संसदीय स्थाई समिति: न्यूनतम मजदूरी के लिए राज्यों की सलाह अनिवार्य
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक़, श्रम संबंधी संसद की स्थाई समिति ने वेज कोड बिल, 2017 पर अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप प्रदान कर दिया है.
इन सिफारिशों के अनुसार, अब अगर कोई नियोक्ता या इम्प्लॉयर अपने कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन नहीं देता है तो उस पर अधिकतम 10 लाख रुपए का जुर्माना होगा. पहले अधिकतम जुर्माने की यह राशि 50,000 रुपए थी.
समिति ने यह सिफारिश भी की है कि केंद्र सरकार को न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण करने से पहले राज्य सरकारों से अनिवार्य रूप से सलाह लेनी होगी.
अगस्त साल 2017 में लोक सभा में पेश किए गए इस बिल को संसद की स्थाई समिति के पास सिफारिशों और सुझावों के लिए भेजा गया था. इस बिल में संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों के कर्मचारियों के लिए न्यूनतम मजदूरी का प्रावधान किया गया है. उम्मीद की जा रही है कि श्रम मंत्रालय समिति की इन सिफारिशों को वेज कोड बिल, 2017 में शामिल कर केंद्रीय मंत्रिमंडल के पास मंजूरी के लिए भेजेगा. उसके बाद ही यह बिल संसद में मंजूरी के लिए रखा जाएगा.
समिति ने यह भी पाया है कि बिल की धारा 51 में ‘इंस्पेक्टर’ (निरीक्षक) के स्थान पर ‘फैसिलिटेटर’ (समन्वयक) शब्द का प्रयोग इस बिल के वास्तविक उद्देश्य को कमजोर करता है. उसकी सिफारिश है कि धारा 51 में ‘इंस्पेक्टर’ शब्द ही प्रयोग किया जाना चाहिए. यह शब्द अंर्तराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) के विभिन्न मानक कानूनों के अनुरूप है.
धारा (51) के अनुसार, फैसिलिटेटर’ (समन्वयक) वेज कोड बिल के प्रावधानों के प्रभावी पालन के लिए नियोक्ताओं को सुझाव और सूचना जारी कर सकता है. साथ ही, वह निरीक्षण स्कीम के आधार पर संस्थानों का निरीक्षण भी कर सकता है.
हालांकि समिति ने नियोक्ताओं पर न्यूनतम मजदूरी नहीं देने की स्थिति में जुर्माने की अधिकतम राशि बढ़ाकर 10 लाख करने की सिफारिश की है, लेकिन भारतीय उद्योग संघ (सीआईआई) और भारतीय वाणिज्य और उद्योग मंडल (एसोचेम) ने समिति को सुझाव देते हुए कहा था कि पहले ही 50,000 रुपए जुर्माने का प्रावधान बहुत ज्यादा है.
वहीं श्रम मंत्रालय ने भी यह कहते हुए अपनी आपत्ति दर्ज की थी कि जुर्माने की राशि पहले ही बहुत बढ़ गई है. बावजूद इसके, समिति ने पाया कि 50,000 रुपए जुर्माने का प्रावधान वेज कोड को लागू करवाने के लिए काफी साबित नहीं हो पा रहा है.
वर्तमान में वेज कोड बिल की धारा 53(1) के अनुसार, यदि कोई नियोक्ता किसी कर्मचारी को निर्धारित न्यूनतम मजदूरी से कम देता है तो उसे 50,000 रुपए तक का जुर्माना हो सकता है. अगर इस जुर्माना लगने के पांच साल के भीतर वह दोबारा इस अपराध में संलिप्त पाया जाता है तो उसे तीन महीने की जेल या एक लाख रूपए का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.
समिति ने यह भी पाया कि वेज कोड बिल में दी गई न्यूनतम मजदूरी की परिभाषा को और अधिक स्पष्ट बनाए जाने की जरुरत है.
समिति के अनुसार, न्यूनतम वास्तव में मजदूरी सेवा आरंभ करते समय दी जाने वाली मजदूरी है. इसके बाद कर्मचारी के अनुभव और अन्य योग्यताओं के आधार पर दी जाने वाली मजदूरी को न्यूनतम मजदूरी में अलग से जोड़ा जाना चाहिए.