मध्य प्रदेश डायरी: बीजेपी के आसमान पर आफतों की बारिश


congress morale boosted after two bjp mla came in support of its bill

 

गुजरे हफ्ते राजधानी भोपाल में भले ही बारिश के लिए दुआएं की जाती रहीं मगर राजनीति के आसमान पर छाये बादलों ने बीजेपी के खेमे में आफतों की बारिश कर दी.

हुआ यूं कि विधानसभा के बाहर और अंदर कमलनाथ सरकार को अल्पमत की बता कर उसके गिर जाने का दावा कर रहे बीजेपी नेता उस वक़्त सकते में आ गए जब उनके ही दल में फूट पड़ गई. जब सदन में कभी भी कांग्रेस सरकार को गिरा देने के दावे किए जा रहे थे तभी बीजेपी के दो विधायकों ने मध्यप्रदेश ‘दंड विधि संशोधन विधेयक’ पर कमलनाथ सरकार के पक्ष में मतदान कर दिया. सरकार के विश्वास मत पाने के संदर्भ में इस क्रॉस वोटिंग का कोई महत्व नहीं है मगर इसने बीजेपी को दबाव में ला दिया और कांग्रेस का ‘मोरल बूस्ट’ कर दिया. स्थितियां एकदम उलट हो गई. बीजेपी बैक फुट पर आ गई तो कांग्रेस ‘अटैक मोड’ में है.

आलम यह है कि बीजेपी में विधायकों के टूटने के बाद लगातार बैठकों का दौर चल रहा है. पार्टी दोनों विधायकों पर कार्रवाई को लेकर कोई निर्णय नहीं कर पाई है. पार्टी दोनों बागी विधायकों को मनाने की कोशिश करना चाहती है ताकि संख्या बल के लिहाज से किसी भी तरह कमलनाथ सरकार मजबूत ना हो. अब सभी की निगाहें झाबुआ उपचुनाव पर टीक गई है. उपचुनाव प्रदेश की राजनीति में रोमांचक ट्विस्ट लाएगा.

सतह पर आ गई समन्वय की विफलता

एक समय था जब विधानसभा में बीजेपी के फ्लोर मैनेजमेंट की तूती बोलती थी. तत्कालीन संसदीय कार्यमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा बीजेपी सरकार के संकटमोचक की उपाधि पा चुके थे. पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव, बीती विधानसभा में अध्यक्ष रहे डॉ. सीतासरन शर्मा सभी संसदीय प्रक्रिया के जानकार हैं. शिवराज तो हर क्षेत्र में बीजेपी की कमजोरियों और ताकत से भली-भांति वाकिफ हैं, मगर सदन में इन सभी की मौजूदगी में जो हुआ उस पर किसी को यकीं ना हुआ.

दो साथी विधायकों की क्रॉस वोटिंग से सदन में सभी भौंचक रह गए. बीजेपी विधायक सत्र समाप्ति के तुरंत बाद शिवराज के निवास पर जुट गए. जबकि नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव अलग थलग नजर आए. शीर्ष नेतृत्व ने सवाल किया कि मामला इतना फंसा हुआ था तो व्हिप जारी क्यों नहीं किया गया?

इस सवाल के बाद मुख्य सचेतक नरोत्तम मिश्रा की भूमिका और सक्रियता की पड़ताल होने लगी. सदन के अंदर और बाहर इस तरह की स्थितियों का सामना बीजेपी ने बहुत दिनों बाद किया और जब संकट आया तो पार्टी नेतृत्व गुटीय राजनीति के समन्वय में विफल नज़र आया.

सत्र जल्द खत्म करने पर सवाल

विधानसभा में हुए नाटकीय घटनाक्रम के बाद पावस सत्र तय समय से दो दिन पहले खत्म कर दिया गया. बीजेपी ने सरकार पर आरोप लगाया कि उसने बहुत महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा से बचने के लिए ऐसा किया. कांग्रेस विपक्ष में रहते हुए लोकायुक्त सहित विभिन्न आयोगों की रिपोर्ट्स पर चर्चा करवाने की मांग करती रही मगर अब वह इन पर बात भी नहीं कर रही.

बीजेपी कहती रही कि किसानों के मुद्दे पर अलग से चर्चा हो और मुख्यमंत्री को उत्तर देना चाहिए मगर चर्चा नहीं हुई लेकिन बीजेपी की मांग हो हल्ले के बीच खो गई. हालांकि, संसदीय कार्यमंत्री डॉ. गोविंद सिंह का कहना है कि सारे आवश्यक कार्य हो गए तब सदन स्थगित हुआ. बीजेपी के पास मुद्दा था ही नहीं इसलिए वह निराधार आरोप लगा रही है.


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