दस लाख से ज्यादा आदिवासी हो जाएंगे बेघर
एक बेहद महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 16 राज्यों से करीब 10 लाख से ज्यादा आदिवासियों और जंगल में रहने वाले समुदायों से जबरन जंगल खाली कराने का आदेश दिया है. हैरानी की बात ये है कि सरकार ने कोर्ट में इन समूहों के अधिकारों के बचाव के लिए अपना पक्ष तक नहीं रखा. इस मामले में उसकी तरफ से कोई भी वकील कोर्ट में पेश नहीं हुआ.
बिजनेस स्टैंडर्ड की खबर के मुताबिक कोर्ट ने अपने आदेश में राज्य सरकारों को 27 जुलाई तक आदिवासी समूहों से जंगल खाली कराने को कहा है. जाहिर है कि इस आदेश के बाद देश में जबरन विस्थापित किए गए आदिवासी समूहों की संख्या में बहुत तेज इजाफा होगा. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश महज 16 राज्यों के सन्दर्भ में दिया है, लेकिन देश के अन्य राज्य भी उसका यह आदेश मानने को बाध्य होंगे.
कोर्ट का यह आदेश वन्य अधिकार अधिनियम के खिलाफ वन्यजीव समूहों की ओर से दायर याचिका पर आया है. इस मामले में याचिकाकर्ताओं में से एक गैर-सरकारी संगठन ‘वाइल्डलाइफ फर्स्ट’ ने अपनी याचिका में कहा है कि वन्य अधिकार अधिनियम संविधान के खिलाफ है और इस अधिनियम की वजह से जंगल खत्म हो रहे हैं. उनका तर्क है कि अगर ये कानून लागू भी रहे तो भी जिन लोगों के जमीन पर दावे खारिज हो चुके हैं, राज्य सरकारों को उनसे जंगल खाली करा लेना चाहिए.
इस तर्क पर सख्त रुख अपनाते हुए कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि जिन जमीनों पर दावे खारिज हो चुके हैं, उन जमीनों को राज्य सरकारों को अगली सुनवाई तक या उससे पहले खाली करवा लेना होगा. अगर ऐसा नहीं होता तो कोर्ट इस मामले पर कड़ा रुख अख्तियार करेगा.
वर्तमान में 16 राज्यों के कुल 11,27,446 लोग हैं, जिनके दावे जमीन पर खारिज किए जा चुके हैं और जिनकी जानकारी राज्य सरकारों ने कोर्ट को दी है.
वन संरक्षण अधिनियम (2006) यूपीए के पहले कार्यकाल के दौरान पास हुआ था. यह कुछ निश्चित मानकों के आधार पर परंपरागत रूप से जंगलों में रहने वाले आदिवासी समुदायों और स्थानीय लोगों के भूमि अधिकारों को संरक्षण प्रदान करता है. इस कानून के तहत स्थानीय लोगों का विस्थापन अंतिम विकल्प है. हालांकि विस्थापन की स्थिति में यह लोगों का पुर्नस्थानापन का अधिकार भी प्रदान करता है.
वन अधिकारी और कुछ वन्यजीव संरक्षण समूह मानते हैं कि इस कानून के जरिए जंगलों का अतिक्रमण हो रहा है. वहीं, आदिवासी समूहों का तर्क रहा है कि जंगल की जमीन पर खारिज हुए उनके दावों की फिर से समीक्षा की जरुरत है. आदिवासी मामलों के मंत्रालय द्वारा बनाये गए नए नियमों के बाद यह समीक्षा और जरूरी हो गई है.
हालांकि इस मामले में ज्यादा आश्चर्य की बात है कि 13 फरवरी को सुनवाई के दौरान अधिनियम का बचाव करने के लिए केंद्र सरकार की ओर से कोर्ट में कोई भी वकील पेश नहीं हुआ था, जिसके कारण कोर्ट में आदिवासियों का पक्ष नहीं रखा गया. इसके बाद अरूण मिश्रा, नवीन सिन्हा और इंदिरा बनर्जी की बेंच ने फैसला सुनाते हुए 10 लाख से ज्यादा लोगों को जंगल खाली करने का आदेश दे दिया.
कोर्ट ने राज्य सरकारों को अगली सुनवाई तक जंगल खाली करवाने के साथ ही मामले पर विस्तृत रिपोर्ट जमा करने के आदेश भी दिए हैं. जानकार मान रहे हैं कि कोर्ट के आदेश से यह साफ़ नहीं है कि उसने इस मामले में राज्य सरकारों को जमीन खाली कराने का आदेश दिया है या उनसे खारिज दावों की विस्तृत रिपोर्ट मांगी है.
इस पूरे मामले में केंद्र सरकार की नीयत पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गंभीर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि लाखों आदिवासियों को बेघर करने में मोदी सरकार की मौन सहमति शामिल रही है.