ट्विटर के सीईओ और सीनियर अधिकारियों ने संसदीय समिति के समक्ष पेश होने से किया इनकार


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ट्विटर के सीईओ सहित सीनियर अधिकारियों ने भारत की संसदीय समिति के समक्ष प्रस्तुत होने से इनकार कर दिया है. ट्विटर के अधिकारियों को आईटी के लिए बनी संसदीय समिति ने सम्मन किया था. समिति की ओर से एक आधिकारिक पत्र जारी किया गया था. मगर ट्विटर के सीईओ ने शार्ट नोटिस का हवाला देते हुए फिलहाल आने से इनकार किया है.

संसदीय समिति ने सोशल मीडिया मंचों पर नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए माइक्रो-ब्लॉगिंग वेबसाइट ट्विटर के अधिकारियों को तलब किया था.

समिति अधिकारियों से सोशल मीडिया पर लोगों के हितों की रक्षा किस प्रकार की जा रही है उसके संबंध में बातचीत करना चाहती थी. समिति के सामने पेश होने के लिए करीब 10 दिन दिए गए, फिर भी ट्विटर ने इस वक्त को कम बताया.

इसके अलावा समिति ने इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को भी बैठक में बुलाया था. सूत्रों के अनुसार बैठक पहले सात फरवरी को होनी थी. हालांकि ट्विटर के सीईओ जैक डॉर्सी समेत अन्य सीनियर अधिकारियों की सहूलियत को देखते हुए इसे 11 फरवरी के लिए टाल दिया गया.

एक फरवरी को जो पत्र संसदीय आईटी समिति ने भेजा था, उसमें लिखा था, “संस्था के सीईओ को समिति के सामने प्रस्तुत होना है. वह अपने साथ किसी अन्य सदस्य को भी ला सकते हैं.”

बीजेपी सांसद अनुराग ठाकुर इस संसदीय समिति के अध्यक्ष हैं.

बीजेपी ने आईटी पर संसदीय समिति के सामने ट्विटर के सीईओ और शीर्ष अधिकारियों के पेश होने से इनकार करने पर ट्विटर को ‘नतीजे’ की चेतावनी दी है.

बीजेपी प्रवक्ता और नई दिल्ली की सांसद मीनाक्षी लेखी ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘किसी भी देश में, किसी भी एजेंसी को उस देश की संस्थाओं का निरादर करने का हक नहीं है. ऐसे में, यदि ट्विटर स्थापित संस्था संसद का निरादार कर रहा है तो उसके नतीजे होंगे. ’’

इससे पहले दक्षिणपंथी संगठन ‘यूथ फॉर सोशल मीडिया डेमोक्रेसी’ ने हाल में ट्विटर के कार्यालय के बाहर प्रदर्शन किया था. यह भी आरोप लगाया था कि ट्विटर का रुख दक्षिणपंथी विरोध का है और कंपनी उनके खातों को बंद कर रही है.

ट्विटर ने 8 जनवरी को राजनीतिक तौर पर पक्षपाती रवैये के आरोपों को खारिज करते हुए बयान जारी कर कहा था कि उसकी नीतियां कभी राजनीतिक विचारधारा पर आधारित नहीं होतीं.


ट्विटर ने अपने बयान में कहा था कि कंपनी राजनीतिक विचार के आधार पर कोई काम नहीं करती है. और न ही राजनीतिक विचारधारा के हिसाब से कोई कदम उठाती है.

यह मामला ऐसे समय में आया जब सोशल मीडिया के माध्यम से नागरिक डेटा गोपनीयता और चुनाव हस्तक्षेप को सुरक्षित रखने के विषय को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं.


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