जन्म पूर्व लिंग निर्धारण कानून में बदलाव के आग्रह को SC ने ठुकराया


there is no need sending article 370 issue to larger bench says sc

 

सुप्रीम कोर्ट ने बीते शुक्रवार को जन्म पूर्व लिंग निर्धारण कानून के प्रावधानों को बरकरार रखते हुए कहा कि प्रसूति और स्त्री रोग विशेषज्ञों के लिए मामले से जुड़े मेडिकल रिकॉर्ड को रखना अनिवार्य है. कानून के तहत, ऐसा नहीं करने पर उनका मेडिकल लाइसेंस अनिश्चितकाल के लिए रद्द हो जाता है.

जस्टिस अरुण मिश्रा और विनीत सारन की पीठ ने डॉक्टरों के उस आग्रह को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने इस प्रावधान में ढील देने को कहा था. डॉक्टरों ने कहा था कि कानून के प्रावधानों के तहत कागजी कामकाज में हुई छोटी से छोटी लापरवाही या अनजाने में हुई गलती भी अपराध के दायरे में आ जाती है.

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि “यह जांचकर्ता की जिम्मेदारी है कि इस प्रकार की जांच से संबंधित सभी जरुरी जानकारियों का रिकॉर्ड रखे. यदि वे इसे छुपाते हैं तो इसका मतलब है कि वे बखूबी जानते हैं कि वो प्रावधानों का उल्लंघन कर रहे हैं.”

उन्होंने अपने फैसले में कहा कि कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए (लिंग चयन पर प्रतिबंध) 1994 का अधिनियम देश भर में लागू रहना जरूरी है. इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य लिंग चयन और जन्म पूर्व निदान तकनीक पर प्रतिबंध लगाना है. अब तक इस अपराध के तहत 4,202 मामले दर्ज हुए हैं जिनमें  से सिर्फ 586 मामलों में ही दोषसिद्ध हो पाया है.


ताज़ा ख़बरें