फांसी की सजा पाए छह लोगों को 16 साल बाद निर्दोष पाया गया


supreme court rejects all review petition in ayodhya verdict

 

सुप्रीम कोर्ट ने अपने 10 साल पुराने फैसले को पलटते हुए बड़ा फैसला सुनाया है. साल 2009 में कोर्ट ने हत्या, डकैती और सामूहिक बलात्कार के एक मामले में छह लोगों को दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुनाई थी. कोर्ट ने अपने फैसले पर रोक लगाते हुए सभी छह आरोपियों को बरी करने का आदेश दिया है.

जस्टिस एके सीकरी, एस अब्दुल नजीर और एमआर शाह की बेंच ने घुमंतू जनजातियों के छह आरोपियों को बरी करने का आदेश देते हुए अपने फैसले में कहा कि इन्हें झूठे केस में फंसया गया है. इसके साथ ही कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को चार हफ्तों के भीतर सभी आरोपियों को पांच लाख रुपये मुआवजा देना का भी आदेश दिया है.

कोर्ट ने मामले में एक बार फिर जांच के आदेश देते हुए कहा, इस मामले में उन तमाम अधिकारियों का पता लगाया जाए जिनकी वजह से असली दोषी बच निकले.

कोर्ट ने कहा, “मामले में जब सजा सुनाई गई तब एक नाबालिग समेत सभी आरोपी 25 से 30 साल के थे, गलत फैसले की वजह से इन्हें जेल में अपने अहम साल गंवाने पड़े. इनके परिवार ने भी काफी प्रताड़ना झेली. इसलिए इस मामले में तथ्यों और परिस्थिति को देखते हुए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए हम महाराष्ट्र सरकार को प्रत्येक व्यक्ति को पांच लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश देते हैं.”

साल 2003 में नासिक के एक घर में घुसकर डकैती, सामूहिक बलात्कार और फिर एक परिवार के पांच लोगों की हत्या का मामला सामने आया था. अभियोजन पक्ष ने इस मामले में छह लोगों को दोषी बताते हुए कार्रवाई की मांग की थी. जिसके बाद नासिक सेशन कोर्ट ने 12 जून, 2006 में मामले में गिरफ्तार किए गए सभी छह आरोपियों को दोषी करार दिया था.

इसके बाद बॉम्बे हाई कोर्ट ने सुनवाई करते हुए तीन लोगों को मौत की सजा और तीन आरोपियों को उम्र कैद की सजा सुनाई थी. मौत के सजा पाने वाले तीन दोषी बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. जहां राज्य ने सुप्रीम कोर्ट से मामले में उम्र कैद की सजा पाने वाले तीन दोषी करार दिए गए लोगों के लिए मौत की सजा की मांग की थी. सुप्रीम कोर्ट ने 30 अप्रैल, 2009 में आखिरी फैसला सुनाते हुए मामले में सभी छह आरोपियों को दोषी बताते हुए मौत की सजा सुनाई थी.

बीते साल 31 अक्टूबर को कोर्ट ने सभी दोषियों की याचिका ने पर सुनवाई करने लिए सहमति जताई थी. मामले में साल 2003 में गिरफ्तार किए गए छह आरोपी जेल में 16 साल की सजा काट चुके हैं.

10 साल बाद मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, “सभी छह आरोपी घुंमतू जनजातियों और गरीब मजदूर वर्ग से आते हैं. यह समाज का शोषित और पीड़ित तबका है. इस मामले से जुड़े तथ्यों को देखते हुए इन लोगों पर झूठे केस लगाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. इस तरह के गंभीर आरोप में कभी-कभी बेगुनाह लोगों को फंसाया जाता है.”

कोर्ट ने मामले में जांच एजेंसियों की विफलता उजागर करते हुए कहा, “जांच के दौरान एजेंसियों की ओर से बड़ी चूक हुई है, जिसकी वजह से मामले में ईमानदार ट्रायल नहीं हुआ. यह अनुच्छेद 20 और 21 के तहत आरोपियों के आधारभूत अधिकारों का हनन है.”

कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार समेत मुख्य सचिव और गृह विभाग को मामले में सभी आरोपी अधिकारियों का पता लगाने के आदेश दिए हैं, जिनकी वजह से दोषी बच निकले और बेगुनाहों के खिलाफ झूठा केस बनाया गया.


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