केंद्र को सुने बगैर CAA-NPR प्रक्रिया पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार


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सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019, (सीएए) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं का जवाब देने के लिए केंद्र सरकार को चार सप्ताह का समय दिया है. लगभग 143 रिट याचिकाएं दाखिल की गई थीं.

कोर्ट ने कहा कि इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को वह वृहद संविधान पीठ के पास भेज सकता है.

विपक्षी पार्टियों ने अदालत से अधिनियम के तहत प्रक्रिया के कार्यान्वयन को स्थगित करने का आग्रह किया, लेकिन पीठ ने राहत नहीं दी.

चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस अब्दुल नज़ीर और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने असम और त्रिपुरा की याचिकाओं पर अलग से विचार करने पर सहमति व्यक्त की.

अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने 80 और याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने की आवश्यकता का हवाला देते हुए और अधिक समय की मांग की. ये 80 याचिकाएं अदालत के 18 दिसंबर को 60 याचिकाओं पर नोटिस जारी किए जाने के बाद दायर की गई थीं.

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को मामले की सुनवाई करने से रोक दिया है. वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने एनपीआर प्रक्रिया को कम से कम तीन महीने के लिए रखने के आदेश की मांग की जिसमें बताया गया कि एनपीआर प्रक्रिया अप्रैल में शुरू होने वाली है. वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने यह कहते हुए अंतरिम आदेश की मांग की कि अधिनियम ने असम समझौते का उल्लंघन किया है.

सिंह ने कहा, ‘असम में बांग्लादेश की वजह से एक अनोखी समस्या है. पहले यह तारीख वर्ष 1950 थी, फिर इसे बढ़ाकर वर्ष 1971 कर दिया गया. इसे अदालत के समक्ष विस्तार को चुनौती दी गई है. इसे बड़ी पीठ के लिए भेजा गया है.’

वरिष्ठ अधिवक्ता के वी विश्वनाथन ने कहा कि यदि किसी व्यक्ति को एनपीआर प्रक्रिया के दौरान ‘संदिग्ध नागरिक’ के रूप में चिह्नित किया जाता है तो यह समस्याओं को जन्म देगा. उन्होंने कहा कि कार्यान्वयन को स्थगित करना अधिनियम के रहने के समान नहीं है.

अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट से असम याचिकाओं को अलग से सुनने का आग्रह किया. एजी ने यह भी बताया कि जब तक अंतिम सूची भारत के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा प्रकाशित नहीं की जाती है, असम एनआरसी ऑपरेटिव नहीं होगी.

वरिष्ठ अधिवक्ता ए एम सिंघवी ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने नियमों को तय किए बिना भी सीएए प्रक्रिया शुरू की थी. ‘बिना किसी नियम तय किए 40 लाख लोगों को संदिग्ध रूप से चिह्नित किया गया था. यह यूपी के 19 जिलों में हुआ है. इससे मतदान करने का उनका अधिकार खो जाएगा. यह हमारी प्रार्थना है कि इस पर रोक लगाएं. इससे बहुत सारी अराजकता और असुरक्षा को रोका जा सकेगा.’ उन्होंने कहा कि 18 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने 60 याचिकाओं पर केंद्र को नोटिस जारी किया था. चूंकि अधिनियम को अभी अधिसूचित नहीं किया गया था, इसलिए याचिकाकर्ताओं ने रोक लगाने के लिए दबाव नहीं डाला. बाद में अधिनियम 10 जनवरी को अधिसूचना द्वारा लागू किया गया था.

याचिकाकर्ताओं में से एक, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, ने इस अधिसूचना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दायर किया है और यह केंद्र को यह स्पष्ट करने के लिए निर्देश देने की मांग की है कि क्या एनआरसी को पूरे देश में किया जाएगा.

आईयूएमएल ने अपनी याचिका में कहा कि सीएए बराबरी के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है और इसका मकसद धर्म के आधार पर लोगों को बाहर कर अवैध शरणार्थियों के एक वर्ग को नागरिकता देना है.

कांग्रेस नेता जयराम रमेश के दायर याचिका में कहा गया है कि यह कानून संविधान के तहत दिए गए मौलिक अधिकारों पर ”कठोर हमला” है.

आरजेडी नेता मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा, एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने भी सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए कई याचिकाएं दायर की हैं.

कई अन्य याचिकाकर्ताओं में मुस्लिम संस्था जमीयत उलेमा-ए-हिंद, ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू), पीस पार्टी, भाकपा, एनजीओ ‘रिहाई मंच’ और सिटिजंस एगेंस्ट हेट, वकील एम एल शर्मा और कानून के छात्र शामिल हैं.


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