उत्तर प्रदेश में ‘खामियों’ की वजह सरकार को 24,805 करोड़ का नुकसान: सीएजी


CAG questions raising bank guarantee in Rafael Deal

 

भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (सीएजी) ने उत्तर प्रदेश के आबकारी विभाग में 2008-2018 के दौरान कई खामियों का पता लगाया है. इन खामियों के चलते सरकार को 24,805.96 करोड़ रुपये का नुकसान होने का अनुमान है.

राज्य विधानसभा में 20 जुलाई को सीएजी की रपट रखी गई. यह रपट राज्य में इस दौरान शराब के उत्पादन और बिक्री मूल्य निर्धारण से संबंधित है. इसमें 24,805.96 करोड़ रुपये के वित्तीय नुकसान का अनुमान जताया गया है.

रपट में कहा गया कि 2009-10 की आबकारी नीति के अनुसार उत्तर प्रदेश में पड़ोसी राज्यों से मदिरा तस्करी को रोकने के लिए मेरठ में विशिष्ट क्षेत्र का सृजन किया गया. हालांकि इसमें दो सीमावर्ती जिले अलीगढ़ और मथुरा शामिल नहीं किए गए जबकि सात ऐसे जिलों को रखा गया जिनकी सीमाएं किसी पड़ोसी राज्य की सीमाओं से सटी नहीं थीं. अत: विशिष्ट जोन का सृजन बिना किसी स्पष्ट नीति के किया गया. विशिष्ट जोन के सृजन का हालांकि वांछित असर नहीं था, फिर भी इसे अगले नौ साल तक जारी रखा गया.

इसमें कहा गया कि बिना किसी वर्षवार खुली निविदा के, सभी चार जोनों में फुटकर दुकानों का लाइसेंस नौ साल (2009-18) तक लगातार नवीनीकृत किया गया. इससे शराब के उत्पादन और उचित दर पर बिक्री में खुली प्रतिस्पर्धा की भावना समाप्त हो गयी.

सीएजी ने कहा कि राज्य की आबकारी नीतियों (2008-18) ने डिस्टिलरी और ब्रुअरीज को आईएमएफएल (इंडियन मेड फॉरेन लिकर) तथा बीयर की डिस्टिलरी कीमत और ब्रुअरी कीमत निर्धारण में अनियंत्रित विवेकाधिकार की अनुमति दी. इससे उन्हें शराब (आईएमएफएल और बीयर) की समरूप और समान ब्रांडों की डिस्टिलरी कीमत और ब्रुअरी कीमत में पड़ोसी राज्यों की तुलना में बहुत अधिक (46 तथा 135 प्रतिशत) वृद्धि करने की अनुमति मिल गयी.

फलस्वरूप उन्हें 2008-18 के दौरान राज्य के राजकोष और उपभोक्ताओं की कीमत पर 5525.02 करोड़ रुपये का अनुचित लाभ मिला. अधिक डिस्टिलरी कीमत के कारण थोक और फुटकर विक्रेताओं (आईएमएफएल के मामले में) को भी 1643.61 करोड़ रूपये का अनुचित लाभ हुआ.

रपट में कहा गया कि 2008-18 के दौरान आईएमएफएल की 180 मिलीलीटर (एमएल) और 90 एमएल माप की बोतलों की डिस्टिलरी कीमत की गलत गणना क्रमश: 187.50 एमएल और 93.75 एमएल पर की गयी. आबकारी आयुक्त की तरफ से हालांकि आबकारी शुल्क की गणना 180 एमएल और 90 एमएल की दर से की गयी थी.

आबकारी विभाग इस गलती को दस साल तक पकड़ नहीं पाया और 2008-18 की अवधि में 227.98 करोड़ रुपये का अतिरिक्त आबकारी शुल्क नहीं प्राप्त हो सका.

इसमें कहा गया कि देशी शराब की न्यूनतम गारंटी क्वालिटी (एमजीक्यू) का 2011-18 के दौरान कम निर्धारण किये जाने से 3674.80 करोड़ रुपये की संभावित राजस्व क्षति हुई.

सीएजी ने कहा कि देशी शराब की ही तरह आबकारी विभाग की ओर से आईएमएफएल और बीयर के उठान के लिए एमजीक्यू निर्धारित नहीं किए जाने से 13,246.97 करोड़ रुपये की संभावित राजस्व क्षति हुई.


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