डेमोक्रेटिक उम्मीदवार खुद बनवा रहे हैं अपने कर्मचारियों की यूनियन


bernie sanders new plan to fight climate change

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अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार मजदूर संगठनों के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं. इस लड़ाई को धार देने के लिए उन्होंने एक कारगर तरीका खोज निकाला है. यह है- खुद के चुनावी प्रचार अभियान में काम कर रहे कर्मचारियों को संगठित करना.

विख्यात पत्रिका टाइम में छपे एक आलेख के अनुसार डेमोक्रेटिक पार्टी के चार चुनावी प्रचार अभियानों में काम कर रहे कर्मचारी अब तक खुद के संगठित होने की घोषणा कर चुके हैं.

ऐसे ही एक अभियान में काम कर रहे एरिक स्वावेल कहते हैं कि इस तरह का कदम उठाना अभूतपूर्व है, आगे आने वाले समय में यह एक नया पैमाना साबित होगा. वे कहते हैं कि जो भी ऐसा नहीं करेगा, वो अपने आप पीछे छूट जाएगा. ये बिल्कुल ऐसा होगा कि जैसे पूछा जाए कि क्या तुम ट्विटर पर नहीं हो.

डेमोक्रेटिक पार्टी के चुनावी प्रचार अभियानों में काम कर रहे कर्मचारियों ने अब तक अलग-अलग मजदूर संगठनों के साथ खुद को संगठित किया है. स्लावेल के स्टाफ ने खुद को टीमस्टर लोकल 238 के साथ संगठित किया है. एलिजाबेथ वारेन के चुनावी प्रचार में काम कर रहे कर्मचारियों ने खुद को कथित तौर पर बिजली कर्मचारियों के संगठन लोकल 2320 के साथ संगठित किया है.

वहीं बर्नी सैंडर्स के साथ काम कर रहे कर्मचारियों ने खुद को यूनाइटेड फूड एंड कमर्शियल वर्कर्स लोकल 400 के साथ संगठित किया है. बर्नी के यहां ही केवल अब तक कॉन्ट्रैक्ट बनाया गया है.

चुनावी प्रचार अभियान में काम करने की स्थितियां आम जगहों से बहुत अलग होती हैं. यदि चुनाव के दौरान कोई प्रत्याशी किसी महत्वपूर्ण क्षेत्र में हार जाता है या प्रत्याशी के पास अचानक से पैसों की कमी हो जाती है या फिर कोई विवाद खड़ा हो जाता है तो चुनावी प्रचार अभियान के ठप हो जाने की बहुत आशंका होती है. ऐसे में कर्मचारियों की नौकरी भी चली जाती है. वहीं कहीं-कहींं ऐसे अभियानों में काम कर रहे कर्मचारियों की संख्या ही इतनी कम होती है कि वे चाहकर भी संगठित नहीं हो पाते.

चुनावी प्रचार अभियान काफी थका देने वाला भी होता है. कर्मचारियों के पास अपने निजी जीवन के लिए समय ही नहीं बचता है. वहीं इन जगहों पर यौन शोषण भी होता है. जिसका यौन शोषण होता है वो ज्यादातर यह सोचकर चुप रहता है कि इससे प्रत्याशी की छवि बिगड़ जाएगी. कर्मचारियों को समय सीमा से अधिक भी काम करना पड़ता है.

अत्यधिक काम का हल बर्नी ने ब्लैकआउट आवर्स के सहारे निकाला है. इसके तहत कर्मचारियों को महीने में चार दिन का आराम तब दिया जाएगा, जब उनसे काम करने की आशा होगी. इस तरह से कर्मचारियों को छुट्टी लेने से हतोत्साहित नहीं किया जाएगा.

चुनावी प्रचार अभियान में काम कर रहे कर्मचारियों के सामने एक बड़ी समस्या यह भी है कि संगठित होने के बाद भी उनके पास अपनी मांगे मनवाने के लिए काफी कम समय होगा क्योंकि चुनावी प्रचार अभियान लंबे समय तक नहीं चलते हैं, ज्यादा से ज्यादा ये प्रत्याशी के जीतने के बाद खत्म हो जाते हैं.

हालांकि, बर्नी सैंडर्स के यहां ऐसा नहीं है. बर्नी के यहां कॉन्ट्रैक्ट में कहा गया है कि कर्मचारियों की शिकायतों को कुछ हफ्तों के भीतर ही सुना जाएगा.

हालांकि, कई लोगों का कहना है कि चुनावी प्रचार के दौरान ये कह देना बहुत आसान है कि हम अपने कर्मचारियों का समर्थन करते हैं लेकिन असल में ऐसा करना बहुत अलग है. इस आधार पर कई विशेषज्ञों ने आशंका जताई है कि चुनावी प्रचार में लगे कर्मचारियों को संगठित कर उनके अधिकारों की रक्षा करना संभव नहीं होगा. इन विशेषज्ञों का मानना है कि यह सब केवल प्रतीकात्मक रूप से किया जा रहा है.

वहीं कई दूसरे लोगों का मानना है कि चुनावी प्रचार अभियान में काम करने वाले कर्मचारियों का संगठित होना अपने आप में सही नहीं है. उनका मानना है कि ऐसा करने से अभियान की प्रभावशीलता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. इन लोगों का कहना है कि कर्मचारियों के पास पहले से ही काफी अधिकार हैं, ये अपनी तनख्वाह से लेकर बाकी दूसरी सुविधाओं के लिए मोल भाव कर लेते हैं.

कैंपेन वर्कर्स गिल्ड के अनुसार 2018 में पहली बार रैंडी ब्राइस ने अपने चुनावी प्रचार अभियान में काम करने वाले कर्मचारियों को संगठित किया था, लेकिन यह उतने वृहद स्तर पर नहीं हुआ था. गिल्ड का मानना है कि इस बार नामी-गिरामी शख्सियतों द्वारा ऐसा करने से इसे पहचान मिलेगी और कर्मचारियों का भला होगा.

कैंपेन वर्कर्स गिल्ड की अध्यक्ष मेग राइली कहती हैं कि ये अपने आप में एक अभूतपूर्व कदम है. वे कहती हैं कि हम सब जानते हैं कि चुनावी प्रचार अभियान में काम करना कितना बोझिल और थकाऊ होता है, इससे कर्मचारियों को कई सहूलियतें मिलेंगी.


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