जन सुनवाई में चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर उठे सवाल


Election Commission questions on fairness in public hearing

 

चुनाव आयोग में आंतरिक घमासान के बीच सिविल सोसाइटी में भी चुनाव आयोग की निष्पक्षता को लेकर आवाज उठने लगी है. ‘पारदर्शिता, जवाबदेही, चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और 2019 में चुनावी प्रक्रिया’ विषय पर आयोजित जन सुनवाई में ईवीएम की वैधता और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठे. जनसरोकार संस्था की ओर से आयोजित जन सुनवाई में जस्टिस लोकुर, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त नवीन चावला के साथ-साथ सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिक दलों के नेता शामिल हुए.

पूर्व केन्द्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने वोटर लिस्ट से नाम गायब होने और ईवीएम गड़बड़ी की वजह से बूथ से मतदातों के लौटने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग सरकार से निर्देशित होता है, हम एक सामंतवादी व्यवस्था में आ गए हैं और लोकतंत्र खतरे में हैं. सिब्बल ने प्रेस की स्वतंत्रता पर भी चिंता जताई.

सीपीआई नेता डी राजा ने कहा कि आज जाति और पैसे के आधार पर सीटें सुरक्षित हो गईं हैं. जाति और धन देखकर ही उम्मीदवार बनाए जाते हैं. उन्होंने चुनाव प्रचार में बेतहाशा खर्च पर भी सवाल उठाए.

आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने कहा कि चुनाव आयुक्त अशोक लवासा का बयान साबित करता है कि चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर जो सवाल हम उठाते रहे हैं, वह सच है. उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग ने वीवीपैट की पर्ची मिलान को लेकर कोई स्पष्ट गाइडलाइन जारी नहीं की है.

तेदेपा अध्यक्ष और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि चुनावी बॉन्ड का दुरूपयोग किया गया है और नोटबंदी के बाद ‘वोट खरीदने’ के लिए 500 और 2000 रुपये के नए नोट लाए गए.

उन्होंने जोर दिया कि 50 प्रतिशत वीवीपैट का मिलान हो सकता है.

जन सुनवाई को संबोधित करते हुए वैज्ञानिक और साहित्यकार गौहर रजा ने कहा कि कम पढ़े लिखे लोगों में ईवीएम पर विश्वास घटा है, जिसे बहाल करने की जरूरत है. उन्होंने कहा, “हमने कई तरह की बराबरी की बात की थी लेकिन अबतक हमें केवल एक जगह ही बराबरी मिल पाई है, वह है वोट की बराबरी, जिसे छीना जा रहा है.”

उन्होंने कहा कि ईवीएम से लोगों का विश्वास घटा है, यह खतरनाक है, इससे अफगानिस्तान और पाकिस्तान जैसे हालात पैदा हो सकते हैं.

गौहर रजा ने चुनाव आयोग के उन तर्कों को खारिज किया कि ईवीएम की वजह से बूथ कैप्चरिंग की घटनाएं कम हो गई है. उन्होंने कहा कि जनजागरुकता, बेहतर सुरक्षा व्यवस्था और कई चरणों में चुनाव होने की वजह से बूथ कैप्चरिंग कम हुईं हैं. हर हाथ में मोबाइल होना भी इसकी एक बड़ी वजह है.

उन्होंने कहा कि पांच से 15 फीसदी ईवीएम में गड़बड़ी करके ही परिणाम को बदला जा सकता है.

उन्होंने कहा कि मतदाताओं की तसल्ली के लिए वीवीपैट पर्ची की गिनती की जानी चाहिए. उन्होंने कहा, “अगर चुनाव परिणाम के लिए अतिरिक्त दो चार या सप्ताह भर इंतजार करना पड़े तो इसमें क्या दिक्कत हो सकती है. पहले चरण में वोटिंग करने वाले मतदाता आखिर डेढ़ महीने तक परिणाम का इंतजार करते हैं.”

कपिल सिब्बल ने कहा कि मतदाताओं और उम्मीदवार दोनों के लिए तसल्ली जरूरी है.

मतदान और मतगणना: ईवीएम, वीवीपैट और वोटर लिस्ट सत्र की अध्यक्षता करते हुए एनएफआईडब्लू की एनी राजा ने चुनाव आयोग में नियुक्ति की प्रक्रिया पर सवाल उठाये. उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग और महिला आयोग की हालात एक जैसी है, जहां पर सरकार नियुक्ति करती है. तृणमूल कांग्रेस और बीजू जनता दल की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि महिलाओं की ओर से लोकतंत्र की प्रक्रिया में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने के बावजूद उनका प्रतिनिधित्व काफी कम है. महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी भी एनी के साथ नजर आई.

उन्होंने चुनाव आयोग पर बीजेपी के लिए काम करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि जहां भी बीजेपी मजबूत है वहां चुनाव आयोग की ओर से कोई रोक नहीं लगाई जाती है. जबकि जहां वामपंथ का वोट बैंक हैं वहां तरह-तरह के प्रतिबंध लगाए गए हैं. एनी राजा ने कहा कि चुनाव आयोग को सभी वीवीपैट पर्ची की गिनती करवानी चाहिए. उन्होंने चुनाव आयोग से पूछा कि चुनाव आयोग की ओर से घोषणा के बावजूद सात सेकंड के बजाय केवल तीन सेकंड तक ही वीवीपैट पर पर्ची क्यों दिख रही है?

जन सुनवाई में आंध्र प्रदेश सरकार के तकनीकी सलाहकार हरि कृष्ण प्रसाद ने भी अपनी बात रखी. वे साल 2010 में पहली बार सुर्खियों में तब आए थे जब उन्होंने कथित रूप से चुनाव आयोग की एक ईवीएम को मीडिया सामने में हैक करके दिखाया था. उन्होंने अपने सहयोगियों एलेक्स हाल्डरमैन और रॉब गोंगरिजप्प के साथ हैकिंग की पूरी प्रक्रिया को प्रकाशित भी किया था. ईवीएम चोरी करने के आरोप में उन्हें आठ दिन जेल में रहना पड़ा था.

हरि प्रसाद ने कहा कि कोई भी ऐसी तकनीक नहीं है जिसके साथ छेड़छाड़ नहीं की जा सकती.

हरि प्रसाद ने दावा किया कि कई जगहों पर सिर्फ तीन सेकंड के लिए ही पर्ची दिखी है. इसका मतलब है कि ईवीएम की कोडिंग में बदलाव किया गया है. चुनाव आयोग के मुताबिक वीवीपैट में सात सेकंड तक पर्ची दिखती है.

उन्होंने कहा कि किसी भी विकसित लोकतंत्र में ईवीएम से वोटिंग की व्यवस्था नहीं है.

उन्होंने कहा कि ईवीएम को चलाना अपने आप में काफी तकनीकी दक्षता की मांग करता है. अक्सर अधिकारियों में दक्षता की कमी को ईवीएम में आई तकनीकी गड़बड़ी बताया जाता रहा है. ईवीएम की तकनीक को समझ नहीं पाने की वजह से कई इलाकों में तीन बजे दोपहर में चुनाव शुरू हो पाया.

उन्होंने कहा कि वोटिंग के लिए बैलेट पेपर पर वापस लौटने की जरूरत है.

उन्होंने आगे कहा, “मतदान केन्द्रों की निगरानी के लिए तकनीक का इस्तेमाल कीजिए, मतदाताओं को वेरिफाई करने के लिए तकनीक का इस्तेमाल कीजिए, तकनीक इसका इस्तेमाल पारदर्शिता और निगरानी के लिए हो सकता है.”

पूर्व राज्य चुनाव आयोग एनएस माधवन ने कहा कि चुनाव आयोग ने शिकायत के गलत पाए जाने पर दंड का प्रावधान कर दिया है, जो गलत है. गौहर रजा ने भी कहा कि चुनाव आयोग को ईवीएम का बचाव छोड़कर शिकायतों को सुनने की जरूरत है. नए प्रावधान में गलत शिकायत करने पर दंड का प्रावधान किया गया है.

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने एग्जिट पोल की पूरी प्रक्रिया को गैर कानूनी बताया है. उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग को भी इसकी पूरी जानकारी नहीं है कि चुनाव के दरम्यान एग्जिट पोल करवाना भी कानूनन गलत है.

उन्होंने कहा कि वे आज भी ईवीएम का बचाव करने के पक्ष में हैं लेकिन इसका सही उपयोग चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर निर्भर करता है. ईवीएम को वोटिंग में शामिल करने में कुरैशी की बड़ी भूमिका रही थी.

कार्यक्रम के आयोजक निखिल डे कहते हैं कि वे वोट मांगने वाले लोग नहीं हैं, लोकतंत्र को बचाने वाले लोग हैं और उसी चिंता के साथ यहां पहुंचे हैं. वह आगे कहते हैं कि लोगों के बीच यह बात लाने की जरूरत है कि आज लोकतंत्र के सामने बहुत बड़ा खतरा है. चाहे बीजेपी भी विपक्ष में रहे हम लोकतंत्र के लिए आवाज उठाएंगे.

वे कहते हैं, “सबको भयंकर चिंता है कि आज से पहले शायद ही चुनाव आयोग पर सवालिया निशान उठे हैं, और प्रक्रिया पर इतने सवाल उठ रहे हैं, धनबल और बाहुबल तो चलता रहा है लेकिन अब छेड़छाड़ की आशंका बहुत बढ़ गई है. पक्षपात की आशंका है. इस बार केवल एक बूथ कैप्चर नहीं हो रहा है बल्कि पूरी चुनावी प्रक्रिया को कैप्चर करने की कोशिश हो रही है.”

निखिल डे कहते हैं कि ईवीएम हटाने के साथ चुनाव आयोग की निष्पक्षता भी जरूरी है.

वह कहते हैं कि हम जीतने या हारने वाले लोग नहीं हैं, हम हारेंगे यदि लोकतंत्र हारता है.

निखिल डे और उनके जैसे सामाजिक कार्यकर्ता जनता को जागरुक करने की बात करते हैं. एक दिन बाद जब मतदान होना है, वह मतदाताओं को कितना समझा पाते हैं यह बड़ा सवाल है?


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