केवल सर्जिकल स्ट्राइक से नहीं लगेगी आतंकवाद पर लगाम: डीएस हुड्डा


Surgical strikes alone can’t counter terrorism: Lt. Gen. D.S. Hooda

 

राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर अंग्रेजी अखबार ‘दि हिन्दू’ से बात करते हुए 2016 सर्जिकल स्ट्राइक के मुख्य रणनीतिकार लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) डीएस हुड्डा ने कहा कि केवल सर्जिकल स्ट्राइक जैसे तरीकों से आतंकवाद पर लगाम नहीं कसी जा सकती.

डीएस हुड्डा ने बीते रविवार को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को राष्ट्रीय सुरक्षा पर विस्तृत विजन दस्तावेज सौंपा था.

उन्होंने जोर देकर कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा को केवल पाकिस्तान या आतंकवाद से जोड़कर देखना संकीर्ण नजरिया है.

राष्ट्रीय सुरक्षा को केवल आतंकवाद और पाकिस्तान से जोड़कर देखने के संकीर्ण नजरिए पर अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए डीएस हुड्डा ने इस ओर पांच जरूरी कदम उठाने की बात कही.

उन्होंने कहा कि ये पांच बिंदु उन्होंने खुद तैयार किए हैं. पहला उन्होंने कहा कि हमें यह देखना होगा कि हम अपने आंतरिक मुद्दों को लेकर यूएन जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और विश्व की दूसरी बड़ी शक्तियों के सामने हम किस स्थान पर खड़े होते हैं. दूसरा, हम अपने पड़ोसियों से किस तरह का व्यवहार कर रहे हैं और अपने क्षेत्र को कितना सुरक्षित रख पा रहे हैं.

डीएस हुड्डा ने आगे कहा कि तीसरे बिंदु के तौर पर हमें देश के भीतर चल रहे संघर्षों का हल निकालना होगा. जम्मू-कश्मीर से लेकर बस्तर तक चल रहे संघर्षों का हल निकालना राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर बहुत जरूरी है. चौथे बिंदु के रूप में डीएस हुड्डा ने कहा कि हमें लोगों को ऐसा माहौल देना होगा, जहां वे खुद को महफूज और सुखी महसूस कर सकें, लोगों से देश बनता है और अगर लोग ही खुश नहीं रहेंगे तो आखिर हम कौन सी राष्ट्रीय सुरक्षा कर लेंगे.

अंतिम और पांचवें बिंदु के रूप में हुड्डा ने कहा कि इन चारों बिंदुओं को तब ही हासिल किया जा सकेगा, जब हम उनके लायक आधारभूत ढांचा विकसित कर लेंगे. हुड्डा ने कहा कि इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए हमें अपने सीमा प्रबंधन, सैन्य क्षमता, पुलिस तंत्र, साइबर, नाभिकीय, अंतरिक्ष और रणनीतिक संपर्क की क्षमता को सुधारना होगा.

हुड्डा ने इस बातचीत में राष्ट्रीय सुरक्षा पर एक लिखित और निश्चित नीति की वकालत करते हुए कहा कि भारत को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति दुनिया के सभी प्रमुख देशों और शक्तियों का ध्यान रखकर तैयार करनी चाहिए. केवल पाकिस्तान और चीन से मिलने वाली चुनौतियां भारत की प्राथमिकता नहीं होनी चाहिए. राष्ट्रीय सुरक्षा के लिहाज से आंतरिक चुनौतियां भी कम महत्वपूर्ण नहीं हैं. भारत को जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के लिए अलग रणनीति बनाने की जरूरत है. अंत में लोगों के हितों की रक्षा करना किसी भी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति का उद्देश्य होना चाहिए.

अपनी बातचीत में उन्होंने जोड़ा कि लोकतंत्र में सभी संस्थाएं जवाबदेह होती हैं, इसलिए सेना की कार्रवाई पर भी सवाल हो सकते हैं. इसे संकीर्ण नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए.

उन्होंने कहा कि बीते सालों में मारे गए नागरिकों और सुरक्षा बलों, दोनों की संख्या के लिहाज से कश्मीर में हिंसा बढ़ी है. कश्मीर में लोग जिस तरह से आज आजादी और स्वायत्तता की मांग कर रहे हैं, वह एक नई परिघटना है. उन्होंने कहा कि हमारा ध्यान केवल आतंकियों को मारने पर है लेकिन यह समस्या का दीर्घकालिक समाधान नहीं है.


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