क्या है राज ठाकरे के मोदी-विरोधी अभियान का मकसद?


will raj thackeray be able to damage the NDA vote bank in maharashtra

 

एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने इस साल की शुरुआत में राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) को मोदी-शाह के खिलाफ गठबंधन में शामिल करने का प्रस्ताव रखा था. लेकिन एमएनएस की प्रवासी-विरोधी राजनीति मुंबई के उत्तर भारतीयों में कांग्रेस की नरम छवि के आड़े आ गई. मुंबई की ज्यादातर सीटों पर उत्तर भारतीयों की बड़ी जनसंख्या रहती है, ऐसे में इन इलाकों में अपने आधार को देखते हुए कांग्रेस ने एमएनएस से गठबंधन की संभावनाओं से इनकार कर दिया था.

वहीं, शिव सेना की ओर से राम मंदिर के मुद्दे पर की जा रही बीजेपी की कड़ी आलोचनाओं के बीच दोनों पार्टियों ने एक बार फिर साथ चुनाव लड़ने का एलान किया.

द मिंट के मुताबिक 2006 में अस्तित्व में एमएनएस ने इस साल 10 मार्च को अपना 13वां स्थापना दिवस मनाया था. इस मौके पर पार्टी प्रमुख ठाकरे ने एलान किया कि वो 2019 लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे और कहा कि वो देश को मोदी और शाह से मुक्त बनाने की दिशा में काम करेंगे.

एलान के बाद से ठाकरे मोदी और शाह पर हमले करते हुए राज्य में 10 जन सभाओं का आयोजन कर चुके हैं. मौजूदा समय में महाराष्ट्र के बेहतरीन वक्ताओं में शामिल ठाकरे अपनी सभाओं में नए और लोकप्रिय तरीकों का इस्तेमाल करते हुए मीडियो और जनता को अपनी ओर खींचने में कामयाब रहे हैं.

ये पहली बार नहीं है जब ठाकरे जनता को अपनी ओर खींचने में कामयाब हुए हैं. इससे पहले साल 2006 में शिव सेना से अलग होने के बाद भी उन्होंने ऐसी ही सफलता हासिल की थी. साल 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने राज्य में बीजेपी और शिव सेना के 10 उम्मीदवारों को शिकस्त दी थी. इसके तुरंत बाद हुए विधान सभा चुनावों में भी उनकी पार्टी 13 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी.

लेकिन बीते कुछ साल पार्टी के लिए मुश्किल भरे रहे हैं.

2014 लोकसभा चुनावों के बाद पार्टी का जनाधार तेजी से गिरा है. अब कैंपेन मोड में आए ठाकरे की जनसभाओं से एक बार फिर पार्टी कम से कम राजनीतिक विमर्श में अपनी पहुंच बनाने में कामयाब हुई है. इस बीच शहरी मुंबई और नासिक के क्षेत्रों में पार्टी जनसभाओं में उमड़ी भीड़ को वोट में बदलने में किस हद तक कामयाब होगी, इस पर अभी भी संशय बना हुआ है.

मोदी और शाह पर राज ठाकरे के हमलों का जवाब उद्धव ठाकरे दे रहे हैं. जबकि प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी प्रमुख शाह उनके हमलों पर चुप्पी ही साधी हुई है.

मुंबई के वरिष्ठ राजनीतिक वक्ता भाऊ तोरसेकर के मुताबिक, राज ठाकरे लोकसभा चुनाव कैंपेन का फायदा छह महीने बाद होने वाले विधान सभा चुनाव में उठाना चाहते हैं. वो कहते हैं कि ठाकरे अपने लक्ष्य को देखते हुए कैंपेन में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं.

तोरशेकर कहते हैं, “वो चुनाव नहीं लड़ रहे हैं लेकिन उनके कैंपेन का मेरे लिए काफी महत्त्व है. साल 1980 में शिव सेना संस्थापक बालासाहब ठाकरे ने भी ऐसा ही रणनीति अपनाई थी. महाराष्ट्र में एनसीपी और कांग्रेस का प्रबंधन इतना मजबूत नहीं है कि वो मोदी की खिलाफ आवाज उठा सके.

ऐसे में राज ठाकरे यही आवाज बनने की कोशिश कर रहे हैं. फिलहाल उनका कैंपेन एनसीपी और कांग्रेस की मदद कर रहा है पर लंबे समय में अगर किसी जो एमएनएस से सबसे ज्यादा नुकसान होगा तो वो है एनसीपी और कांग्रेस. मुझे नहीं लगता कि ठाकरे की वजह से एनडीए को बहुत ज्यादा नुकसान होगा.”


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