जम्मू-कश्मीर: धारा 144 हटाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दखल देने से इनकार


765 detained relating to stone pelting after scrapping article 370

 

जम्मू-कश्मीर में लगी धारा 144 को हटाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने दखल देने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कांग्रेस कार्यकर्ता तहसीन पूनावाला की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि मामला संवेदनशील है और इसमें सरकार को वक्त मिलना चाहिए.

याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से पूछा कि आखिर धारा 144 कब तक लगी रहेगी. अटॉर्नी जनरल ने कहा कि जैसे ही स्थिति सामान्य हो जाएगी, व्यवस्था भी सामान्य हो जाएगी. हम कोशिश कर रहे हैं कि लोगों को कम से कम असुविधा हो, तीन महीने में स्थित सामान्य हो जाएगी.

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से सवाल करते हुए कहा कि आप कौन हैं! किसी भी मामले पर आप याचिका दायर कर सकते हैं! ग्राउंड रियलिटी के बारे में बिना किसी जानकारी के कैसे याचिका दायर की जा सकती है! बेहद संवेदनशील मामला है. सरकार पर भरोसा रखना चाहिए.

इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट दो हफ्ते बाद फिर से सुनवाई करेगा.

इससे पहले जम्मू कश्मीर में संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को निरस्त करने के बाद राज्य में कुछ प्रतिबंध लगाने और अन्य कड़े उपाय करने के केन्द्र के फैसले के खिलाफ कांग्रेस कार्यकर्ता तहसीन पूनावाला ने याचिका दायर की.

न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा, न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने इस याचिका पर सुनवाई की.

इसके अलावा, कश्मीर टाइम्स की कार्यकारी संपादक अनुराधा भसीन की याचिका पर शीघ्र सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया. अनुराधा भसीन चाहती हैं कि अनुच्छेद 370 के प्रावधान निरस्त किए जाने के बाद राज्य में पत्रकारों के कामकाज पर लगाये गए प्रतिबंध हटाए जाएं.

पूनावाला ने अपनी याचिका में कहा है कि वह अनुच्छेद 370 के बारे में कोई राय व्यक्त नहीं कर रहे हैं लेकिन वह चाहते हैं कि वहां से कर्फ्यू एवं पाबंदियां तथा फोन लाइन, इंटरनेट और समाचार चैनल अवरूद्ध करने सहित दूसरे कथित कठोर उपाय वापस लिए जाएं.

इसके अलावा, कांग्रेस कार्यकर्ता ने पूर्व मुख्यमंत्रियों उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती जैसे नेताओं को रिहा करने का निर्देश देने का अनुरोध किया है, जो इस समय हिरासत में हैं. इसके साथ ही उन्होंने जम्मू और कश्मीर की वस्तुस्थिति का पता लगाने के लिए एक न्यायिक आयोग गठित करने का भी अनुरोध किया है.

उन्होंने याचिका में दावा किया है कि केन्द्र के फैसलों से संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है.

याचिका के अनुसार समूचे राज्य की एक तरह से घेराबंद कर दी गई है और दैनिक आधार पर सेना की संख्या में वृद्धि करके इसे एक छावनी में तब्दील कर दिया गया है, जबकि संविधान संशोधन के खिलाफ वहां किसी प्रकार के संगठित या हिंसक विरोध के बारे में कोई खबर नहीं है.


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