पश्चिम बंगाल में आईटी क्षेत्र के कर्मियों को यूनियन बनाने का मिलेगा अधिकार


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महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु के बाद अब बंगाल देश का चौथा राज्य बनने जा रहा है जहां तकनीकी क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारियों का अपना कर्मचारी संगठन होगा.

द टेलीग्राफ की खबर के मुताबिक कोलकाता फॉर्म फॉर इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एम्प्लॉई ने जानकारी दी कि उन्होंने कर्मचारी संगठन  के रजिस्ट्रेशन के लिए एप्लाई किया है. उनके मुताबिक ये संगठन राज्य के करीबन दो लाख आईटी, आईटीईएस, बीपीओ और केपीओ कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करेगा.

यह फॉर्म फॉर आईटी एम्प्लॉई का हिस्सा है, जो साल 2014 में टीसीएस की ओर से किए गए कर्मचारियों के छंटनी के बाद अस्तित्व में आया था. फॉर्म के सदस्यों का कहना है कि यह पूरी तरह से अराजनैतिक संगठन है. फॉर्म से राज्य के बड़े सॉफ्टवेयर इंजीनियर, मल्टीनेशनल कंपनियों में काम करने वाले छोटे-बड़े कर्मचारियों जुड़े हुए हैं.

अगर फॉर्म को बिना किसी समस्या के रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट मिलता है, तो यह पहली बार होगा कि राज्य के आईटी कर्मचारी अपने अधिकारों के लिए एक ऐसी दुनिया में लड़ पाएंगे जहां असमय नौकरी से निकाला जाना, पिंक स्लिप और छंटनी जैसी समस्याएं सामान्य हो गई हैं.

संगठन के अध्यक्ष शांतनु भट्टाचार्य ने बताया,”साल 2016-17 में जब हमारा रजिस्ट्रेशन भी नहीं हुआ था तब भी हमने अलग-अलग कंपनियों में कर्मचारियों की छंटनी का मुद्दा उठाया था. हमने ऐसे कर्मचारियों को लेबर कमिशन के सामने अर्जी देने और आगे की कानूनी प्रक्रिया में मदद दी थी. अब हम लोगों को जल्द ही आधिकारिक मान्यता भी मिल जाएगी. ये सभी कर्मचारियों के लिए खुशी की बात है.”

“हमने बीते हफ्ते फॉर्म को कर्मचारी संगठन के रूप में मान्यता दिलाने के लिए अर्जी दी थी, अब उम्मीद है हमें 45 दिनों के भीतर मंजूरी मिल जाएगी.”

फॉर्म के आगे की रणनीति के बारे में भट्टाचार्या कहते हैं कि ” अध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष और सामान्य सदस्य आदि का चुनाव पहले ही किया जा चुका है. फिलहाल हमारे साथ 180 सदस्य जुड़े हुए हैं. हमारा प्लान है कि जल्द ही हम 5,000 और सदस्यों को अपने साथ जोड़े.”

कर्मचारी संगठन का लक्ष्य होगा- कर्मचारियों को नौकरी की गारंटी, मजदूर कानून के तहत उन्हें अधिकारों के लिए शिक्षित करना, सभी तरह के लाभ, जिसमें प्रोविडेंट फंड, ग्रेच्युटी, महंगाई भत्ता और मातृत्व लाभ शामिल है, को कर्मचारियों तक पहुंचाना.

फॉर्म के एक सदस्य राजर्षि धवन कहते हैं,” हम एक ऐसा प्लेटफॉर्म बनाना चाहते हैं जिसके जरिए एक व्यक्ति का जीवन बेहतर बन सके. उन्हें घंटों-घंटों काम ना करना पड़े, लैंगिक भेदभाव ना हो, काम के लिए अच्छी जगह हो, यौन उत्पीड़न ना हो, कर्मचारियों के लिए सुरक्षित यातायात की सुविधा हो, अनियमित कर्मचारियों के लिए काम की शर्तें अनुकूल हों, पर्याप्त छुट्टियां, रात के सिफ्ट में होने वाली परेशानियां को खत्म किया जाए.”

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हालांकि यह पहली बार नहीं है जब राज्य में आईटी कर्माचारियों का प्रतिनिधित्व करने के लिए कर्मचारी संगठन बनाने की कोशिश की जा रही है. इससे पहले 2006 में सीपीएम के मजदूर संगठन सीटू (सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन) ने पश्चिम बंगाल में आईटी सर्विस एसोसिएशन बनाने की कोशिश की थी. पर संगठन आईटी कंपनियों की नीतियों और लोगों के राजनीतिक संघर्षों के चलते कामयाब नहीं हो सका था.

एक सरकारी सूत्र ने बताया कि काफी आईटी कंपनियां आज भी हायर-एंड-फायर की पॉलिसी अपनाती हैं, इसके अलावा कंपनी के संसाधनों के अनुसार छटनी भी की जाती है. हो सकता है कि कंपनियां अपने कर्मचारियों को इन संगठनों में शामिल होने से रोक दें, और फिर कर्मचारी संगठन की कामयाबी इस बात पर भी निर्भर करती है कि देश का मजदूर कानून कितना मजबूत है.”

इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट एक्ट के तहत कोई भी कंपनी 100 के अधिक कर्मचारियों की छटनी या लेऑफ राज्य सरकार की अनुमति के बिना नहीं कर सकती है. मजदूर अधिकार से जुड़े एक अन्य मामले पर गौर करें तो 2014 में राजस्थान सरकार ने मजदूर कानून में संशोधन करते हुए कंपनियों को बड़ी राहत दी थी. संशोधन के तहत कंपनियों के लिए कर्मचारियों की नियुक्ति और छटनी प्रक्रिया को आसान बना दिया गया था, इसके अलावा व्यापार संगठनों की रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया को मुश्किल बनाया गया था.

इसके बाद इंडस्ट्री की ओर से विभिन्न राज्य सरकारों पर राजस्थान सरकार की ही तर्ज पर विधेयक पास करने के लिए दबाव बनाया गया. राज्य सरकारों पर दबाव बना क्योंकि अगर वो ऐसा करने से इनकार करती तो संभव था कि राज्य को मिलने वाले निवेश में कमी आती.

ऐसे में लेऑफ और अन्य परेशानियों के अनुरूप ढल चुकी आईटी इंडस्ट्री में इस तरह का कानून लागू होने से कर्मचारी संगठनों का ये आंदोलन ठड़ा पड़ सकता है.

कलकत्ता स्थित एक कंपनी के वरिष्ठ आईटी अधिकारी ने बताया कि उन्हें अगल से किसी कर्मचारी संगठन की जरूरत नहीं महसूस होती है क्योंकि उनकी कंपनी में आंतरिक एचआर प्रबंधन है जहां वो कर्मचारियों से जुड़े मुद्दे पर बात कर सकते हैं. हालांकि बहुत से लोगों ने कर्मचारी संगठन जैसे एक अराजनीतिक संगठन के पक्ष में भी बोला है.

सेक्टर वी स्टेकहोल्डर एसोसिएशन के उपाध्यक्ष कल्याण कार ने कहा,”आईटी एक ऐसा क्षेत्र है जहां मानव संसाधन सबसे प्रमुख है. मौजूद नियम कर्मचारियों की मदद जरूर करते हैं लेकिन इस तरह का कर्मचारी संगठन कार्यक्षेत्र से जुड़े विभिन्न मुद्दों से भी निपट सकेगा.”

बंगाल चेम्बर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री में आईटी कमेटी के चेयरमैन अर्नब बासू ने कहा,” बंगाल में आईटी क्षेत्र अबतक बिना किसी आधिकारिक कर्मचारी संगठन के ही आगे बढ़ा है. मेरा मानना है कि संगठन से सबसे ज्यादा फायदा छोटी कंपनियों और स्टार्ट अप को होगा.”


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