हिंदी थोपने को लेकर संसद में हुआ सरकार का विरोध


PM Modi, said,

 

तमिलनाडु में पोस्टल डिपार्टमेंट रिक्रूटमेंट एग्जामिनेशन का विरोध होने के बाद सरकार ने परीक्षा रद्द कर दी है. यह परीक्षा रविवार 14 जुलाई को हुई थी. परीक्षा में प्रश्नपत्र केवल इंग्लिश और हिंदी में पूछे गए थे. जिसे लेकर तमिलनाडु में बीजेपी की गठबंधन वाली पार्टी एआईएडीएमके ने इस मुद्दे पर विरोधी पार्टी डीएमके के साथ मिलकर इसका विरोध किया.

यह बीते दो महीने में दूसरी बार है जब केंद्र सरकार का भाषा को लेकर विरोध हुआ है. सरकार ने परीक्षा दोबारा करवाने का एलान किया है. इस बार प्रश्नपत्र तमिल में पूछे जाएंगे और इंग्लिश और हिंदी विकल्प के तौर पर रहेगा.

एआईएडीएमके के सांसद वी मैत्रेयण ने संसद के वेल में कागज फाड़ कर इसके खिलाफ धरना प्रदर्शन किया. दक्षिण राज्यों की कई क्षेत्रीय पार्टियों ने हिंदी थोपे जाने के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया.

दोपहर के भोजन के बाद जब सत्र शुरू हुआ तो बाकी विपक्षी दलों ने भी विरोध में अपना समर्थन दिया. इसमें कांग्रेस,टीएमसी, बीजेडी और वाम दल शामिल रहे.

इस मामले में मंत्री रविशंकर प्रसाद ने एलान किया कि रविवार को हुए परीक्षा को रद्द कर दिया गया है. उन्होंने कहा, “परीक्षा संबंधित विभाग की 10 मई 2019 के अधिसूचना के अनुसार अब परीक्षा क्षेत्रीय भाषा में होगी, जिसमें तमिल भी शामिल है.”

हालांकि, प्रसाद ने यह साफ नहीं किया कि डाक विभाग ने नियुक्ति के लिए 10 मई के सर्कुलर को क्यों जारी किया. सर्कुलर के अनुसार विभाग में मल्टी-टास्किंग स्टाफ, पोस्टमैन, मेल गार्ड, डाक सहायक और अन्य सहायक के पदों पर नियुक्ति होनी थी. लोकल भाषा के अलावा परीक्षा हिंदी और इंग्लिश में होनी थी. इसके बाद इस महीने की शुरुआत में एक अन्य सर्कुलर जारी किया गया जिसमें कहा गया कि परीक्षा केवल हिंदी और इंग्लिश में होनी चाहिए.

अपने गठबंधन वाली पार्टियों में हिंदी थोपने का डर देखते हुए उन्होंने कहा कि मोदी सरकार इस देश के सभी भाषाओं का आदर करती है. और उसमें तमिल भी शामिल है.

रविशंकर प्रसाद के एलान के बाद सभी दलों ने उनका शुक्रिया अदा किया तो वहीं सीपीआई के डी राजा ने ने प्रसाद को याद दिलाते हुए कहा कि सभी भाषा भारतीय भाषा हैं. कोई क्षेत्रीय भाषा नहीं है और न ही कोई राष्ट्रीय भाषा है. सभी भाषाओं का आदर होना चाहिए और सभी भाषाओं का प्रचार-प्रसार होना चाहिए.

कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने सरकार से इस मसले पर खासतौर से आश्वासन चाहा. उन्होंने कहा, “भविष्य में होने वाली सभी केंद्रीय परीक्षाओं/भर्तियों और पब्लिक सेक्टर यूनिट में और अर्धसैनिक बलों के साक्षात्कारों के लिए तीनों भाषाएं होनी चाहिए. इसका आश्वासन भारत के पहले प्रधानमंत्री ने दिया था. हमें इस पर डटे रहना चाहिए, इसका सम्मान करना चाहिए और किसी भी प्रकार इसे कमजोर नहीं होने देना चाहिए.”

दोबारा सत्ता में आने के बाद सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति लेकर आई. इसमें तीन भाषाओं को लागू करने का प्रस्ताव था. इसके तहत सभी राज्य के स्कूली बच्चों को हिंदी, इंग्लिश के साथ अपनी मातृ भाषा में शिक्षा प्राप्त करने का प्रस्ताव था.

तीन भाषा वाले फॉर्मूला के तहत दक्षिण राज्यों के स्कूलों में बच्चों को इंग्लिश और अपनी मातृ भाषा के साथ हिंदी को अनिवार्य विषय के तौर पर पढ़ना था.

इसका विरोध होने के बादल केंद्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय ने ड्राफ्ट के प्रस्ताव को दुरुस्त करने का फैसला किया. सरकार ने कहा था कि उसका इरादा हिंदी थोपना नहीं है.


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