लगातार सिकुड़ रहा है इंजीनियरिंग का बाजार, 20 फीसदी की गिरावट


Engineering and Technology: Enrolment down by more than 20% in 7 years

  AICTE

तकनीकी शिक्षा देने वाले संस्थानों को मान्यता देने के सवाल पर एक बार फिर से बहस खड़ी हो गई है. ये चर्चा उन रिपोर्टों के चलते एक बार फिर से शुरू हुई है, जिनमें कहा गया है कि इंजीनियरिंग का बाजार लगातार सिकुड़ता जा रहा है. कहा जा रहा है कि 2020 के बाद अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद यानी कि एआईसीटीई नए इंजीनियरिंग कॉलेजों को मान्यता देना बंद कर देगी.

साल 2012-13 में कुल 10,272 इंजीनियरिंग कॉलेज थे, जो 2019-20 में बढ़कर 10,778 हो गए. इस दौरान ये 4.9 फीसदी की गति से बढ़े. लेकिन इनमें ऑफर किए जाने वाले प्रोग्राम और उनमें हिस्सा लेने वाले छात्रों का ट्रेंड कैसा रहा? इस तथ्य की फैक्टली वेबसाइट ने पड़ताल की है.

भारत में तकनीकी शिक्षा के अंतर्गत इंजीनियरिंग एंड टेक्नॉलॉजी, प्रबंधन के कोर्स, एफसीए, फार्मेसी, आर्कीटेक्चर, प्लानिंग, डिजाइनिंग, एप्लाइड आर्ट्स, क्राफ्ट, होटल मैनेजमेंट, कैटरिंग के कोर्स आते हैं. ये अंडर ग्रजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट और डिप्लोमा स्तर पर उपलब्ध होते हैं.

ये कोर्स और इनको उपलब्ध कराने वाले संस्थानों को अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद मान्यता प्रदान करता है. ये राष्ट्रीय स्तर की सलाहकार संस्था है जिसकी स्थापना 1945 में की गई थी.

एआईसीटीई की वेबसाइट के ताजा आंकड़ों के मुताबिक इस समय कुल 10,778 संस्थान रजिस्टर हैं. जिसमें से 2579 फार्मेसी के हैं और 6143 इंजीनियरिंग के हैं.

इन आंकड़ों से एक बात सामने आई है कि जो संस्थान एप्लाइड आर्ट और क्राफ्ट, आर्कीटेक्चर और होटल मैनेजमेंट के कोर्स उपलब्ध कराते हैं उनकी संख्या लगभग समान ही रही है.

लेकिन प्रबंधन और एमसीए जैसे कोर्स देने वाले संस्थानों की संख्या में भारी कमी दर्ज की गई है.

जहां तक इंजीनियरिंग कालेजों का सवाल है, पहले तो इनकी संख्या में इजाफा हुआ था, लेकिन 2016-17 से इनकी संख्या में कमी आती गई है. इसका कारण इन कोर्स की मांग में कमी आना है. वहीं इसी बीच फार्मेसी संस्थानों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है. बल्कि इनकी संख्या में इजाफा ही हुआ है.

वेबसाइट के मुताबिक बीते साल की तुलना में इस बार यानी 2019-20 के सत्र में 1.76 लाख सीटों की कमी आई है. ये कमी 6.5 फीसदी बैठती है.

अगर इन कोर्स में पंजीकरण की बात करें तो हाल और भी बुरा है. साल 2012-13 के मुकाबले साल 2019-20 में 20 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है. इस दौरान इन कोर्स में हिस्सा लेने वाली महिलाओं की संख्या में बहुत बड़ी गिरावट दर्ज की गई है.

2012-13 से 2018-19 तक कुल 40 फीसदी महिला अभ्यर्थियों ने इन कोर्स से मुंह मोड़ लिया.

इस वेबसाइट के मुताबिक प्लेसमेंट की तस्वीर भी कोई खास रंगीन नहीं है. आंकड़ों के मुताबिक कुल छात्रों में से सिर्फ 40 फीसदी छात्रों को ही संस्थान से नौकरी मिलती है. ये संख्या काफी कम है, हालांकि इन आंकड़ों को भी संदेह की निगाह से देखा जाता है.


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