जम्मू कश्मीर: भारत का मानवाधिकार परिषद से किनारा


eid ul azha prayers peaceful in valley says police

 

कश्मीर को लेकर मानवाधिकार परिषद के विपरीत रवैये की प्रतिक्रिया स्वरूप भारत के परिषद से किनारा करने की बात सामने आई है. दि हिंदू में छपी खबर के मुताबिक भारत ने मानवाधिकार परिषद को सूचित कर दिया है कि वह परिषद के साथ किसी तरह का संवाद नहीं करेगा.

जेनेवा आधारित संयुक्त राष्ट्र के अंग मानवाधिकार परिषद ने भारत से कश्मीर के कुछ मानवाधिकार उल्लंघन मामलों में कार्रवाई करने की बात कही थी. परिषद ने इसी साल मार्च में भारत सरकार को लिखा था कि उसने बीते सालों में हुए इन मामलों में क्या कार्रवाई की.

उधर कश्मीर आधारित दो गैरसरकारी संगठनों ने एक रिपोर्ट पेश की है. इस रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि सुरक्षा बलों की देखरेख में घाटी में कुछ टॉर्चर कैंपों को चलाया जा रहा है. जहां संदिग्ध लोगों से बातें उगलवाने के अमानवीय व्यवहार किया जाता है.

गैरसरकारी संगठन की इस रिपोर्ट में कथित तौर पर 206 गुप्त टॉर्चर कैंपों के बारे में बताया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक इन कैंपों में संदिग्ध लोगों से पूछताछ के दौरान बुरी तरह से टॉर्चर किया जाता है. लोगों को पानी में डुबोकर रखा जाता है. उनके कपड़ों में चीनी का घोल डालकर चूहे भर दिए जाते हैं.

“टॉर्चर: भारत प्रशासित कश्मीर में भारतीय नियंत्रण के तरीके” नाम से प्रकाशित ये रिपोर्ट अपनी तरह की पहली रिपोर्ट है. बताया जा रहा है कि 560 पन्नों की इस रिपोर्ट को सालों की रिसर्च के बाद तैयार किया गया है.

टेलीग्राफ रिपोर्ट के हवाले से लिखता है कि संदिग्ध से जानकारी निकालने के लिए बहुत बुरे तरीके प्रयोग किए जाते हैं. इनमें उन्हें पानी में डुबोने से लेकर सोने ना देना, यौन उत्पीड़न यहां तक की रेप और अप्राकृतिक संबंध भी शामिल हैं.

इस रिपोर्ट में 432 मामलों का अध्ययन किया गया है. इन 432 लोगों में से कम से कम 40 लोगों की टॉर्चर से मिले घावों के चलते मौत हो चुकी है. हालांकि रिपोर्ट ये भी कहती है कि यहां हजारों लोगों के सात ऐसा व्यवहार किया जाता है, लेकिन इस मामले में सिर्फ 432 लोगों को अध्ययन में शामिल किया गया है.

रिपोर्ट के मुताबिक इन लोगों में 24 महिलाएं हैं जिनमें 12 के साथ कथित तौर पर रेप भी हुआ है. जबकि 21 नाबालिग भी शामिल हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन लोगों को इस अध्ययन में शामिल किया गया है उनमें से 301 आम नागरिक हैं जबकि 119 चरमपंथी हैं.

दि हिंदू लिखता है कि मानवाधिकार परिषद की ओर से नियुक्त अधिकारियों ने केवल साल 2018 में उत्पीड़न के 13 ऐसे मामलों को संज्ञान में लिया. इस दौरान सुरक्षा बलों की गोली से आठ नागरिक मारे गए, जिनमें चार बच्चे शामिल थे.

इसके बाद जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र के लिए भारत के स्थायी मिशन ने इन सभी आरोपों को सिरे से नकार दिया था. मानवाधिकार परिषद को लिखी 23 अप्रैल के जवाब में भारत की ओर से कहा गया, “भारत… इन जनादेश धारकों से आगे इस मुद्दे पर किसी तरह से संलग्न नहीं होना चाहता.” इसमें भारत की ओर से परिषद की रिपोर्ट को पूर्वाग्रह से प्रभावित बताया गया था.

उधर संयुक्त राष्ट्रसंघ ने भारत पर मानवाधिकार को लेकर हुए समझौतों के उल्लंघन का आरोप लगाया है. संयुक्त राष्ट्र के रिकॉर्ड के मुताबिक भारत में उसके अधिकारियों की 20 से अधिक यात्राएं इंतजार में हैं. इनमें से ज्यादातर जम्मू कश्मीर से संबंधित हैं.

यूएन की ओर से कहा गया है कि साल 2016 से लेकर 2018 के बीच मानवाधिकार परिषद ने भारत को 58 से अधिक संवाद पत्र भेजे हैं, लेकिन भारत की ओर से इनका कोई जवाब नहीं दिया गया है.

दि हिंदू ने यूएन के हवाले से लिखा है कि मानवाधिकार परिषद की जम्मू कश्मीर में आखिरी विजिट साल 2017 में हुई थी. परिषद का ये दौरा पानी और सफाई से संबंधित था.


ताज़ा ख़बरें