लोकसभा में तीन तलाक़ विधेयक पारित
लोकसभा में तीन तलाक़ विधेयक 245 वोट से पारित हो चुका है. इससे पहले तीन तलाक़ के विधेयक को संसद की संयुक्त प्रवर समिति के समक्ष भेजने की मांग को लेकर कांग्रेस ने सदन से वाक आउट कर दिया था.
तीन तलाक़ (तलाक-ए-बिद्दत) पर रोक लगाने के उद्देश्य से लाए गए (मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक को महिलाओं के न्याय और सम्मान का विषय करार देते हुए कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इस विधेयक को चर्चा और पारित कराने के लिए लोकसभा में रखा था.
इस पर कांग्रेस, अन्नाद्रमुक, वाम दलों, तृणमूल कांग्रेस, राजद, राकांपा, सपा जैसे विपक्षी दलों ने विधेयक पर व्यापक चर्चा के लिए इसे संसद की संयुक्त प्रवर समिति के समक्ष भेजने की मांग की थी.
रविशंकर प्रसाद ने अपनी बात रखते हुए कहा था कि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित करने की पृष्ठभूमि में यह विधेयक लाया गया है.
इससे पहले तीन तलाक को दंडात्मक अपराध घोषित करने वाला विधेयक 17 दिसंबर को लोकसभा में पेश किया गया था. यह तीन तलाक़ से संबंधित अध्यादेश के स्थान पर लाया गया है.
इस प्रस्तावित कानून के तहत एक बार में तीन तलाक़ देना गैर कानूनी और अमान्य होगा और इसके तहत तीन साल तक की सज़ा हो सकती है.
विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने शायरा बानो बनाम भारत संघ और अन्य मामलों में 22 अगस्त 2017 को 3:2 के बहुमत से तलाक़ ए बिद्दत (एक साथ और एक समय तीन दफा तलाक़ कह दिया जाना) की प्रथा को समाप्त कर दिया था.
विधेयक पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कांग्रेस की सुष्मिता देव ने कहा कि उनकी पार्टी इस विधेयक के ख़िलाफ़ नहीं है, लेकिन सरकार के ‘मुंह में राम बगल में छूरी’ वाले रुख के विरोध में है. सरकार की मंशा मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने एवं उनका सशक्तीकरण की नहीं, बल्कि मुस्लिम पुरुषों को दंडित करने की है.
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि तीन तलाक़ को अपराध की श्रेणी में रखा जाए.
विपक्षी दलों ने विधेयक प्रवर समिति को भेजे जाने की मांग करते हुए दावा किया कि इसके प्रावधान असंवैधानिक हैं और कानून के मसौदे पर गहन विचार विमर्श की जरूरत है.
लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने विधेयक को प्रवर समिति को भेजे जाने की मांग करते हुए कहा कि यह महत्वपूर्ण विधेयक है जिस पर गहन विचार विमर्श जरूरी है.
उन्होंने दावा किया कि इसमें संवैधानिक प्रावधानों का पालन नहीं किया गया है और यह एक धर्म के भीतर हस्तक्षेप का प्रयास है. उन्होंने इस संबंध में संविधान के अनुच्छेद 25 का हवाला दिया जो ‘‘पेशेगत आज़ादी और धर्म के प्रसार की स्वतंत्रता की बात करता है.’’
खड़गे ने कहा कि ऐसे में इसे संसद की प्रवर समिति को भेजा जाए और एक महीने या 15 दिन का समय दिया जाए ताकि विचार विमर्श करके रिपोर्ट पेश की जा सके.
वही अन्नाद्रमुक के अनवर रजा ने विरोध दर्ज करते हुए कहा कि यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार ने पहले के विधेयक में कोई बड़े संशोधन नहीं किए और इसे संवैधानिक प्रावधानों के ख़िलाफ़ लेकर आई है. उन्होंने आरोप लगाया कि यह विधेयक सांप्रदायिक सद्भाव और संविधान के ख़िलाफ़ है.
एआईएमआईएम के असदुद्दीन औवैसी ने कहा कि इस विधेयक को लाने से पहले विभिन्न पक्षकारों के साथ चर्चा नहीं की गई. ऐसे में इस पर व्यापक गहन विचार विमर्श के लिए प्रवर समिति को भेजा जाए.
इस मांग का राकांपा की सुप्रिया सुले, आप के भगवंत मान, सपा के धर्मेन्द्र यादव, राजद के जयप्रकाश नारायण यादव और वामदलों के सदस्यों ने भी समर्थन किया.
भाकपा नेता डी राजा ने संवाददाताओं से कहा कि विधेयक को आगे चर्चा के लिए प्रवर समिति को भेजा जाना चाहिए.
इस पर संसदीय कार्य मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कहा कि यह महत्वपूर्ण विधेयक है. इस पर पहले चर्चा हो चुकी है. यह विधेयक महिलाओं के न्याय और हितों से जुड़ा है और ऐसे में राजनीतिक कारणों से इसे रोका नहीं जाए. इस पर चर्चा हो और उसके बाद राय बनाई जाए.
आरएसपी के एन के प्रेमचंद्रन ने कहा कि इसमें संविधान के बुनियादी सिद्धांतों का पालन नहीं किया गया है. यह राजनीतिक फायदा हासिल करने के मकसद से लाया गया है.
उन्होंने कहा कि यह विधेयक जल्दबाजी में लाया गया है और 2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर लाया गया है. यह विधेयक ठीक ढंग से तैयार नहीं किया गया है. यह आपराधिक न्याय शास्त्र के ख़िलाफ़ है. इस विधेयक को प्रवर समिति को भेजा जाना चाहिए.
विपक्षी सदस्यों की तरफ से इस विधेयक को प्रवर समिति को भेजने की मांग पर स्पीकर ने कहा कि यह महत्वपूर्ण विधेयक है और सदन को इस पर चर्चा करनी चाहिए.
(इनपुट- समाचार एजेंसी भाषा)