लंबी बहस के बाद तीन तलाक बिल को मिली लोकसभा से मंजूरी


triple talaq bill passed for from lok-sabha now challenge in rajya sabha

 

लोकसभा ने लंबी बहस के बाद तीन तलाक बिल को मंजूरी दे दी है. कांग्रेस, द्रमुक, सपा, बसपा, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, नेशनल कांफ्रेंस, वाईएसआर कांग्रेस और आरएसपी के सदस्यों ने बिल के विरोध में सदन से वाकआउट किया. अब सरकार की कोशिश इसे इसी सत्र में राज्यसभा में पास कराने की होगी.

यह बिल पिछली लोकसभा से पास हो चुका था, लेकिन राज्यसभा ने इस बिल को मंजूरी नहीं दी थी.

अब सरकार कुछ बदलाव के साथ फिर इस बिल को लेकर आई है. इसे राज्यसभा से पारित कराना सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है.

लोकसभा में बिल को विचार के लिए पेश करने के पक्ष में 303 और विपक्ष में 82 वोट पड़े.

केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि तीन तलाक को पैगम्बर मोहम्मद ने गलत बताया और 20 इस्लामी देशों में यह निषिद्ध है. उन्होंने कहा कि ऐसे चलन को कोई जायज नहीं ठहरा सकता और ऐसे में नारी सम्मान और हिन्दुस्तान की बेटियों के अधिकारों की सुरक्षा संबंधी इस पहल का सभी को समर्थन करना चाहिए.

रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा में ‘मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2019’ पर चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि इस विधेयक को सियासी चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए. यह इंसाफ से जुड़ा विषय है. इसका धर्म से कोई लेना देना नहीं है. ‘‘यह इंसानियत, इंसाफ और मानवता से जुड़ा विषय है.’’

वहीं लोकसभा में पारित हो चुके सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून संशोधन संबंधी विधेयक को राज्यसभा से भी मंजूरी मिल गई. सरकार ने आरटीआई कानून को कमजोर करने के विपक्ष के आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार पारदर्शिता, जन भागीदारी और सरलीकरण के लिए प्रतिबद्ध है.

राज्यसभा ने सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019 को चर्चा के बाद ध्वनिमत से पारित कर दिया. साथ ही सदन ने इस विधेयक को प्रवर समिति में भेजने के लिए लाए गये विपक्ष के सदस्यों के प्रस्तावों को 75 के मुकाबले 117 मतों से खारिज कर दिया.

इस विधेयक में प्रावधान किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों तथा राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा के अन्य निबंधन और शर्ते केंद्र सरकार की तरफ से तय किए जाएंगे.

विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए कार्मिक एवं प्रशिक्षण राज्य मंत्री जितेन्द्र सिंह ने कहा कि आरटीआई कानून बनाने का श्रेय भले ही कांग्रेस अपनी सरकार को दे रही है लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के शासन काल में सूचना के अधिकार की अवधारणा सामने आई थी. उन्होंने कहा कि कोई कानून और उसके पीछे की अवधारणा एक सतत प्रक्रिया है जिसे सरकारें समय-समय पर जरूरत के अनुरूप संशोधित करती रहती हैं.

मंत्री ने कहा कि उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि मोदी सरकार के शासन काल में आरटीआई संबंधित कोई पोर्टल जारी किया गया था. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार के शासनकाल में एक ऐप जारी किया गया है. इसकी मदद से कोई रात बारह बजे के बाद भी सूचना के अधिकार के लिए आवेदन कर सकता है.

विधेयक के उद्देश्यों और कारणों में कहा गया है कि आरटीआई अधिनियम की धारा-13 में मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की पदावधि और सेवा शर्तो का उपबंध किया गया है. इसमें कहा गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का वेतन, भत्ते और शर्ते क्रमश: मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के समान होंगी. इसमें यह भी उपबंध किया गया है कि राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्तों का वेतन क्रमश: निर्वाचन आयुक्त और मुख्य सचिव के समान होगा.

मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा शर्ते उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के समतुल्य हैं.

वहीं केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोग, सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के उपबंधों के अधीन स्थापित कानूनी निकाय है. ऐसे में इनकी सेवा शर्तो को सुव्यवस्थित करने की जरूरत है.


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