ऐसे एग्जिट पोल तो बस एक मजाक भर हैं!


exit polls are nothing more than a joke

 

सत्रहवीं लोकसभा चुनाव के लिए मतदान प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. मतदान प्रक्रिया पूरी होते ही विभिन्न एजेंसियों ने अपने-अपने एग्जिट पोल जारी कर दिए हैं. लगभग सभी एग्जिट पोल में एनडीए को बहुमत मिलने का अनुमान लगाया गया है. ज्यादातर एग्जिट पोल में एनडीए को 300 से अधिक सीटें मिलने का अनुमान है. इंडिया टुडे एक्सिस एग्जिट पोल में एनडीए को अधिकतम 369 सीटें मिलने का अनुमान है. अगर यह एग्जिट पोल सही साबित होता है तो इसका मतलब होगा कि इस बार 2014 से भी बड़ी मोदी लहर है.

न्यूज 24 चाणक्य के एग्जिट पोल में एनडीए को 350 सीट मिलने का अनुमान लगाया गया है. वहीं रिपब्लिक जन की बात और टाइम्स नाऊ ने भी एनडीए को 300 से अधिक सीटें दी हैं. केवल दो एग्जिट पोल ने एनडीए के बहुमत तक ना पहुंचने का अनुमान लगाया है. इसमें न्यूज एक्स नेटा ने एनडीए को 242 और एबीपी न्यूज नील्सन ने एनडीए को 267 सीटें दी हैं. इसमें भी एबीपी न्यूज ने बाद में आंकड़े को बदलकर एनडीए के लिए 276 कर दिया.

कुल मिलाकर लब्बोलुआब यह है कि ज्यादातर एग्जिट पोल में एनडीए को पूर्ण बहुमत मिलने का अनुमान है. कुछ में तो उसे प्रचंड बहुमत मिलने का अनुमान है. लेकिन कुछ सर्वेक्षण ऐसे भी हैं जिनमें तस्वीर बिल्कुल उलटी है. उलटी नहीं तो कम से कम जुदा तो है ही.

ऐसा ही एक एग्जिट पोल ‘विद आरजी’ नाम की एजेंसी ने कराया है. एजेंसी ने दावा किया है कि उसका सर्वे दो लाख ग्रामीण और शहरी मतदाताओं पर आधारित है. इस सर्वे में एनडीए को 165 से 175, यूपीए को 198 से 208, सपा-बसपा गठबंधन को 42 से 52, टीएमसी को 28 से 32 और अन्य दलों को 109 से 119 सीट मिलने का अनुमान लगाया गया है. इस एक्जिट पोल की मानें तो सपा-बसपा के समर्थन से केंद्र में यूपीए की सरकार बन सकती है.

एक और ऐसा ही एग्जिट पोल सोशल मीडिया पर तैर रहा है. इसके बारे में कहा जा रहा है कि इसे विभिन्न पत्रकारों ने अलग-अलग नेताओं से बात करके तैयार किया है. इस सर्वे की खास बात यह है कि इसमें विभिन्न राज्यों के प्रमुख मुद्दों और कारकों के आधार पर सीटों का अनुमान लगाया गया है.

इस एग्जिट पोल में एनडीए को 225 और यूपीए को 176 सीटें मिलने का अनुमान है. वहीं निर्गुट को 142 सीटें मिलने का अनुमान है.

असल में जब से विभिन्न एजेंसियों ने सत्रहवीं लोकसभा के एग्जिट पोल जारी किए हैं, तब से लोगों को ये अतिशयोक्तिपूर्ण नजर आ रहे हैं. विभिन्न जानकार इनकी निष्पक्षता और सर्वे करने के तौर-तरीकों पर सवाल उठा रहे हैं.

इन एग्जिट पोल में तथ्यात्मक गलतियां नजर आ रही हैं. वहीं विभिन्न राज्यों के क्षेत्रीय चैनलों के एग्जिट पोल से तुलना करने पर भी इनके आंकड़े अतिशयोक्तिपूर्ण नजर आ रहे हैं.

एक्सिस इंडिया के एग्जिट पोल पर जब हम नजर डालते हैं तो पाते हैं कि इसने एक डिसक्लेमर डाला है. इस डिसक्लेमर में लिखा है कि सर्वे पार्टी की पॉपुलैरिटी पर आधारित है. इस डिसक्लेमर को लेकर विभिन्न लोगों ने सवाल उठाए हैं. द वायर के फाउंडिंग एडिटर एमके वेणु कहते हैं कि एक्सिस एक्जिट पोल एजेंसी ने डिसक्लेमर डाला है कि सीट दर सीट दर पार्टी की पॉपुलैरिटी पर आधारित है. वे कहते हैं कि यह अजीब है और इसका मतलब क्या है? वे आगे कहते हैं कि क्या एक्सिस ने मतदाता से यह पूछा कि कौन सी पार्टी ज्यादा पॉपुलर है?

वहीं कांग्रेस नेता संजय निरुपम कहते हैं कि एक्सिस पियूष गोयल के नियंत्रण में है. इसमें अंबानी के हित हैं. बढ़ा-चढ़ाकर पेश किए गए एग्जिट पोल का मकसद बाजार को अच्छा संदेश देना है. बाजार दो दिन तक और सकारात्मक प्रतिक्रिया देगा.

क्षेत्रीय चैनलों के एग्जिट पोल से जब इन भारी भरकम एजेंसियों के एग्जिट पोल्स की तुलना करते हैं तो यह बात साफ समझ आती है कि इनके आंकड़ों में कहीं कोई गड़बड़ी जरूर है.

बिहार में राष्ट्रीय चैनलों ने जहां एनडीए को औसतन 35 सीट मिलने का अनुमान लगाया है, वहीं क्षेत्रीय चैनलों ने एनडीए को 25 सीटें दी हैं. क्षेत्रीय चैनलों ने यह भी बताया है कि पांच सीटों पर एनडीए और यूपीए के बीच कड़ा मुकाबला है.

ऐसे ही झारखंड के लिए राष्ट्रीय चैनलों ने जहां एनडीए को 11 और यूपीए को 3 सीटें दीं, वहीं क्षेत्रीय चैनलों ने एनडीए को 5 और यूपीए को 9 सीटें दी हैं.

इसी तरह एक्सिस इंडिया ने पंजाब में बीजेपी को 4 सीटें दे दीं, जबकि पंजाब में बीजेपी केवल 3 सीटों पर ही चुनाव लड़ रही है. टाइम्स नाऊ के एग्जिट पोल ने उत्तराखंड में आम आदमी पार्टी को ढाई फीसदी वोट दे दिया, जबकि आम आदमी पार्टी उत्तराखंड में चुनाव ही नहीं लड़ रही है. ऐसे ही एक्सिस इंडिया ने चेन्नई सेंट्रल सीट कांग्रेस को दे दी, जबकि कांग्रेस वहां से चुनाव ही नहीं लड़ रही है.

ये सब तथ्य इस बात की ओर साफ इशारा कर रहे हैं बड़ी-बड़ी एजेंसियों के ये एग्जिट पोल या तो हड़बड़ी में किए जा रहे हैं या फिर इनके निहित उद्देश्य हैं. यही कारण रहा है कि 1999 के बाद से ज्यादातर एग्जिट पोल खरे नहीं उतरे हैं. यह बात आज उप-राष्ट्रपति एम वैेकेया नायडू ने भी कही है. इस आधार पर कहा जा सकता है कि एग्जिट पोल केवल एक मजाक बनकर रह गए हैं.


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