बीते छह साल में 2.8 करोड़ ग्रामीण महिलाओं ने खोया रोजगार


over 2.8 crore rural women lost their jobs

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रोजगार के बिना महिला सशक्तिकरण सिर्फ एक जुमला ही कहा जाएगा. फिलहाल आंकड़ों से जो कहानी सामने आ रही है वो इसी बात की तस्दीक कर रही है. साल 2011-12 से लेकर अब तक रोजगार में महिलाओं की भागीदारी सात फीसदी गिर चुकी है.

रोजगार में महिलाओं की हिस्सेदारी का हाल ये है कि 2004-05 से अब तक पांच करोड़ से अधिक महिलाएं रोजगार से बाहर हो चुकी हैं. आंकड़ों के मुताबिक इस समय करीब 2.8 करोड़ महिलाएं रोजगार की तलाश में हैं.

तमाम सरकारी और गैरसरकारी आंकड़ों से एक बात तो साफ हो चुकी है कि देश रोजगार के लिहाज से बहुत बुरे दौर से गुजर रहा है. नए रोजगार के अवसर पैदा होना तो अलग बात है पहले से उपलब्ध रोजगार का बाजार भी सिकुड़ता जा रहा है.

नेशनल सैंपल सर्वे (एनएसएसओ) के आंकड़ों के मुताबिक 15 से 59 आयु वर्ग (जो कि कामकाजी उम्र मानी जाती है) में ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी 2004-05 से 2011-12 तक 49.4 फीसदी से गिरकर 35.8 फीसदी पर आ गई है. जबकि 2011-12 से 2017-18 में ये और ज्यादा कम होकर 24.4 फीसदी के चिंताजनक स्तर पर पहुंच गई है.

इंडियन एक्सप्रेस विशेषज्ञ के हवाले से लिखता है, “इसका एक संभावित कारण उच्च शिक्षा में बढ़ती भागीदारी हो सकता है, लेकिन इसे इतनी भारी गिरावट के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. एक दूसरी सफाई ये हो सकती है कि सिकुड़ते जॉब मार्केट में पुरुष वर्चस्व कायम हैं. इसमें ग्रामीण परिवेश की पारंपरिक सोच भी एक कारण हो सकती है, जहां महिलाओं को बाहर जाकर काम करना गलत माना जाता है.”

अगर शहरी वर्ग में हम रोजगार के आंकड़ों देखें तो यहां इस दौरान मामूली सुधार दिखाई देता है. यहां रोजगार में महिलाओं की भागीदारी में 0.4 फीसदी की मामूली बढ़त दर्ज की गई है. जबकि 2004-05 से 2011-12 के दौरान यहां 2.2 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी.

हालांकि लघु उद्योगों में महिलाओं की भागीदारी 13.6 फीसदी की तेज गति से गिरी है. अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव के दौर में ये उद्योग बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सके. ऐसे में या तो ये बंद हो गए या नौकरियां कम कर दी गईं. छंटनी के दौरान ज्यादातर महिलाओं को इसका शिकार होना पड़ता है. महिलाओं की भागीदारी में गिरावट की ये एक संभावित वजह हो सकती है.


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