CAA: शाहीन बाग में घर के साथ-साथ आंदोलन की जिम्मेदारी उठा रही महिलाएं


talks between police and protesters fail protest continue in Shahin Bagh

 

दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में संशोधित नागरिकता कानून के विरोध में महिलाओं के धरने का 26 दिसंबर को बारहवां दिन है. हाड़ कंपा देने वाली ठंड में सैकड़ों महिलाएं अपने छोटे छोटे बच्चों के साथ धरने पर बैठी हैं.

इन महिलाओं में 39 साल की तब्बसुम भी हैं जो नारे लगाने और भाषणों के बीच में तालियां बजाने से समय निकालकर अपनी एक साल की बच्ची की देखभाल भी कर रही हैं.

यह पूछने पर कि क्या घर में बच्ची की देखभाल करने वाला और कोई नहीं है, तबस्सुम कहती हैं ”अब तो यही (धरना स्थल) घर जैसा हो गया है. घर से खाना ले आती हूं और बच्चे यहीं खा लेते हैं. पिछले 10 दिन से काम कुछ बढ़ गया है लेकिन मुझे यहां आना अच्छा लगता है.”

इस कड़ाके की ठंड में विरोध प्रदर्शन को पिछले दस-बारह दिन से अपनी रोजमर्रा की दिनचर्या का हिस्सा बना चुकीं तबस्सुम जैसी कई महिलाएं अपनी मांगों को लेकर यहां डटी हुई हैं. कईयों के साथ में दूध पीते बच्चे भी हैं और स्कूल जाने वाले भी. हर कोई अपने घर से कुछ न कुछ लेकर आया है. दरी, गद्दे, रजाई, कंबल, चादर, तकिए वगैरह वगैरह. बीच बीच में बड़ी संख्या में लोग चाय और खाने पीने का सामान भी ला रहे हैं. मंच से घोषणा भी हो रही है कि प्रदर्शन में बाहर से आए हुए लोग खाना खाकर जाएं.

स्थानीय निवासी और यूपीएससी (लोक सेवा आयोग) परीक्षा की तैयारी कर रही 21 वर्षीय सबा बताती है, ”घर में पहले जो लोग काम में मदद नहीं करते थे, वह भी अब हाथ बंटाते हैं. हम यहां दूसरे लोगों के लिए भी चाय के अलावा खाने की चीजें बनाकर लाते हैं ताकि जिनके घरों से खाना न आए, उनको दे सकें.”

प्रदर्शन में इतनी बड़ी तादाद में महिलाओं की भागीदारी पर सबा कहती है कि जामिया मिलिया में इस इलाके के कई बच्चे पढ़ते हैं और जब पुलिस ने विश्वविद्यालय में घुसकर पिटाई की तो अभिभावकों में रोष होना स्वाभाविक था, खासतौर पर महिलाओं में. इसीलिए वह जोर शोर से यहां डटी हैं.

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में 15 दिसंबर को जामिया नगर में हुए हिंसक प्रदर्शनों के बाद से दिल्ली-नोएडा को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर शाहीन बाग इलाके में विरोध प्रदर्शन चल रहा है. पिछले 10 दिनों से जारी इस ‘शाहीन बाग रिजिस्ट’ में रोज सैकड़ों महिलाएं परिवार और घरेलू कामकाज में सामंजस्य बैठाते हुए इसमें भागीदारी कर रही हैं.

जामिया के एक पूर्व छात्र वकार कहते हैं, ”इस विरोध से कुछ बदलेगा या नहीं, यह अभी तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन इसने मुस्लिम महिलाओं को आंदोलित कर उनमें राजनीतिक चेतना भर दी है. इस आंदोलन की सबसे बड़ी उपलब्धि है महिलाओं का इतनी बड़ी संख्या में घर से बाहर निकल कर आना.”

वह कहते हैं, ‘इस इलाके में शाम सात बजे के बाद लड़कियां और महिलाएं सड़क पर यदा कदा ही दिखती थीं लेकिन अभी देखिए, यहां सैकड़ों की तादाद में महिलाएं हैं.”

मंच के ठीक सामने पहली कतार में बैठी सदफ (32 वर्ष) कहती हैं कि उन्होंने इससे पहले कभी किसी विरोध प्रदर्शन तो क्या किसी बैठक में भी हिस्सा नहीं लिया था. उन्होंने कहा, ‘यह मेरे लिए बिल्कुल नए तरह का अनुभव है.’

यह कहे जाने पर कि संशोधित नागरिकता कानून से देश के मुस्लिमों पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद कह चुके हैं कि एनआरसी (राष्टीय नागरिकता पंजी) को लेकर सरकार में कोई चर्चा भी नहीं हुई है, तो तबस्सुम का जवाब था, ”आजकल सबके पास सोशल मीडिया है और हम भी वीडियो देखते हैं. हमने कई बीजेपी नेताओं को एनआरसी लागू करने की बात कहते हुए सुना है.”

वह हंसते हुए कहती हैं, ”अब मैं भी थोड़ी बहुत राजनीति समझने लगी हूं.”

यहां विरोध प्रदर्शन के आयोजकों में से एक, आईआईटी बॉम्बे के पूर्व छात्र शरजील इमाम का दावा है कि इस प्रदर्शन में कोई राजनीतिक पार्टी शामिल नहीं है.

उन्होंने कहा कि पार्टियों ने कोशिश भी की लेकिन उनको दूर रखा गया. इमाम का कहना था कि, उन्होंने ऐसा ‘प्रोटेस्ट’ हाल के इतिहास में नहीं देखा जहां एक इलाके के लोग सामुदायिक स्तर पर खाना तैयार करने से लेकर चंदा देने और दिन-रात एक जगह जुट कर आगे की योजना पर काम करते हों.

यह रिपोर्ट न्यूज एजेंसी पीटीआई-भाषा से ली गई है.


ताज़ा ख़बरें