महज सतही समाधान है आयुष्मान योजना: अमर्त्य सेन


London School of Economics announces Amartya Sen Chair

 

जाने-माने अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन का मानना है कि आयुष्मान योजना से आम लोगों को लाभ नहीं मिल रहा है. उनका कहना कि भारत में फिलहाल पब्लिक सेक्टर ढांचे को विकसित किए जाने की जरुरत है. सेन ने कहा इन सुविधाओं को विकसित किए बिना बीमा मुहैया करना व्यर्थ है.

टेलीग्राफ के मुताबिक, हाल में उन्होंने केंद्र की यह कहते हुए आलोचना की कि आयुष्मान भारत में लगा पैसा प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने में लगाया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि भारत में डॉक्टरों की उपलब्धता, दवाइयां, गरीबों तक स्वास्थय सुविधाओं की पहुंच जैसे आधारभूत ढांचे को विकसित किए जाने की जरुरत है.

सेन ने योजना की कमियां उजागर करते हुए कहा, “अगर हम स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रबंधन पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि इसकी बड़े स्तर पर अनदेखी की जा रही है. यह अनदेखी हमें नहीं दिखती है क्योंकि हमें लगता है कि सरकार इसके लिए काफी काम कर रही है. जैसे कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना और अब ये नई आयुष्मान भारत योजना. इन योजनाओं का जोर प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं पर नहीं है. लेकिन यहां समस्या प्राथमिक है, पर समाधान प्रथामिक नहीं है. ये प्रबंधन की कमियां उजागर करता है.”

आयुष्मान भारत योजना या राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना भारत सरकार की एक प्रस्तावित योजना है, जिसे 23 सितंबर, 2018 को पूरे भारत में लागू किया गया था. सरकार के मुताबिक इस योजना का उद्देश्य आर्थिक रूप से कमजोर लोगों (बीपीएल धारक) को स्वास्थ्य बीमा मुहैया कराना है. इसके तहत आने वाले 10 करोड़ गरीब और कमजोर परिवारों को 5 लाख तक का कैशरहित स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध कराया जाता है. इस योजना के तहत, 60 प्रतिशत खर्च केंद्र और 40 फीसदी व्यय राज्य वहन करता है. यूएस में ओबामा केयर की तर्ज पर बीजेपी नेताओं ने इस योजना का नाम ‘मोदी केयर’ रखा है.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बीते महीने केंद्र सरकार पर स्वास्थ्य योजना का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाते हुए राज्य को इस योजना से अलग कर लिया था.

ममता ने कहा कि ‘आयुष्मान भारत’ योजना के तहत योजना को चलाने के लिए 60 फीसदी राशि केंद्र सरकार देती है और 40 फीसदी राशि राज्य सरकारें देती हैं,लेकिन मोदी सरकार पश्चिम बंगाल के योगदान को पूर्णरूप से अनदेखा कर इस योजना का पूरा श्रेय खुद ले रही है.

पश्चिम बंगाल से पहले दिल्ली, केरल, छत्तीसगढ़, पंजाब, उड़ीसा और तेलंगाना अलग-अलग कारणों से आयुष्मान योजना लागू करने से इंकार कर चुके हैं.

आगे सेन ने पूछा, “सवाल ये है कि आयुष्मान योजना के फंड से प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं में क्या बदलाव लाए जा सकते थे.” हालांकि उन्होंने बोला कि “सरकार ने अपने प्रबंधन के अनुसार योजना लागू की. अगर स्वास्थ्य पर कोई योजना लागू ही नहीं की जाती तो ज्यादा परेशानी होती.”

सेन ने कहा, मैं ये नहीं कह रहा कि सब कुछ श्रेय लेने के लिए किया जाता है. पर हां, श्रेय के लिए काफी राजनीति की जाती है. उन्होंने कहा, “योजना का पैसा कहां और कितना खर्च किया जा रहा है, क्या लोगों का जीवन स्तर इससे वाकई बेहतर होगा या नहीं, ये सब पहले सोचने वाली बात है.”

उन्होंने प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार पर जोर देते हुए कहा कि स्वास्थ्य या शिक्षा के क्षेत्र में समस्या प्राथमिक है, इसलिए समाधान भी प्राथमिक ही होना चाहिए. आयुष्मान भारत पर खर्च किया जाने वाला पैसा विशेष बीमारियों के लिए है. लेकिन समस्या ये है कि अगर आप उस पर अधिक ध्यान केन्द्रित करेंगे तो इससे दूसरी जरूरी बातों की अनदेखी होगी.


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