छूट पाने के बाद अभ्यर्थी की श्रेणी में बदलाव नहीं: सुप्रीम कोर्ट


supreme court rejects all review petition in ayodhya verdict

 

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि चयन प्रक्रिया में उम्र संबंधी छूट का लाभ उठाने वाला आरक्षित श्रेणी का अभ्यर्थी बाद के चरण में सामान्य श्रेणी की सीट पर स्थानान्तरित नहीं किया जा सकता है.

सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा कि आरक्षित श्रेणी के उम्मीदवार, जिन्होंने चयन प्रक्रिया में उम्र में छूट का लाभ उठाया है वह चयन प्रक्रिया के अगले चरण में सामान्य श्रेणी में नहीं जा सकते हैं.

शीर्ष अदालत ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 16 (4) एक राज्य को किसी भी पिछड़े वर्ग के नागरिकों को नियुक्तियों में आरक्षण देने का अधिकार देता है, जो कि उसके अनुसार, वहां की सेवा में समुचित रूप में प्रतिनिधित्व नहीं करता है.

शीर्ष अदालत ने यह फैसला हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाले नीरव कुमार दिलीपभाई मकवाना नाम के अभ्यर्थी की याचिका पर आया जिसमें गुजरात लोक सेवा आयोग की चयन प्रक्रिया को बरकरार रखा गया था.

न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और इंदिरा बनर्जी की एक बेंच ने गुजरात हाई कोर्ट के उस फैसले पर समर्थन किया जिसमें उसने कहा था कि जिन अभ्यर्थियों को आरक्षित श्रेणी में होने की वजह से उम्र सीमा छूट का लाभ मिला था उन्हें सामान्य श्रेणी में नहीं गिना जाएगा. साथ ही उनके केस को भी आरक्षित कैटेगरी के मामलों में ही रखा जाएगा.

पीठ ने कहा, ‘‘राज्य सरकार ने स्पष्ट किया है कि जब लिखित परीक्षा में प्रयासों की संख्या की अनुमति, आयु सीमा, अनुभव, योग्यता आदि में एससी, एसटी और एसईबीसी श्रेणी के लिए किसी उम्मीदवार के चयन में कोई छूट संबंधी मानक लागू होता है तो इस तरह से चयनित इस श्रेणी के उम्मीदवार पर केवल आरक्षित सीट के लिए ही विचार किया जा सकता है.  इस तरह के उम्मीदवार को अनारक्षित सीट पर विचार के लिए अनुपलब्ध माना जाएगा.’’

अदालत ने कहा कि पिछड़े वर्गों के लिए सशर्त या बिना शर्त छूट या तरजीह संबंधी नीतियां बनाना पूरी तरह से राज्य सरकार का विवेकाधिकार है.

पीठ ने गुजरात सरकार द्वारा 21 जनवरी 2000 और 23 जुलाई 2004 को जारी सर्कुलर का जिक्र करते हुए कहा कि राज्य सरकार ने एससी, एसटी और ओबीसी के समर्थन में आरक्षण देने की नीति बनाई है.


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