विश्वभर में बढ़ रहा है प्रेस पर शिकंजा: आईपीआई


Worldwide press conference: IPI

 

वियना स्थित इंटरनेशनल प्रेस इंस्टीट्यूट (आईपीआई) ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा कि पिछले साल मई से करीब 55 पत्रकार मारे गए हैं.  संस्था ने विश्वभर में सरकारों की ओर से नए-नए कानून लाकर प्रेस पर शिकंजा कसने पर चिंता जताई है.

आईपीआई ने एक बयान में कहा कि बांग्लादेश में पत्रकारों को देश के नए डिजिटल सुरक्षा अधिनियम का उल्लंघन करने के लिए उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान किया गया है. बयान में कहा गया है कि आईपीआई के कार्यकारी बोर्ड के सदस्य कादरी गुरसेल सहित 139 पत्रकार जेल में बंद हैं. पत्रकारों को जेल में डालने में तुर्की सबसे आगे है.

बयान में कहा गया कि पाकिस्तान में आलोचना करने वाली मीडिया की साख खराब करने के लिये अभियान चलाए जा रहे हैं. जहां ‘डॉन’ जैसे प्रभावशाली दैनिक समाचार पत्रों को सरकार की ओर से विज्ञापन दिया जाना बंद कर दिया गया है और सिरिल अल्मीडा जैसे पत्रकारों को निशाना बनाया जा रहा है, जिनपर आतंकवाद के कवरेज के लिए देशद्रोह का मामला चलाया गया.

आईपीआई ने कहा कि अमेरिका न्याय विभाग अभियोजकों के लिए पत्रकारों के रिकॉर्ड प्राप्त करना आसान बनाने के लिए दिशा-निर्देशों में बदलाव पर विचार कर रहा है.

बयान में कहा गया है कि अमेरिका में विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांज के खिलाफ आपराधिक आरोप लगाये जाने से प्रेस की स्वतंत्रता पर इसके व्यापक प्रभाव के बारे में चिंता उत्पन्न हो गई है.

ब्रिटेन में पत्रकारों ने सरकार के उस कदम का विरोध किया है, जिससे पुलिस की उनके डेटा तक पहुंच आसान हो जाएगी.

भारत में भी प्रेस की स्वतंत्रता में कमी आई है और पत्रकारों पर हमले बढ़े हैं.   14 जून, 2018 को राइजिंग कश्मीर के संपादक शुजात बुखारी की श्रीनगर में उनके कार्यालय के बाहर गोली मार कर हत्या कर दी गई.

इससे दो महीने पहले मध्य प्रदेश में स्थानीय चैनल के रिपोर्टर संदीप शर्मा को भिंड में एक ट्रक ने कुचल कर मार डाला. वह अवैध रेत खनन के खिलाफ लिख रहे थे.

बुखारी और शर्मा उन छह पत्रकारों में शामिल हैं जिन्होंने साल 2018 के दौरान पत्रकारिता के उच्च मूल्यों को बनाए रखने के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया. गैर लाभकारी संगठन रिपोर्टर्स सॉन फ्रंटियर्स (आरएसएफ) ने अपनी ताजा रिपोर्ट में इसका जिक्र किया है.

प्रेस स्वतंत्रता दिवस से पहले प्रकाशित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि, ‘‘ये हत्यायें उन खतरों को बतातीं हैं जिनका सामना भारतीय पत्रकार कर रहे हैं, विशेषकर वे जो ग्रामीण इलाकों में गैर आंग्ल भाषी मीडिया में काम कर रहे हैं.

इस रिपोर्ट के अनुसार प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत का स्थान 2016 में 133वां था जो इस साल घटकर 140 वें पर आ गया है.

ऑनलाइन न्यूज पोर्टल ‘द लेडे’ की संपादक संध्या रविशंकर ने कहा कि राज्य अपनी भूमिका निभाने में पीछे हैं और एक पत्रकार को अपना कार्य सत्ता के सहयोग के बिना ही करना पड़ता है और वह प्राय: ऐसे अपराधियों के पक्ष में खड़ी दिखती है जो पत्रकारों को परेशान करते हैं.

उन्हें स्वयं रेत माफिया पर 2017 में लगातार समाचार लिखने पर धमकियां मिलीं थीं और जब उन्होंने पुलिस को इसके बारे में सूचित किया तो उसने अनसुना कर दिया.

रांची से प्रकाशित एक हिंदी दैनिक के पत्रकार चंदन तिवारी को कुछ अज्ञात लोगों ने पीटा. वह लंबे समय से पुलिस से सुरक्षा मुहैया कराने की मांग कर रहे थे पर पुलिस ने इस पर ध्यान ही नहीं दिया.

हाल के दिनो में सबसे चर्चित मामला पत्रकार गौरी लंकेश का रहा है. उनकी 2017 में बेंगलुरू में घर के बाहर गोली मार कर हत्या कर दी गई थी.

गैर लाभकारी संगठन कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट (सीपेजे) के अनुसार 1992 से लेकर अबतक कुल 50 भारतीय पत्रकारों की हत्या हुई है.


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