दीया-बाती तो कराने दो यारो!


a satirical piece by rajendra sharma on lighting diya announcement by modi

 

मोदी जी के विरोध के चक्कर में ये सेकुलरवाले अब क्या कोरोना के खिलाफ मां-भारती के हरेक प्रहार का विरोध करेेंगे? पहले घंटा-थाली से ध्वनि प्रहार का विरोध. फिर, प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा के नाम पर, इशारों-इशारों में लॉकडाउन का विरोध. और अब घर-घर में दीया-बाती के प्रकाश प्रहार का भी विरोध! क्या चाहते हैं, भारत कोरोना से सिर्फ बचाव ही करता रहे, आगे बढ़कर उस पर कोई प्रहार ही नहीं करे?

कराने को अपनी सरकार से ये क्या कुछ नहीं कराना चाहते हैं. टेस्टिंग दे. अस्पताल दे. डाक्टरों-नर्सों-सफाई करने वालों को सुरक्षा उपकरण दे. सैनिटाइजिंग दे, साफ-सफाई दे. और तो और सोशल डिस्टेंसिंग लागू कराने के लिए लॉकडॉउन में मजदूरों को दाना-पानी, सिर छुपाने को जगह, साबुन वगैरह भी दे. और वह सब भी मुफ्त, जिससे कोई छूट न जाए. यानी सरकार है तो वही सब कुछ करे. सरकार वाले ही नहीं, गैर-सरकार वाले काम भी.

बस वही नहीं करे जो सरकार के करने का असली काम है क्योंकि वह काम सरकार ही कर सकती है! कोरोना राक्षस पर आगे बढक़र प्रहार न करे. सिर्फ बचाव ही बचाव, सर्जिकल स्ट्राइक जरा भी नहीं–मोदी जी की सरकार को कोई पहले वाली सरकार समझा है क्या? मोदी जी के ध्वनि प्रहार, प्रकाश प्रहार में खोट निकालने वालों के पास, प्रहार का कोई वैकल्पिक और इससे ज्यादा कारगर हथियार हो तो बताएं?

मोदी जी पश्चिम वालों की तरह कोरोना का टीका या कोविड-19 की दवा बनने तक, हाथ पर हाथ धरकर तो बैठे नहीं रहेंगे. एक सौ तीस करोड़ से घंटा-थाली बजवाएंगे, दीया-बाती कराएंगे, फिर भी नहीं माना तो तंत्र-मंत्र-यज्ञ-झाड़-फूंक भी कराएंगे, पर करोना पर तब तक वार किए जाएंगे, जब तक वह घबराकर यहां से भाग नहीं जाता है.

फिर भी, मोदी जी ने इस बार एक अच्छा काम और किया है. उन्होंने इस बार इसकी किच-किच का कंटा ही काट दिया है कि वह तो बिना किसी से पूछे-जाने अचानक एलान कर देते हैं और पब्लिक को संभलने, तैयार होने का टैम ही नहीं देते हैं. सिर्फ 9 मिनट के लिए दिया-बाती-मोमबत्ती-टार्च तैयार करनी है, फिर भी मोदी जी ने ढ़ाई दिन का टैम दिया है यानी पूरे 60 घंटे. बेशक, हर बार की तरह मोदी जी, इस बार भी रात के आठ बजे टीवी पर अपना वीडियो दिखा सकते थे.

पर उन्होंने ऐसा नहीं किया. स्पेशली सुबह के नौ बजे टीवी पर आए और रामानंद सागर जी की रामायण को टलवाकर, अपना संदेश सुनाया. पब्लिक को तैयारी के लिए बारह घंटे का टैम बोनस में मिल गया. अब हर चीज में खुचड़ लगाने वाले इस में किट-किट कर रहे हैं कि लॉकडॉउन में लोग दीया-मोमबत्ती कहां से लाएंगे? दीया-मोमबत्ती आसमान से दिखवाने के लिए लाइट बंद करेंगे, तो बिजली का ग्रिड बैठ जाएगा, वगैरह. पर ये सब जबर्दस्ती की बहानेबाजियां है.

वरना हिंदुस्तान की जुगाडू पब्लिक क्या साठ घंटे में दिया-मोमबत्ती का भी इंतजाम नहीं कर सकती है? या ग्रिड को बचाने के लिए, लाइट बंद करने से पहले क्या पंखा वगैरह चलाकर नहीं छोड़ सकती है? सच्ची बात तो यह है कि मोदी जी ने दीया-मोमबत्ती के साथ ही टार्च और सैल फोन की लाइट जैसे, नये टैम के विकल्प भी तो दिए हैं; आधुनिक भी और सर्वसुलभ भी. इसके बाद विरोधियों के पास कोई बहाना नहीं रह जाता है. वैसे विरोधियों की मोदी जी के पब्लिक को संभलने का टैम ही नहीं देने की शिकायत ही सरासर झूठी थी.

वरना घंटा-थाली बजवाने से पहले मोदी जी ने पूरे 90 घंटे का टैम नहीं दिया होता, जबकि घंटा न सही पर ताली और थाली तो हर घर में निकल ही आएगी.

फिर भी, लॉकडॉउन के लिए मोदी जी सिर्फ साढ़े तीन घंटे का टैम क्या दिया, बिना कुछ जाने-समझे लोगों ने उसका कनैक्शन, नोटबंदी के एलान के बाद के साढ़े तीन घंटे से जोड़ दिया. हल्ला मचा दिया कि पहले नोटबंदी, अब मुकम्मल देशबंदी और बीच में कश्मीरबंदी से लेकर सीएए-एनआरसी की मुस्लिमबंदी तक, ये सरकार तो पब्लिक को झटके ही देने में यकीन करती है. और झटका देने की शिकायत तक तो फिर भी गनीमत थी. भाई लोगों ने इसे पब्लिक का झटका करने का ही मामला बना दिया. इसकी गिनती और गिनाने लगे कि देशबंदी के पहले चार दिन तक, कोरोना और देशबंदी का मौतों का स्कोर बराबर था–इक्कीस-इक्कीस. खैर! कोरोना के आगे गिनती की तो बात करना ही फिजूल है. और रही झटका देने की बात तो पहले घंटा-थाली बजाने और अब दीया-मोमबत्ती जलाने की तैयारी कि लिए ढाई से चार दिन तक का टैम देकर मोदी जी ने दिखा दिया है कि उन्हें झटका देने का कोई खास शौक नहीं है और चाहें तो झटका नहीं भी दे सकते हैं. हां!

अगर उन्हें लगता है कि पब्लिक को झटका देना चाहिए, तो वह झटका देने से हिचकने वालों में से भी नहीं हैं. और हिचकें भी क्यों? उन्हें कौन सा हलाल वालों का तुष्टीकरण करना है. फिर, वह ठहरे शुद्घ शाकाहारी. उनके लिए जैसा हलाल, वैसा झटका; मकसद तो कटना है. नोटबंदी से हो या देशबंदी से, अगर पब्लिक को मरना ही है तो, झटका ही क्यों नहीं. सच पूछिए तो झटका ही बेहतर है–ज्यादा मानवीय, कम पीड़ादायक.

दो इतवार पहले घंटा-थाली ध्वनि प्रहार चूक भी गया तो क्या हुआ, इस इतवार को मोदी जी अचूक दीया-मोमबत्ती प्रकाश-वाण चलाएंगे और कोरोना राक्षस को जरूर मार गिराएंगे. डाक्टर लोग बेकार में पीपीई-वीपीई के लिए हाय-हाय कर रहे हैं.


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