दिखने लगे अर्थव्यवस्था के आंकड़ों से छेड़छाड़ के नतीजे


due to govt manipulation of economic data investor shifting to other data sources

 

मोदी सरकार के कार्यकाल में अर्थव्यवस्था से जुड़े सरकारी आंकड़ों के साथ हुई छेड़छाड़ के नतीजे दिखने लगे हैं. सरकारी आंकड़ों की गिरती साख के बीच अर्थशास्त्री और निवेशक अब दूसरे स्रोतों से आंकड़ें ले रहे हैं. बीते कुछ समय से सरकार पर लगातार आरोप लग रहे हैं कि वह अर्थव्यवस्था से जुड़े सटीक और तथ्यातमक आंकड़ें पेश करने में विफल रही है.

बीते साल दिसंबर में राष्ट्रीय सैंपल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन (एनएसएसओ) के रोजगार सर्वे को पांच दिसंबर को कोलकाता में हुई बैठक में मंजूर किया गया था. इस सर्वे को सांख्यिकी और कार्यान्वयन मंत्रालय की ओर से जारी किया जाना था. लेकिन सरकार इस रिपोर्ट को प्रकाशित करने से बचती दिखी, जिसके बाद संस्थान के कार्यवाहक अध्यक्ष पीसी मोहनन और संस्थान की गैर-सरकारी सदस्य जेवी मीनाक्षी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.

दरअसल इस रिपोर्ट में चौंकाने वाला खुलासा हुआ था कि देश में साल 2017-18 में बेरोजगारी दर पिछले 45 साल में सबसे ज्यादा थी.

वहीं अभी हाल ही में सामने आए एनएसएसओ के अध्ययन से जीडीपी गणना में खामियां उजागर हुई हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि जीडीपी आंकलन के लिए कारपोरेट मामलों के मंत्रालय की जिस वेबसाइट से आंकड़े लिए जाते हैं, वहां सूचीबद्ध 36 फीसदी कंपनियों का कोई अता-पता नहीं है.

जिससे ये बात तो साफ हो गई है कि विकास दर के आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जा रहा है.

आंकड़ों पर लगातार बढ़ते संदेह के बीच प्रमुख अर्थशास्त्रियों और निवेशकों ने रॉयटर को दिए साक्षात्कार में कहा है कि अर्थव्यवस्था पर सरकारी आंकड़ों के इतर अब वे दूसरे स्रोत से डेटा ले रहे हैं. उन्होंने कहा है कि वो पूरी तरह जीडीपी पर सरकारी आंकड़ों पर निर्भर ना रहकर दूसरे स्रोतों से भी डेटा भी ले रहे हैं (जिसमें कारों की बिक्री, हवाई और रेल माल ढुलाई के आंकड़ें, परचेजिंग मैनेजर इंडेक्स और संस्थानों द्वारा बनाए गए प्रोप्राइटरी सूचकांक शामिल है).

अर्थशास्त्रियों ने कहा कि उन्हें हैरानी हुई कि सरकार ने नोटबंदी के बाद जीडीपी विकास दर में संशोधन के बाद बढ़ोत्तरी की बात कही. जबकि नवंबर 2016 में नोटबंदी के बाद बाजार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा था, साथ ही व्यापार और नौकरियां में गिरावट दर्ज की गई थी. (सरकार ने वित्त वर्ष 2016-17 के लिए संशोधित जीडीपी दर 8.2 फीसदी बताया, जबकि ये पहले 6.7 फीसदी थी)

टेलीग्राफ में छपी खबर के मुताबिक सरकार के करीबी सूत्रों का भी मानना है कि ज्यादा सटीक आंकड़े अर्थव्यवस्था में होने वाली हलचल के प्रति पहले ही आगाह कर देते हैं. ऐसे में आंकड़ों से छेड़छाड़ किसी भी देश में समस्या को बढ़ा सकता है. गलत आंकड़ों से निवेशक भी गुमराह होते हैं जिसके अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ते हैं.

गलत आंकड़ों का एक प्रतिकूल प्रभाव इस तरह समझा जा सकता है कि इनकी वजह से मौजूदा व्यापारी या नए बाजारों का रुख कर रहे व्यापारी दिवालिया हो गए.

निजी बिजली उत्पादकों ने 8 फीसदी की विकास दर को देखते हुए अनुमान लगाया कि ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली परियोजनाओं के विकास के साथ छोटे व्यापारियों और घरेलू स्तर पर बिजली की मांग बढ़ेगी. उत्पादकों ने इसे देखते हुए नए बिजली प्लांट लगाए, जिसमें करोड़ों डॉलर का निवेश किया गया. लेकिन आज उनकी संभावनाओं के अनुरूप मांग नहीं होने की वजह से उसमें से अधिकतर दिवालिया हो चुके हैं.

लगातार उठते सवालों के बीच विभिन्न केंद्रीय मंत्रियों ने अर्थशास्त्रियों को घेरने की कोशिश की कि वे  जान-बूझकर आंकड़ों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर रहे हैं और सरकार के खिलाफ अभियान चलाने की कोशिश कर रहे हैं.

वहीं कुछ समय पहले अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़ों को लेकर सवाल उठाए थे. उसके पहले भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने शक जताया था कि भारत की अर्थव्यवस्था सात फीसदी की दर से विकसित हो रही है.


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