‘विभेदकारी’ नागरिकता संशोधन कानून को लेकर संयुक्त प्रस्ताव पर यूरोपीय संसद में होगी चर्चा


European Parliament set to debate on joint motion over divisive CAA

 

विवादित नागरिकता संशोधन कानून पर स्वत: संज्ञान लेते हुए ब्रसेल्स में यूरोपियन संसद अपने संयुक्त प्रस्ताव में इसके ऊपर चर्चा करेगी. यूरोपीय संसद में सांसदों के अलग-अलग समूहों ने नागरिकता संशोधन कानून पर पांच प्रस्ताव पेश किए हैं.

रिपोर्ट्स के अनुसार संयुक्त प्रस्ताव में नागरिकता संशोधन कानून पर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के उच्चायुक्त द्वारा पिछले महीने की गई टिप्पणी को भी संज्ञान में लिया जाएगा. उन्होंने इस कानून को मूलभूत रूप से भेदभावपूर्ण बताया था.

इन प्रस्तावों में संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ के मानवाधिकारों के पैमानों और भारत सरकार द्वारा इस ‘भेदभावपूर्ण कानून’ को वापस लेने का जिक्र है.

संयुक्त प्रस्ताव में कहा गया है, ‘कानून में प्रताड़ित नागरिकों की सहायता करने का उद्देश्य प्रशंसनीय है, लेकिन एक प्रभावकारी राष्ट्रीय नागरिकता और शरण देने की नीति अपनी प्रक्रति में परिपूर्ण होनी चाहिए और इसमें सभी जरूरतमंदों को शामिल किया जाना चाहिए.’

संयुक्त प्रस्ताव में नागरिकता संशोधन कानून को भेदभावपूर्ण और खतरनाक रूप से विभेद पैदा करने वाला बताया गया है.

वहीं भारत सरकार ने यूरोपीय संसद में पेश किए गए इन प्रस्तावों को लेकर कहा है कि यह कानून पूरी तरह से भारत का आंतरिक मामला है और इसे दूसरे देशों में प्रताड़ित अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए लाया गया है.

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने 27 जनवरी को यूरोपीय संसद के अध्यक्ष डेविड मारिया को कानून के संबंध में पत्र लिखकर कहा था कि एक विधायिका द्वारा दूसरी विधायिका पर फैसला देना सही नहीं है और इसका फायदा निहित स्वार्थों वाले लोग उठा सकते हैं.

यूरोपीय संसद के इस संयुक्त प्रस्ताव में नागरिकता संशोधन कानून में मुसलमानों को किसी भी तरह की सुरक्षा ना देने की निंदा की गई है, जबकि भारत श्रीलंका, म्यांमार, भूटान और नेपाल के साथ अपनी सीमाएं साझा करता है.

प्रस्ताव में कहा गया है कि कानून में श्रीलंका के तमिलों को शामिल नहीं किया गया है, जो श्रीलंका में प्रताड़ित हैं और करीब 30 साल से भारत में रह रहे हैं. वहीं एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा है कि कानून में अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देने के प्रावधान के तहत म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमानों, पाकिस्तान के अहमदिया, अफगानिस्तान के हजारा और बांग्लादेश के बिहारी मुसलमानों के लिए नागरिकता की कोई बात नहीं की गई है, जबकि ये सभी समूह अपने-अपने देश में अल्पसंख्यक और प्रताड़ित हैं.

इस संयु्क्त प्रस्ताव में एनआरसी की भी आलोचना की गई है. प्रस्ताव में कहा गया है कि एनआरसी के तहत हिंदुओं और दूसरे गैर-मुस्लिमों को छोड़कर केवल मुसलमानों की नागरिकता छीनने की योजना है.


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