संयुक्त राष्ट्र ने ‘दिव्यांगजन’ शब्द को अपमानजनक बताया, NRC पर चिंता जताई


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अपाहिज व्यक्तियों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की समिति (सीआरपीडी) ने ‘दिव्यांगजन’ शब्द को उतना ही अपमानजनक बताया है, जितना किसी को मानसिक रूप से बीमार कहना है.

सीआरपीडी ने 26 अगस्त से 20 सितंबर तक जेनेवा में अपने दूसरे सत्र में असम में एनआरसी के तहत विदेशी घोषित कर दिए गए और वर्तमान में डिटेंशन कैंपों में बंद अपाहिज व्यक्तियों, मुस्लिम अपाहिज व्यक्तियों, के अधिकारों को लेकर भी चिंता जताई.

समिति ने कहा कि असम की छह जेलों में, जो डिटेंशन कैंप की तरह काम कर रही हैं, में हजार से अधिक लोगों को विदेशी घोषित करके कैद कर दिया गया है, लेकिन अभी तक इनके बीच उपस्थित अपाहिज लोगों का कोई डेटा उपलब्ध नहीं कराया गया है.

असल में 2014 में बीजेपी के नेतृत्व में केंद्र में एनडीए की सरकार आने के बाद सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले ‘विकलांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण विभाग’ का नाम बदलकर ‘दिव्यांगजन’ रख दिया गया था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में दो बार मन की बात प्रोग्राम में कहा कि ‘विकलांग’ की जगह ‘दिव्यांग’ शब्द का प्रयोग किया जाना चाहिए.

अपाहिज व्यक्तियों के अधिकारों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने कहा कि ‘दिव्यांग’ और ‘दिव्यांगजन’ शब्दों की उत्तर भारत में एक तरह की स्वीकार्यता है, लेकिन बाकी के देश में इन शब्दों को विवादास्पद और अपमानजनक माना जाता है क्योंकि ये शब्द उन कठिनाइयों को ढक देते हैं, जिनसे एक अपाहिज व्यक्ति रोजमर्रा के स्तर पर दो-चार होता है.

एनआरसी पर टिप्पणी करते हुए सीआरपीडी ने कहा कि एनआरसी के सर्विस सेंटर अपाहिज व्यक्तियों को बैरियर मुक्त एक्सेस नहीं प्रदान करते हैं. सीआरपीडी ने एनआरसी के तहत विदेशी घोषित कर दिए गए और डिटेंशन कैंपों में बंद अपाहिज व्यक्तियों के अधिकार सुनिश्चित करने की बात कही है.

सीआरपीडी ने भारत से कहा है कि वो जल्द से जल्द राष्ट्रीयता के मांगपत्र और 1954 के राज्यविहीन लोगों को लेकर कन्वेंशन का पालन करे.


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