आदिवासी बेदखली आदेश पर अगले हफ्ते सुनवाई
आदिवासियों और जंगलों में परंपरागत रूप से रह रहे समुदायों को जंगलों से बेदखल करने के आदेश के खिलाफ दायर नई याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए तैयार हो गया है.
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस याचिका पर अगले हफ्ते सुनवाई का आश्वासन दिया है.
याचिका में कहा गया है कि सैकड़ो वर्षों से जंगलों में रह रहे समुदायों को गैर-आदिवासी नहीं कहा जा सकता है. संविधान की धारा 19 (5) ऐसे आदिवासियों के हितों और सुरक्षा के लिए राज्य को कानून बनाने का निर्देश देती है. बावजूद इसके आदिवासियों से जबरन जमीन ली गई है जिससे खनिज उत्खनन हो रहा है. लेकिन उसकी कीमत आदिवासियों को नही दी जा रही है.
याचिका में कहा गया है कि नेताओं और पूंजीपतियों के समूह जबरन आदिवासियों को निष्काषित कर उनकी जमीन पर कब्ज़ा कर रहे हैं जो एक अपराध है.
याचिका में इस मामले की एसआईटी से जांच कराने की मांग भी की गई है.
बता दें कि आदिवासियों की जमीन बेदखली आदेश पर दायर पुरानी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम रोक लगा दी थी.
सुप्रीम कोर्ट ने एक अभूतपूर्व आदेश में 19 राज्यों से करीब 10 लाख से ज्यादा आदिवासियों और जंगल में रहने वाले समुदायों से जबरन जंगल खाली कराने का आदेश दिया था.
दरअसल ये लोग अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वनवासी कानून, 2006 के तहत वनवासी के रूप में अपने दावे को साबित नही कर पाए थे.
वहीं इस मामले में केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि समय-समय पर राज्य सरकारों द्वारा अधिनियम के क्रियान्वयन को गलत तरीके से परिभाषित करने के कारण बड़ी संख्या में दावों को खारिज कर दिया गया.
ग्राम सभाओं में दावे दाखिल करने की प्रक्रिया को लेकर उनमें जागरूकता का अभाव है. कई मामलों में दावा करने वालों को उनका दावा खारिज किए जाने का कारण नहीं बताया गया और वे उसके खिलाफ अपील नहीं कर पाए.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ आज दलित और आदिवासी समुदायों का भारत बंद भी जारी है. विभिन्न राजनीतिक दलों ने उन्हें समर्थन भी प्रदान किया है.