कहा, “इस बार चुनावी विमर्श बदजुबानी पर चला गया है, जबकि पहले ऐसा बहुत कम होता था. सियासी नेताओं की बदजुबानी के दो-तीन शुरुआती मामलों में कार्रवाई में निर्वाचन आयोग की ओर से एक-दो दिन का विलंब हुआ जिसके बाद शीर्ष अदालत को टिप्पणी करनी पड़ी.”

उन्होंने कहा, “इस अदालती दखल के बाद हालांकि निर्वाचन आयोग की कार्रवाई तेज हुई और (विवादास्पद बयानबाजी को लेकर) बसपा सुप्रीमो मायावती और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चुनाव प्रचार पर बंदिश लगाई गई.  फिर कुछ अन्य मामलों में भी कदम उठाए गए. लेकिन शुरूआत में कार्रवाई में थोड़ी देरी से आम लोगों में धारणा बन गयी कि आयोग आदर्श आचार संहिता उल्लंघन के खिलाफ बेहद धीमी गति से कार्रवाई कर रहा है.”

रावत ने एक सवाल पर कहा कि आदर्श आचार संहिता उल्लंघन के कुछ मामलों में जिला निर्वाचन कार्यालयों ने निर्वाचन आयोग को समय से रिपोर्ट नहीं भेजी, जिससे आयोग पर अकारण आक्षेप लगे.

उन्होंने कहा, “अगर ये रिपोर्ट समय पर भेजी जाती तो इस परिस्थिति को टाला जा सकता था.”

उन्होंने एक सवाल पर इस बात को सिरे से खारिज किया कि चुनाव आयोग के पास पर्याप्त शक्तियां नहीं हैं. उन्होंने कहा, “आयोग की शक्तियों को लेकर कोई दिक्कत नहीं है. संविधान के कुछ प्रावधान तो यहां तक कहते हैं कि एक बार चुनावों की अधिसूचना जारी हो जाने के बाद चुनाव परिणाम घोषित होने तक शीर्ष अदालत भी (निर्वाचन से जुड़ी आयोग की प्रक्रिया में) दखल नहीं दे सकती.”

चुनावों के दौरान सियासी दलों के नेताओं द्वारा निर्वाचन आयोग को लेकर टीका-टिप्पणी पर रावत ने कहा, “देश के निर्वाचन आयोग की भूमिका रैफरी की तरह होती है. लेकिन जिन लोगों को लगता है कि उनका कोई नुकसान हो रहा है, वे आयोग के साथ पंचिंग बैग की तरह बर्ताव करने लगते हैं. इसके बावजूद दुनिया भर में हमारे आयोग की साख बरकरार है और वह अच्छा काम कर रहा है.”


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