भीम कन्या

एक दलित, एक पीड़ित, एक किशोरी जो एक नागरिक थी, को धार्मिक संस्कार से वंचित करना। आज दुनिया भर में लोग मानव दुर्व्यवहार के इस उदाहरण पर शर्म से सिर झुकाते हैं।


भीम कन्या

 

यह एक भव्य कार्यक्रम है। पुरे भारत में क़रीब एक हज़ार गाँव में 14 अक्टूबर को प्रेरणा सभा का आयोजन किया जा रहा है। क्योंकि इसी दिन 1956 में बाबा साहेब ने बौद्ध धर्म ग्रहण किया था। यह कार्यक्रम मुख्य रूप से गुजरात में होगा। लेकिन यूपी और दूसरे राज्यों के गाँव भी इसमें शामिल होंगे।

आम लोग अपनी श्रद्धांजलि 19 साल की उस दलित लड़की को भेंट करेंगे, जिसके साथ हाथरस के बूलगढ़ी गाँव में सामूहिक बलात्कार और गला घोंटकर हत्या की गई थी और अंतत: दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में एक पखवाड़े के बाद उसकी मौत हो गई थी।

उसकी मृत्यु के बाद उसके शरीर को एक इंसान के बुनियादी अधिकार से वंचित कर दिया गया, अधिकारियों द्वारा एक सम्मानजनक अंतिम संस्कार भी नहीं किया गया। रात के अँधेरे में उसका जल्द से जल्द अंतिम संस्कार कर दिया गया, जबकि उसकी माँ विनती करती रही कि वह अपनी बेटी की लाश घर में ले आएँ ताकि वे अंतिम संस्कार कर सकें।

उसकी माँ और चाची ने जीप के आगे अपना शरीर टिका दिया,और पुलिस से विनती की कि वे उन्हें बच्ची के शरीर में “हल्दी-तिलक” लगाने की अनुमति दें, जोकि एक आवश्यक धार्मिक अनुष्ठान है।

गुजरात स्थित नवसर्जन ट्रस्ट के संस्थापक,दलित अधिकार कार्यकर्ता और विचारक मार्टिन मैकवान ने कहा, “इस दिन लोग उस पोस्टर पर एक हल्दी का तिलक लगाएंगे जो पीड़ित व्यक्ति की प्रतीकात्मक है, जिसका चेहरा उसके हाथों में है। आग की लपटों और धुएं में लिपटे हुए।”

हल्दी तिलक पुरे बैनर की छवि पर लागाया जाएगा। यह छवि ‘ख़्वाब तन्हा कलेक्टिव’ के एक युवा कलाकार शिराज हुसैन का काम है। शिराज ने दूसरे अन्य कई युवा महिलाओं और पुरुषों की तरह धर्म, जाति और वर्ग से परे जाकर आग की लपटों में लिपटे हुए चित्र को बनाकर अपनी पीड़ा व्यक्त की।

‘यह हाथरस की उस किशोरी के प्रति एक प्रतीकात्मक सम्मान की निशानी होगी, जोकि उच्च जाति की हिंसा का शिकार हो गई थी ’, मैकवान ने कहा। उन्होंने आगे यह भी कहा कि ‘यह घटना उसके परिवार की अंतिम इच्छा की पूर्ति होगी कि वह अपने बच्ची को हल्दी अर्पित करे।

जब मैंने मार्टिन से बात की, तो उन्होंने कार्यक्रम की विस्तृत जानकारी दी। “सभी प्रतिभागी हल्दी पाउडर की एक चुटकी दान करेंगे जो स्वयंसेवकों द्वारा एकत्र की जाएगी। जमा किये गए हल्दी को एक ही जगह और एक दिन में ही इकठ्ठा किया जाएगा। फिर इसे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को इस उम्मीद के साथ सौंप दिया जाएगा कि वो इसे गंगा में बहा देंगे। प्रतीकात्मक विसर्जन इस बात का प्रमाण होगा कि योगी के रूप में एक सीएम अपने राज्य के दलित पीड़ित के धार्मिक संस्कार का सम्मान नहीं करता है। ”

मार्टिन मैकवान ने पूछा कि क्या अंतिम इच्छा का सम्मान केवल इसलिए नहीं किया गया क्योंकि वह दलित थीं? राज्य द्वारा बलात्कार पीड़िता के नश्वर अवशेषों को कानून द्वारा आवश्यक महत्वपूर्ण साक्ष्य को नष्ट करने के लिए जलाया गया था।”

इसके विपरीत, 2010, 2012, 2013 में तत्कालीन भारत सरकार ने चार निर्भया दोषियों, आतंकवादी अफजल गुरु और अजमल कसाब की अंतिम इच्छा का सम्मान किया। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उनके नश्वर अवशेषों का उनके धार्मिक विश्वास के अनुसार अंतिम संस्कार / दफनाया गया। ”

‘और हाथरस की पीड़िता? ‘वह न तो बलात्कारी-हत्यारन थी और न ही आतंकवादी। वह पहले एक पीड़ित थी, और अंत में एक पीड़ित। उत्तर प्रदेश,जो कि एक सभ्यता और तहज़ीब के लिए भारत भर में जानी जाती है। अपनी छवि को धूमिल किया है। भारत के किसी भी राज्य में घटित अपनी तरह का पहला क़ानून का उल्लंघन करके अपनी छवि को हमेशा के लिए बर्बाद कर दिया – एक दलित, एक पीड़ित, एक किशोरी जो एक नागरिक थी, को धार्मिक संस्कार से वंचित करना। आज दुनिया भर में लोग मानव दुर्व्यवहार के इस उदाहरण पर शर्म से सिर झुकाते हैं।

मैं इस क्षण ये प्रार्थना और उम्मीद करती हूं कि यह महायज्ञ जिसका अक्टूबर 14 को आयोजन किया जाना है एक नया सवेरा लाएगा। जैसा कि साहिर लुधियानवी ने लिखा था

हक़ मांगने वालों को जिस दिन
सुली न चढाई जाएगी
वह सुबह कभी तो आएगी

डॉ. सैयदा हमीद लेखिका और समृद्ध भारत फाउंडेशन के ट्रस्टी हैं । रेयाज़ अहमद मुस्लिम विमेंस फ़ोरम के फ़ेलो हैं।


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