चुनाव आयोग के फॉर्मूले से नहीं सुनिश्चित होंगे निष्पक्ष चुनाव: विशेषज्ञ


evm and postal ballot can be counted simultaneously says ec

 

चुनाव आयोग द्वारा ईवीएम मशीनों के उपयोग में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए गठित पैनल के सदस्यों का मानना है कि देश भर से 10 लाख 35 हजार ईवीएम में से 20 हजार 625 ईवीएम के मिलान से निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित नहीं किया जा सकता.

इस संबंध में दि टेलीग्राफ ने एक खबर प्रकाशित है जिसमें पैनल के सदस्यों के हवाले से लिखा है कि ईवीएम से वीवीपैट मिलान की कोई एक निर्धारित संख्या निष्पक्ष चुनाव की गारंटी नहीं दे सकती है. उनका मानना है कि करीब-करीब सही परिणाम हासिल करने के लिए विभिन्न मानदंडों को ध्यान में रखा जाना चाहिए.

कल ईवीएम और वीवीपैट मिलान पर 21 विपक्षी पार्टियों की पुर्नविचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था. इसके बाद विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने एक बार फिर चुनाव आयोग से मिलकर अपनी बात स्पष्ट करने की कोशिश की थी.

विपक्षी पार्टियां 50 फीसदी ईवीएम से वीवीपैट के मिलान की मांग करती रही हैं जबकि चुनाव आयोग का मानना है कि हर विधानसभा में केवल पांच ईवीएम चुनकर वीवीपैट से मिलान करने से पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सकती है. विपक्ष की याचिका के जवाब में चुनाव आयोग ने भारतीय सांख्यिकी संस्थान, दिल्ली से अभय भट्ट, चेन्नई मैथेमैटिकल इंस्टीट्यूट के निदेशक राजीव करंदीकर और केंद्रीय सांख्यिकीय संगठन के उप-महानिदेशक ओंकार घोष की स्टडी का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि अगर 2 फीसदी या इससे ज्यादा ईवीएम में गड़बड़ी आती है तो 10 लाख 35 हजार ईवीएम में से चुनकर 479 का वीवीपैट से मिलान पर्याप्त होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसले में कहा है कि 4 हजार 125 विधानसभा क्षेत्र में 20 हजार 625 ईवीएम का वीवीपैट से मिलान (कुल संख्या का 2 फीसदी) पर्याप्त है.

क्या है जानकारों का मानना

-अलग-अलग लोकसभा क्षेत्रों में ईवीएम से वीवीपैट की मिलान की अलग संख्या रखी जानी चाहिए. साथ ही यह एक रैंडम प्रक्रिया तहत होना चाहिए.

-जिन लोकसभा क्षेत्रों में संभावित गड़बड़ियों की आशंका है उन इलाकों में ईवीएम और वीवीपैट मिलान की संख्या को बढ़ाया जा सके. यह क्षेत्र की संवेदनशीलता पर निर्भर कर सकता है.

-ईवीएम और वीवीपैट मिलान प्रतिशत जीत की बढ़त पर भी निर्भर कर सकता है. इसे उदाहरण से समझा जा सकता है- ‘क’ लोकसभा क्षेत्र में एक उम्मीदवार तीन लाख के अंतर से जीत रहा जबकि ‘ख’ क्षेत्र में तीन हजार वोटों के अंतर से. ऐसे में ‘ख’ क्षेत्र में छेड़छाड़ होने की ज्यादा संभावनाएं है क्योंकि वहां केवल कुछ हजार वोटों को बदलने की जरूरत है. जबकि ‘क’ क्षेत्र में कई लाख वोटों का बदलना कम संभव है. कम जीत का प्रतिशत यानी ज्यादा गड़बड़ी की संभावना.

दरअसल, ईवीएम से वीवीपैट मिलान के लिए इन्हें कनेक्ट किया जाता है. मशीन एक-एक कर पर्ची पर मतदाता का नाम, संख्या और पार्टी के चुनाव चिन्ह को दिखाती है. यह पर्चियां नीचे जुड़े बॉक्स में जमा होती रहती हैं. गिनने की पूरी प्रक्रिया के बाद अगर ईवीएम और वीवीपैट में दिखाई गई संख्या में कोई अंतर नहीं है तो माना जाता है कि प्रक्रिया सही तरीके से पूरी हुई.

क्या है चुनाव आयोग का पक्ष

चुनाव आयोग का पक्ष रहा है कि तकनीकी, प्रशासनिक और सुरक्षा के स्तर पर कदम उठाकर ईवीएम के साथ किसी भी गड़बड़ी की संभावना को खत्म किया जा सकता है. अब तक आयोग ईवीएम प्रणाली के पक्ष में ये तर्क सामने रखता रहा है:

-ईवीएम का सॉफ्टवेयर सोर्स कोड केवल भारत इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन के आधिकारिक अधिकारी के साथ ही साझा किया जाता है.

-ईवीएम किसी भी तरह से इंटरनेट, कंप्यूटर और कम्युनिकेशन डिवाइस से नहीं जुड़ी होती है. ऐसे में किसी भी तरह के वायरलेस नेटवर्क से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है.

-कौन सी ईवीएम किस लोकसभा क्षेत्र में भेजी जाएगी, यह पहले से निर्धारित नहीं होता है.

-ईवीएम पर उम्मीदवारों के नाम निर्धारण की प्रक्रिया है. जिसमें सबसे पहले राष्ट्रीय पार्टी के उम्मीदवार, फिर क्षेत्रीय पार्टी के उम्मीदवार और अंत में निर्दलीय उम्मीदवारों के नाम दिए जाते हैं.

-ईवीएम को चुनाव में मतदान के लिए भेजने से पहले जांच के लिए राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में पांच फीसदी ईवीएम को चुनकर एक हजार वोट डाले जाते हैं.


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