अब जहान की बारी!


satire article from rajendra sharma

 

मोदी जी कुछ भी कहें, कुछ भी करें, सेकुलरवालों को विरोध करना ही करना है. और तो और अब मोदी जी की सरकार के इसके फैसले का भी विरोध कर रहे हैं कि खाद्य निगम के गोदामों में जो फालतू सरकारी चावल पड़ा हैै, उसको शराब कारखानों को दे दिया जाए. और वे किसी गलत-फहमी की वजह से विरोध नहीं कर रहे हैं. कोई शराबबंदी के प्रेम की वजह से विरोध नहीं कर रहे हैं. मोदी जी की सरकार ने वैसे विरोध की तो गुंजाइश ही नहीं छोड़ी थी. उसने तो पहले ही साफ कर दिया था कि चावल से शराब बनेगी जरूर, लेकिन यह शराब बिकेगी नहीं. हम सरकारी चावल की इस शराब से सैनीटाइजर बनाएंगे और सैनीटाइजर से हाथ साफ कर-कर के कोरोना को मार भगाएंगे. यानी यह शराब बनाने का मामला ही नहीं है. यह तो कोरोना से युद्ध का मामला है. और युद्ध तो युद्ध है, वाइरस से युद्ध हो तो और पड़ोसी से युद्ध हो तो. युद्घ में सेनापति के आदेशों पर, फैसलों पर सवाल नहीं उठाते. लेकिन, युद्ध के इस समय पर भी सेकुलरवाले एंटीनेशनलता दिखाने से बाज नहीं आ रहे हैं और पहले भूखों को भात खिलाने का शोर मचा रहे हैं. क्या भूखों को भात खिलाना, कोरोना के खिलाफ युद्ध का, हैंड सैनिटाइजर से ज्यादा धारदार हथियार है?

अब यह कोई नहीं कह रहा है कि भूखों को भात खिलाने की जरूरत नहीं है. बेशक, जरूरत है. तभी तो हमारे यहां हमेशा से दान-पुण्य की परंपरा रही है. भूखे-गरीबों को दान देना, हमारी संस्कृति में ही है. फिर मोदी जी की सरकार कैसे भूखों को भात खिलाने से इंकार करेगी. उल्टे उसने तो कोरोना से युद्ध के बीच में भी, भूखे-गरीबों के पेट भरने का खास ख्याल रखा है. सबसे गरीबों का ख्याल रखने की विनती ही नहीं की है, उन्हें एक किलो दाल और पांच किलो अनाज फालतू भी दिलवाया है और वह भी बिल्कुल मुफ्त. सच पूछिए तो इसके बाद भी गोदामों में चावल के पहाड़ जमा देखकर ही उसने, शराब कारखानों को चावल की सप्लाई करने का मन बनाया है. सरकारी गोदामों में जमा चावल के पहाड़ों की सफाई भी और डरावने वाइरस से लड़ाई भी. और इस मुश्किल के वक्त में सरकार की चार पैसे की कमाई भी! फिर भी भाई लोग पहले भूखों को भात दो का शोर मचा रहे हैं. सरकार के पांच किलो अनाज मुफ्त देने के बाद भी अगर कोई भूखा रह जाए तो मोदी जी की सरकार इसमें क्या कर सकती है? सरकार जबरदस्ती तो किसी को खाना खिला नहीं सकती है. इंडिया में डेमोक्रेसी है, भाई! लेकिन, सिर्फ ऐसे लोगों की वजह से, सरकार वाइरस के खिलाफ भारत के युद्ध को कमजोर तो नहीं होने दे सकती? एक सौ तीस करोड़ भारतीयों को वाइरस के खिलाफ युद्ध में, हैंड सैनीटाइजर की ढाल के बिना तो लड़ने नहीं भेज सकती. पहले 21 दिन में जो हुआ सो हुआ, कम से कम अब 19 दिन में हमारे कोरोना योद्धा, ढाल-कवच के बिना नहीं लड़ेंगे.

वैसे भी भूखों के लिए भात का शोर मचाने वालों को इसका अंदाजा भी नहीं है कि मोदी जी के नेतृत्व में कोरोना के खिलाफ युद्घ में भारत कहां का कहां पहुंच चुका है. मोदी जी ने साफ-साफ एलान कर दिया है कि जान है का समय खत्म हुआ, अब जहान है की बारी है. अगर इसके बाद भी कुछ लोग, जान बचाने की मांगों पर ही अटके हुए हैं; पहले जान बचाओ, फिर जहान बचाओ की बातें कर रहे हैं; तो उनके पिछड़ेपन पर तो तरस ही खाया जा सकता है. ये गुजरे जमाने के समाजवादी टाइप के विचारों के गुलाम हैं, जिन्हें दुनिया कब की ठुकरा चुकी है. खैर! मोदी जी का न्यू इंडिया अब और जान बचाने पर अटका नहीं रह सकता है. उसे अपना जहान बचाना है. अब पहले जहान बचाना है. जहान बचाना ही नहीं, बल्कि सारे जहां को जीतना है.

मोदी जी ने लेख लिखकर बताया है कि भारत को अपनी विश्व गुरूगीरी दिखाने का यही मौका है. हम सारी दुनिया की आपूर्ति की मांगें पूरी कर सकते हैं. हम सब कुछ ऑनलाइन कर सकते हैं. हम सारी दुनिया का पेट भर सकते हैं. विश्व गुरू का आसन हमारी प्रतीक्षा कर रहा है. यह एक सौ तीस करोड़ भारतवासियों के गौरव का सवाल है. हम एक-दो करोड़ के भात के लिए, इस जहान को हाथ से जाने नहीं दे सकते हैं. हम सिर्फ जान है पर संतुष्ट होकर बैठ नहीं सकते हैं. ‘भाषण नहीं राशन’ के लिए गला फाड़ने वाले कान खोलकर सुन लें. फिर से विश्व गुरु बनने का, भूख मिटाने से कोई संबंध नहीं है. भारत पहले भी बहुतों के भूखों रहते हुए विश्व गुरु बना था, दोबारा भी बहुतों को भूखा रखकर ही विश्व गुरु बनेगा. और हां भूखों पर कोरोना के वार का डर हमें कोई नहीं दिखाए. जो भी भूख से या घर के लिए पैदल चल-चलकर या बेकारी से सा कोरोना के डर से मरेगा, अपुन उसकी कोविड-19 के शहीदों में गिनती ही नहीं करेगा. कोरोना मार ले भूख-बेकारी वगैरह से जितने मारे जाएं, वह जीतकर भी गिनती में हारा हुआ ही रहेगा.


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