भावनात्मक तौर पर खत्म रिश्ता बन सकता है तलाक का आधार: SC
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ताजा फैसला में कहा कि अगर शादी पूरी तरह असफल हो गई है और भावनात्मक रूप से रिश्ते में कुछ नहीं बचा तो तलाक को मंजूरी दी जा सकती है.
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को 22 साल से एक दूसरे से अलग रह रहे दंपत्ति के वैवाहिक संबंधों को खत्म कर दिया. कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 में प्रदत्त विशेष अधिकार का इस्तेमाल करते हुए कहा कि यह ऐसा मामला है जिसमें वैवाहित रिश्ते जुड़ नहीं सकते हैं.
जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने कहा कि इस वैवाहिक रिश्ते को बनाए रखने और संबंधित पक्षों में फिर से मेल मिलाप के सारे प्रयास विफल हो गए हैं. पीठ ने कहा कि ऐसा लगता है कि अब इस दंपत्ति के बीच रिश्ते जुड़ने की कोई संभावना नहीं है क्योंकि वे पिछले 22 साल से अलग-अलग रह रहे हैं और अब उनके लिए एक साथ रहना संभव नहीं होगा.
पीठ ने अपने फैसले में कहा, “इसलिए, हमारी राय है कि प्रतिवादी पत्नी को भरण पोषण के लिए एक मुश्त राशि के भुगतान के माध्यम से उसके हितों की रक्षा करते हुए इस विवाह को विच्छेद करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 में प्रदत्त अधिकार के इस्तेमाल का सर्वथा उचित मामला है.”
शीर्ष अदालत ने ऐसे अनेक मामलों में विवाह विच्छेद के लिए संविधान के अनुच्छेद 142 में प्रदत्त अधिकारों का इस्तेमाल किया है जिनमें कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि उनमें वैवाहिक संबंधों को बचाकर रखने की कोई संभावना नहीं है और दोनों पक्षों के बीच भावनात्मक रिश्ते खत्म हो चुके हैं.
कोर्ट ने हाल में एक फैसले में पत्नी की इस दलील को अस्वीकार कर दिया कि दोनों पक्षों की सहमति के बगैर संविधान के अनुच्छेद 142 में प्रदत्त अधिकारों का इस्तेमाल करके भी विवाह इस आधार पर खत्म नहीं किया जा सकता कि अब इसे बचा कर रखने की कोई गुंजाइश नहीं हैं.
पीठ ने कहा कि यदि दोनों ही पक्ष स्थाई रूप से अलग-अलग रहने या तलाक के लिये सहमति देने पर राजी होते हैं तो ऐसे मामले में निश्चित ही दोनों पक्ष परस्पर सहमति से विवाह विच्छेद के लिए सक्षम अदालत में याचिका दायर कर सकते हैं.
पीठ ने कहा कि इसके बावजूद आर्थिक रूप से पत्नी के हितों की रक्षा करनी होगी ताकि उसे दूसरों पर निर्भर नहीं रहना पड़े.
कोर्ट ने पति को निर्देश दिया कि वह अलग रह रही पत्नी को आठ सप्ताह के भीतर बैंक ड्राफ्ट के माध्यम से 20 लाख रुपये का भुगतान करे.
इस दंपत्ति का नौ मई, 1993 को विवाह हुआ था और अगस्त 1995 में उन्हें एक संतान हुई. हालांकि, आगे चलकर पति और पत्नी में मतभेद होने लगे और पति के अनुसार उसके साथ क्रूरता बरती जाने लगी.
करीब दो साल बाद 1997 में पत्नी ने अपने पति का घर छोड़ दिया और वह अपने माता पिता के घर में रहने लगी. इसके बाद पति ने 1999 में हैदराबाद की फैमिली कोर्ट में क्रूरता के आधार पर विवाह विच्छेद की याचिका दायर की थी. फैमिली कोर्ट ने 2003 में इसे खारिज करते हुये कहा कि पति क्रूरता के आरोप साबित करने में विफल रहा है.
इसके बाद, पति ने इस आदेश को उच्च कोर्ट मे चुनौती दी लेकिन वहां 2012 में उसकी अपील खारिज हो गई.
इसके बाद पति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके उच्च कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी.