पिता को न्याय दिलाने के लिए अंत तक लड़ूंगा: पहलू खान का बेटा


rajasthan police moves court to reopen pehlu khan lynching case

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हरियाणा के डेयरी किसान पहलू खान की राजस्थान के अलवर में पीट-पीटकर हत्या करने के दो साल बाद इस घटना का वीडियो देखने का विचार उनके बेटे इरशाद को अंदर से झकझोर देता है. जब भी उनके पिता का वीडियो टीवी पर दिखाया जाता है तो उनका 28 वर्षीय पुत्र इरशाद पिता के लिए न्याय दिलाने का संकल्प महसूस करता है.

इरशाद ने कहा कि अदातल के सभी छह आरोपियों को बरी करने के फैसले से दिल टूट गया. मैं अपने पिता को न्याय दिलाने के लिए अपनी अंतिम सांस तक कोशिश करूंगा चाहे इसके लिए हमें अपना घर ही क्यों ना बेचना पड़े, लेकिन हम न्याय के लिए लड़ते रहेंगे. मैं इस लड़ाई को सुप्रीम कोर्ट तक लेकर जाऊंगा और मैं अपनी आखरी सांस तक लड़ने के लिए प्रतिबद्ध हूं.

इरशाद ने आगे बताया कि प्रभावशाली अभियुक्तों के खिलाफ दो साल की कानूनी लड़ाई लड़ना परिवार के लिए आसान नहीं था.

उन्होंने याद करते हुए कहा कैसे यूपी के प्रख्यात कवि इमरान प्रतापगढ़ी द्वारा उनकी मां के बैंक अकाउंट नंबर को सोशल मीडिया पर डालने के बाद देश के हर कोने से उन्हें मदद मिली. उन्होंने बताया कि मदद के तौर पर मिले पैसों से उन्हें न्याय के लिए लड़ने में मदद मिली.

इरशाद ने बताया कि नूरुद्दीन नूर, असद हयात और रमजान चौधरी जैसे वकीलों ने भी हमारे लिए निस्वार्थ संघर्ष किया. लेकिन ज्यादातर खर्चे अलवर, बेहरोर और जयपुर की अदालतों के दौरे में हुए. प्रत्येक यात्रा पर खर्चा कम से कम 5000 रुपये से कम नहीं होता था.

पहलू खान की पत्नी जुबाना ने बताया कि कई समाजिक कार्यकर्त्ता, ग्रामीण, रिश्तेदार और यहां तक कि आम लोगों ने उनकी मदद की लेकिन सरकार की तरफ से आज तक उन्हें कोई मदद नहीं मिली. जुबाना ने बताया एसपी अलवर ने परिवार को पांच लाख मुआवजा देने की प्रक्रिया शुरू की थी लेकिन रकम अभी तक नहीं मिली.

पहलू खान अपने जीवन यापन के लिए डेयरी में आधा दर्जन मवेशियों को पालता था और अपनी आर्थिक स्थिति से निपटने के लिए परिवार वाले उसे मवेशियों को बेचने को मजबूर किया करते थे. पहलू खान ने बेटे इरशाद ने कहा कि हमने मुकदमे के दौरान आरोपियों की जमानत याचिका का विरोध करने के लिए उच्च न्यायलय के वकील को अपनी एक भैंस बेच दी थी. वकील ने एक बार की पेशी के लिए 55,000 रुपयों की मांग की थी , हमारे पास अपने मवेशियों को बेचने के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं था.

इरशाद के दोनों छोटे भाई भी परिवार की सहायता करने के लिए 4000-5000 रुपये प्रति माह पर ट्रक ड्राइवर के सहायक के रूप में काम कर रहे हैं.

इरशाद को लगता है कि पुलिस ने हर स्तर पर मामले को कमजोर करने के लिए काफी हद तक आरोपियों का साथ दिया है. पुलिस ने अनिवार्य टेस्ट शिनाख्त परेड (Identification parade) नहीं कराई. दो साल बाद अभियोजन पक्ष ने हमें तीस लोगों में से पहचान करने के लिए कहा गया. इतने लम्बे समय बाद हम उनके चहरे कैसे याद रख सकते हैं?


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