बिना सीवी अमेरिकन फिलोसोफिकल सोसायटी में सदस्य चुनी गईं रोमिला थापर


romila thapar selected by american philosophical society without submission of cv

 

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर एमेरिटस के रूप में दशकों से कार्यरत प्रख्यात इतिहासकार रोमिला थापर से जहां विश्वविद्यालय प्रशासन ने उनका सीवी मांगा, वहीं प्रसिद्ध अमेरिकन फिलोसोफिकल सोसायटी (एपीएस) ने इस साल जून में उन्हें बिना किसी सीवी की शर्त पर सदस्य के रूप में चुना.

नियमानुसार चलने वाली जेएनयू की तरह नहीं जो प्रोफेसर एमेरिटस के पद से सम्मानित रोमिला थापर से उनका सीवी मांगे.

द टेलीग्राफ द्वारा पूछे जाने पर कि क्या सोसायटी ने उनसे सीवी की मांग की थी? के जवाब में थापर ने कहा, “नहीं, बिलकुल भी नहीं. मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता था. उनकी ओर से बताए जाने पर ही मुझे पता चला कि मुझे एक सदस्य के रूप में चुना गया है.”

सोसाइटी के स्थापना 276 साल पहले बेंजामिन फ्रेंक्लिन ने की थी. संस्थान विज्ञान और आटर्स के क्षेत्र में विद्वानों द्वारा उत्कृष्ट शोध कार्यों को बढ़ावा देता है.

थापर को जून में एपीएस से पत्र मिला था.

थापर करीब छह दशकों से शिक्षक और शोधकर्ता रहीं है. उन्हें प्रारंभिक भारतीय इतिहास में विशेषज्ञता प्राप्त है. जेएनयू में वह वर्ष 1970 से 1991 तक प्रोफेसर रहीं थी. इसके बाद वर्ष 1993 में उन्हें प्रोफेसर एमेरिटस के तौर पर चुना गया था. उन्हें यूएस लाइब्रेरी ऑफ कांग्रेस के प्रतिष्ठित ‘क्लूज पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया जा चुका है. यह सम्मान नोबेल पुरस्कार द्वारा कवर नहीं किए गए अध्ययन में जीवन भर की उपलब्धि के लिए दिया जाता है.

उनकी किताब ‘द पब्लिक इंटलेक्चुअल इन इंडिया’ में नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में बढ़ रहे असहिष्णुता का आलोचनात्मक विश्लेषण करती है.

जेएनयू प्रशासन की मांग पर थापर ने पूछा था कि कमिटी क्या-क्या और कैसे-कैसे आंकने वाली है.

वहीं जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (जेएनयूटीए) ने प्रशासन द्वारा बायोडाटा मांगने के फैसले को ‘राजनीतिक रूप से प्रेरित’ बताया है.

जेएनयूटीए ने कहा कि यह एक “जानबूझकर किया गया प्रयास है और उन लोगों को बेइज्जत करना जो वर्तमान प्रशासन के आलोचक हैं.” उसने इस कदम की औपचारिक वापसी और थापर के लिए व्यक्तिगत माफी जारी करने की मांग की.

एसोसिएशन ने प्रशासन द्वारा थापर को अपने ‘ओछे पत्र’ के माध्यम से जेएनयू के शिक्षण और सीखने की परंपराओं को ‘बदनाम’ करने के प्रयासों पर नाराजगी व्यक्त की.

जेएनयू शिक्षक संघ ने कहा कि बीते साढ़े तीन वर्षों से जेएनयू के वाइस चांसलर और कार्यकारी परिषद में उनकी चुनी हुई टीम का एजेंडा है कि वो विश्वविद्यालय की विरासत और वादों को बरबाद करके रख दें.

विश्वविद्यालय में एक अन्य प्रोफेसर एमेरिटस सीपी भांबरी ने कहा कि “थापर मौजूदा सरकार की कढ़ी आलोचक रही हैं. उन्हें जबरदस्ती परेशान करने की कोशिश की जा रही है. दरअसल उन्हें किसी तरह के सर्टिफिकेट या प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं है.”

स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड एस्थेटिक्स के वाईएस अलोन और प्रोफेसर एमेरिटस जोया हसन ने प्रोफेसर एमेरिटस से सीवी मांगने की प्रक्रिया को नकार दिया.

अलोन ने कहा, “ये साफ है कि प्रोफेसर एमेरिटस एक सम्मानीय दर्जा है. जो शिक्षण के क्षेत्र में बेहतरीन काम करने वालों को दिया जाता है. सेवानिवृत्ति के बाद किए गए काम या भविष्य परियोजनाओं का एमेरिटस के तौर पर कार्यकाल जारी रखने से कोई संबंध नहीं है.”

हसन ने कहा, “जिस विद्वान को ये पद दिया जाता है वो स्वयं इसके लिए आवेदन नहीं देते हैं. किसी को भी एमेरिटस प्रोफेसर के तौर पर काम करते रहने के लिए जरूरी नहीं है कि वो अपना सीवी दें. ये सम्मान जीवनभर के लिए दिया जाता है और वापस नहीं लिया जा सकता है. जेएनयू परिषद का ये कदम बुद्धजीवियों के खिलाफ है.”


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