क्या सरकारी फंड से मिलेगी सुस्त पड़े हाउसिंग क्षेत्र को रफ्तार?
हाउसिंग क्षेत्र को सुस्ती से उबारने के लिए केन्द्र सरकार ने 10 हजार करोड़ रुपये देने की घोषणा की है. यह फंड बंद पड़े उन प्रोजेक्ट के लिए है जिनका 60 फीसदी काम पूरा हो चुका है. हालांकि एनपीए में फंसी कंपनियों और ऋण समाधान के लिए एनसीएलटी (नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल) के सुपुर्द किए गए प्रोजेक्ट को इस फंड में शामिल नहीं किया गया है. ऐसे में सवाल उठता है कि वित्त मंत्री की घोषणा से हाउसिंग क्षेत्र को कितना लाभ होगा.
लाइव मिंट लिखता है कि सबसे बुरी तरह प्रभावित एनसीआर और मुंबई के प्रोपर्टी मार्केट में निवेश करने वाले खरीदारों को घोषणा से ज्यादा राहत नहीं मिली है.
निर्मला सीतारमण ने कल राजधानी में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि निर्माण के आखिरी चरण (जिनका 60 फीसदी काम पूरा हो चुका है) में पहुंच चुकी साफ-सुथरी अवासीय परियोजनाओं को पूरा कराने में वित्तीय मदद के लिए 20 हजार करोड़ रुपये का कोष बनाया जाएगा. इसमें करीब 10 हजार करोड़ रुपये सरकार मुहैया कराएगी और इतनी ही राशि अन्य स्रोतों से जुटाई जाएगी.
इसके साथ ही आवास वित्त कंपनियों के लिए विदेश से वाणिज्यिक ऋण जुटाने के नियमों में ढील देने की भी घोषणा की गई. वित्त मंत्री ने कहा कि भवन निर्माण के लिये ऋण पर ब्याज दर में कमी की भी व्यवस्था की गयी है. इससे विशेष रूप से सरकारी कर्मचारियों को लाभ होगा जो आवास क्षेत्र के सबसे बड़े खरीदार हैं.
सीतारमण ने कहा कि अंतिम चरण में धनाभाव के कारण अटकी आवासीय परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए सहायता कोष से करीब 3.5 लाख घर खरीदारों को लाभ मिलेगा. उन्होंने कहा कि दिवाला शोधन की प्रक्रिया में गयी आवास परियोजनाओं के घर खरीदारों को एनसीएलटी से राहत मिलेगी.
सरकार के इस कदम पर टिप्पणी करते हुए एक प्रोपर्टी विश्लेषक और विशेषज्ञ ने कहा कि मुश्किल में पड़ी आवसीय परियोजनाओं में से सरकार ने सबसे सुरक्षित विकल्प को चुना है.
जिन आवासीय परियोजनाओं में 60 फीसदी काम पूरा हो जाता है वो अंतिम चरण में गिनी जाती हैं. इसका मतलब ये हुआ कि उन्हें खरीदार से 80-90 फीसदी राशि मिल गई है. ऐसे में इन परियोजनाओं के लिए वित्तीय संस्थाओं से फंड जुटाना सरकार के लिए मुश्किल नहीं होगा.
सुस्त पड़े हाउसिंग मार्केट में अफोर्डेबल हाउसिंग सबसे लोकप्रिय होते हैं. जबकि प्रीमियम या लग्जरी होम्स को बेचना बिल्डर के लिए सबसे मुश्किल होता है.
45 लाख रुपये से कम की कीमत वाले घर अफोर्डेबल हाउसिंग की श्रेणी में आते हैं. हालांकि सरकार ने मध्य आय की सीमा फिलहाल स्पष्ट नहीं की है.
एनएआरईडीसीओ के अध्यक्ष निरंजन हीरानंदानी ने सरकार की घोषणा के बाद कहा, ‘एनसीआर में देरी से चल रहे और बंद पड़े ज्यादातर हाउसिंग प्रोजेक्ट एनसीएलटी और एपीए में दबे पड़े हैं तो उन्हें इस घोषणा के बाद कोई लाभ नहीं होगा. इसके अलावा अफोर्डेबल हाउसिंग की शर्त की वजह से मुंबई, एनसीआर और चैन्नई के कई प्रोजेक्ट बाहर हो गए है.’
प्रॉपर्टी रिसर्च फर्म लाइसिस फोरास के सीईओ पंकज कपूर ने कहा, ‘जो प्रोजेक्ट अपने शुरुआती चरण में है या एनसीएलटी में है वो फिलहाल सबसे बुरी तरह से प्रभावित प्रोजेक्ट हैं.’
संपत्ति के बारे में परामर्श देने वाली वैश्विक कंपनी नाइट फ्रैंक के कार्यकारी निदेशक गुलाम जिया ने कहा, ‘हमें लगता है कि सभी बंद पड़े प्रोजेक्ट को एक बार फिर शुरू करने के लिए कम से कम दो लाख करोड़ रुपये की जरूरत है. अगर आप एनपीए और एनसीएलटी में फंसे प्रोजेक्ट को बाहर निकाल भी दें तो 20 हजार करोड़ रुपये काफी कम हैं. अर्थव्यवस्था में सुस्ती बनी हुई है, तो मांग में कैसे बढ़ोतरी होगी ये सबसे बड़ी समस्या है. 20 हजार करोड़ रुपये की मदद से बाजार के केवल एक छोटे हिस्से में ही प्रभाव देखने को मिलेगा. फिलहाल के लिए ये बहुत कम है, हां आगे आने वाले समय में इसमें लगातार बढ़ोतरी करते रहने की जरूरत होगी.’
निसस फाइनेंस सर्विसेज कंपनी प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ और एमडी अमित गोयनका ने कहा, ‘अनुमान लगाया गया है कि बैंकों, एनबीएफसी और हाउसिंग फाइनेंस का 40 हजार करोड़ रुपये इस तरह के अंतिम चरण में पहुंच चुके प्रोजेक्ट में फंसा हुआ है. भारत की मेट्रो सिटी और शहरों में बन रहे ये प्रोजेक्ट अगले एक साल में पूरे कर लिए जाएंगे. ऐसे में ये राशि इन प्रोजेक्ट के लिए काफी लाभदायक होगी और वित्तीय संस्थानों की अटकी हुई पूंजी का निर्गमन हो सकेगा.’
एनसीएलटी में गए प्रोजेक्ट घोषणा के लिए योग्य नहीं हैं. जिसकी वजह से वित्तीय मदद के लिए योग्य परियोजनाओं की संख्या काफी कम हो गई है. एक विशेषज्ञ ने कहा कि एनसीएलटी में कंपनी या बिल्डर के खिलाफ शिकालत डालने वाले लोग अगर अपनी शिकायत वापस लेते हैं, तो वो भी फंड के लिए योग्य होंगे.