आरएसएस सरसंघचालक भागवत ने आरक्षण पर चर्चा की मांग की


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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को कहा कि जो आरक्षण के पक्ष में हैं और जो इसके खिलाफ हैं उन लोगों के बीच इस पर सद्भावपूर्ण माहौल में बातचीत होनी चाहिए.

उन्होंने कहा कि आरक्षण का पक्ष लेने वालों को उन लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए बोलना चाहिए जो इसके खिलाफ हैं और इसी तरह से इसका विरोध करने वालों को इसका समर्थन करने वालों के हितों को ध्यान में रखते हुए बोलना चाहिए.

उन्होंने कहा कि आरक्षण पर चर्चा हर बार तीखी हो जाती है जबकि इस दृष्टिकोण पर समाज के विभिन्न वर्गों में सामंजस्य जरूरी है.

भागवत प्रतियोगी परिक्षाओं पर आयोजित एक कार्यक्रम ‘ज्ञान उत्सव’ के समापन सत्र में बोल रहे थे. यह कार्यक्रम आरएसएस के सह संगठन शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा इग्नू, नई दिल्ली में आयोजित किया गया था.

भागवत ने कहा कि उन्होंने पहले भी आरक्षण पर बात की थी लेकिन इससे काफी हंगामा मचा और पूरी चर्चा वास्तविक मुद्दे से भटक गई.

इससे पहले, आरएसएस प्रमुख ने आरक्षण नीति की समीक्षा करने की वकालत की थी, जिस पर कई दलों और जाति समूहों की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आयी थी.

भागवत ने कहा कि आरएसएस, भाजपा और पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार तीन अलग-अलग इकाइयां हैं और किसी को दूसरे के कार्यों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता.

नरेंद्र मोदी सरकार पर आरएसएस के प्रभाव की धारणा के बारे में बात करते हुए भागवत ने कहा, “चूंकि भाजपा और इस सरकार में संघ कार्यकर्ता हैं, वे आरएसएस को सुनेंगे, लेकिन उनके लिए हमारे साथ सहमत होना जरूरी नहीं है. वे असहमत भी हो सकते हैं.”

उन्होंने कहा कि चूंकि भाजपा सरकार में है, उसे व्यापक आधार पर देखना होगा और वह आरएसएस की बात से असहमत हो सकती है. उन्होंने कहा कि एक बार पार्टी के सत्ता में आने के बाद उसके लिए सरकार और राष्ट्रीय हित प्राथमिकता बन जाते हैं.

ज्ञान उत्सव का आयोजन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा यहां इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) में किया गया था.


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