जेंडर बजटिंग वाले राज्यों में अन्य राज्यों की तुलना में कम बदतर हैं हालात
Pixabay
जेंडर बजटिंग जारी करने वाले राज्यों में घरेलू हिंसा में कमी आई है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण(एनएफएचएस) की ओर से जारी साल 2005-15 के डाटा से पता चलता है कि गैर जेंडरिंग बजट वाले राज्यों की तुलना में इन राज्यों में महिलाओं की स्थिति कम खराब है. भारत के 16 राज्यों में जेंडर बजटिंग का प्रावधान है. इसका उदेश्य जेंडर असमानता दूर करना है.
भारत में जेंडर बजटिंग के बारे में चर्चा साल 2001 में शुरू हुई. इसके तहत बजट में जेंडर आधारित असमानता को दूर करने लिए अलग से बजट का प्रावधान किया जाता है. यह मानते हुए कि जेंडर असमानता की वजह से देश का विकास प्रभावित होता है. जेंडर बजटिंग में आमतौर पर महिलाओं और पुरुषों को बराबर संसाधनों की उपलब्धता, जेंडर की वजह से योजनाओं के लाभ के अंतर को कम करने और जेंडर आधारित जरूरत को पूरा करने का ध्यान रखा जाता है.
महिलाओं और किशोरियों की जरूरत को पूरा करने करने के साथ जेंडर समानता लाने के उदेश्य से जेंडरिंग बजट की शुरुआत हुई. साल 2004 में ओडिशा, साल 2005 में त्रिपुरा और उत्तर प्रदेश के बाद गुजरात, कर्नाटक, अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़ और जम्मू-कश्मीर में साल 2006 में पहली बार जेंडर को ध्यान में रखकर बजट बनाया गया.
फिलहाल दुनिया भर में 100 से अधिक देशों में जेंडर बजटिंग हो रहा है. इनमें सभी देशों में इसका स्पष्ट परिणाम देखने को नहीं मिला है. शोध से पता चला है कि भारत बजटिंग से महिलाओं की शिक्षा खासकर प्राथमिक शिक्षा में सुधार आया है.
इंडिया स्पेंड में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक जेंडर बजटिंग लागू करने वाले राज्यों में भी महिलाओं की स्थिति बेहतर नहीं है. साल 2005 से 2016 के बीच जेंडर बजटिंग करने वाले राज्यों में भी जेंडर समानता के चार मानकों, प्रसव पूर्व देखभाल, अस्पताल में डिलीवरी, बाल विवाह और अपने साथी से मारपीट और यौन हिंसा के मामलों में इजाफा हुआ है.
लेकिन गहराई से अध्ययन करने पर पता चलता है कि पिछले 10 साल में गैर जेंडरिंग बजटिंग की अपेक्षा हालात कम खराब हैं. जिन राज्यों में जेंडर बजटिंग का प्रावधान है, वहां साथियों से होने वाली हिंसा में गैर जेंडर बजटिंग राज्यों की तुलना में छह फीसदी अधिक कमी आई है.
अध्ययन के मुताबिक भारत में सिर्फ महिलाओं के लिए एक फीसदी से भी कम फंड जारी होता है. करीब 99 फीसदी फंड स्वास्थ्य और समाज कल्याण जैसी कैटगरी के अंतर्गत खर्च होता है. जिसे पक्के तौर पर जेंडर आधारित बजट नहीं कहा जा सकता है.