गैर वित्तीय कंपनियों की सेहत खस्ताहाल


gdp growth rate lowest in first quarter of current fiscal year

 

वर्तमान वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में कंपनियों  की आय और खर्च में कमी आई है. खासकर दिसंबर तिमाही में गैर वित्तीय कंपनियों की आय, खर्च और मुनाफे तीनो में कमी आई है. गैर वित्तीय कंपनियों का  तो मुनाफा ही घाटे में बदल गया है.

सरकार की ओर से अर्थव्यवस्था में निरंतर सुधार के दावे के विपरीत सीएमआईई की ओर से गैर वित्तीय कंपनियों की बैलेंस शीट के अध्ययन  से  पता चला  चलता है कि धरातल पर हालात अब भी खस्ता है. आय और खर्च में  कमी का सीधा मतलब है कि धंधा मंदा चल रहा हैं. जहां आय में कमी बताती है कि उपभोक्ता मांग सुस्त है वही खर्च में भारी  कमी का अर्थ ये है कि मांग में  कमी के कारण कंपनियों ने उत्पादन धीमा कर दिया है जिसकी वजह से वेतन भत्तों पर खर्च कम  करने के लिए छंटनी की गई होगी.

अध्ययन में 789 गैर वित्तीय कंपनियों की आय में  3.2 प्रतिशत, खर्च में 6. 8 प्रतिशत और मुनाफे में  20 प्रतिशत से भी ज्यादा की गिरावट दर्ज की गई है. पिछली तिमाही में 20.1 प्रतिशत के मुकाबले 0.7 प्रतिशत का घाटा हुआ है.

अपना खर्च कम करने के लिए इन कंपनियों द्वारा उत्पादन धीमा करने और छंटनी करने की बात इसलिए भी सही प्रतीत होती है क्योंकि मार्च 2018 को समाप्त  हुए वित्त वर्ष में 8429 के सर्वे से पता चला कि कंपनियों की  उसके पहले के वित्त वर्ष के मुकाबले आय में  मामूली बढ़ोतरी हुई लेकिन खर्च लगभग दोगुना  हो गया  था. आय मे 2.8 प्रतिशत की नाममात्र की  वृद्धि के मुकाबले खर्च 4.9 प्रतिशत बढ़ गया था. वित्त वर्ष 2016 यानि नोटबंदी के पहले ये खर्च मात्रा 1.9 प्रतिशत था जो 2018 में बढ़ कर 11.4 प्रतिशत हो गया था.

ज़ाहिर है कि कम हुई कमाई के कारण कंपनियों ने अपनी बैलेंस शीट दुरुस्त रखने के लिए खर्च के भारी बोझ को कम  करने के लिए कदम उठाये क्योंकि 2017  में 28.2  प्रतिशत लाभ के बदले इनका घाटा 37.2 प्रतिशत हो गया था.

अगर गैर वित्तीय कंपनियों की बात की जाये तो 6359 कंपनियों का 2017 में  24 प्रतिशत का लाभ 2018 में 7.1  प्रतिशत  के घाटे में  बदल गया.  उनकी नेटवर्थ भी 1.7 प्रतिशत घट गई.


Big News